मलिकाइन के पातीः एही के कहल जाला- ढेर जोगी मठ के उजार

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तस्वीर बाबूलाल जी के सौजन्य से

पावं लागी मलिकार। वोट के जहिया से बतकही शुरू भइल बा, पांड़े बाबा के दुआर पर फरीछ होते जुटान शुरू होता, दस बजे ले धूमगज्जड़ मचल रहता। एह घरी पांड़े बाबा दू-तीन गो खबर कागज मंगावले लगले बानी। दुआर पर कुर्सी खींच-खींच लोग खबर कागज के पन्ना-पन्ना बांट के अइसन पढ़त बा लोग, बुझाता मैटिक के इन्तहान होखे वाला बा। पढ़े के टाइम में अइसहीं किताब लेके पढ़ले रहित लोग त भोरे-भोर दुआरे-दुआरे घूमे के नौबत ना आइत, कहीं बइठ के मोट दरमाहा पर कुर्सी तूरत रिहत लोग। मोदी जी के खिलाफ सगरी जोगी लोग जुटल बा। सुने में आवत बा कि अबही ले ओह लोग बंटवारा ना भइल। पांड़े बाबा कहत रहवीं कि एही के कहल जाला- ढेर जोगी मठ के उजार।

पांड़े बाबा खबर पढ़ के अइसन लोग के समझाई ले कि बुझाला सगरी गेयान उहां के माथा में पइठल बा। लोगवो अइसन-अइसन सवाल पूछेला आ बात करेला कि पांड़े बाबा ना संभारीं त आपसे में लोग मार-काट मचा ली। केहू ललटेन छाप के नीमन कहेला, त केहू ललटेन के नाम सुनते मुंह असन बिचकावे ला कि बुझाला, कहीं गुह के गंध नाक में ढूक गइल बा। कमल छाप के नाम सुन के पहिलवा लोग तनी खिसियात रहल हा, बाकिर एह घरी त बुझाता कि लोग के मन बदल गइल बा।

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सगरी बतकही हम दोगहा में बइठ के सुनत रहीले। हमरा ना टीवी सुने के दरकार पड़ेला आ ना खबर कागज ना पढ़ पावला के अफसोस रहेला। ओही लोग के बतकही से सगरी देस-दुनिया के खबर मिल जाला। पाकिस्तान पर जबसे हमला भयिल बा, तबसे लोग के मन बदल गयिल बा। अब त दू-चार जाना के छोड़ के सभका मुंह से इहे सुने के मिलत बा कि कुछऊ बा त मोदी जीउवा के कवनो जोड़ नइखे। बाल-बच्चा ना रहला से उनकरा कवनो धनो-संपत के जरूरत नइखे।

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आज बतियावत रहुए लोग कि टिकट बंटाये वाला बा। जे टिकट खातिर मुंह बवले रहल हा भा जेकर टिकट कटा जाता, ऊ एने-ओने भागे के तेयारी में बा। फूल छाप वाला पाटी के खामोस कहे वाला केकर दूनी टिकट कटा गइल बा। ऊ कबो ललटेन पाटी त कबो हाथ छाप के नेता लोग से सेटिंग में लाग गइल बाड़े। उनकरा बारे में पांड़े बाबा कहत रहुवीं कि आदमी त ठीक हउवन, बाकिर उनकर बोली-बतकही आ चाल-चलन बिगड़ गइल रहल हा। ऊ मोदी जी खिलाफ कलकत्ता में कवनो दीदी के मीटिंग में गइल रहले। मोदी जी के बारे में टेढ़-मेढ़ बोलहूं लागल रहले हां।

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हमरा एगो बात नइखे बुझात मलिकार कि वोट में जीती दोसर केहू आ आपस में बकझोरी लोग काहें करत बा। हमरा त इयाद बा कि एक बेर रउरा रहत भर में कवनो जीतल नेता अपना दुअरा आइल रहले। गांव भर के जुटान भइल। सब केहू आपन-आपन फरियाद सुनावे लागल। ओकरा बाद से आज ले जीतला के बाद केहू के गांव में हम ना देखनी। जे जइसन रहे, आजो ओही हाल में बा। केहू के कुछ नीमन-बाउर भइलो बा त अपना धरम-करम से। एह नेता लोग के कवनो मदद हमरा त नइखे लउकत।

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सुने में आवत बा कि वोट होखे में अबे महीना भर के टाइम बा। तबले केतना धूमगज्जड़ हो जाई। जवनी गंतिया लोग के बतकही होता, ओह से लागत बा कि गांव में दू गो पाटी बन कइल बा। ई कहीं कि आपस में केहू केतनो बकझक करेला, पांड़े बाबा के समझवला पर सभे मान जाला कि उहां के ठीक कहत बानी। पांड़े बाबा लोग के समझावत रहवीं कि पाटी-पउआ के फेर में परला से बढ़िया बा कि ओइसन आदमी के वोट द लोगिन, जे तोहरा लोगिन के कुछ दे ना सके त कम से कम दुख-सुख में त शामिल होखे। एगो बात उहां के बड़ा जोर से कहवीं कहवीं के कवनो हालत में वोट जरूर दीह लोगिन। नीमन आदमी जे बुझाव, ओकरे के दीह लोगिन।

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हमहूं कहां से ई वोट पुरान लेके बइठ गइनी। हाल-चाल ना पूछनी आ ना बतवनी। परसवनी वाली फुआ के बड़का बेटा के बियाह रोपाइल बा। नेवता आ गइल बा। सुने में आवत बा कि बिना कवनो लेन-देन के बियाह होत बा। हमरो बोलाहट बा। कहेब त जायेब। जाये के मन त करते बा, बाकिर घर-दुआर केकरा के सउंप के निकलीं, इहे नइखे बुझात। अब अकेले नइखे संभरात मलिकार। रउरो कब ले देह ठेंठायेब। अब आ जाईं घरे। बाकी अगिला पाती में।

राउरे, मलिकाइन  

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