अररिया (अब्दुल गनी)। अररिया में रोचक मुकाबले के आसार हैं। राजद के टिकट पर मौजूदा सांसद सरफराज आलम मैदान में हैं तो प्रदीप सिंह को बीजेपी ने उम्मीदवार बनाया है। मरहूम पिता भारत सरकार के पूर्व मंत्री तसलीमुद्दीन की सियासी विरासत को बचाए रखना मौजूदा सांसद सरफराज आलम के लिये एक चैलेंज है, जबकि पूर्व सांसद एनडीए प्रत्याशी प्रदीप कुमार सिंह घर वापसी के लिये बेचैन हैं। प्रदीप 2014 के लोकसभा चुनाव में तसलीमुद्दीन से हार गऐ थे। तसलीमुद्दीन की मौत के बाद 2018 में हुए उपचुनाव में सरफराज आलम ने जीत दर्ज की थी।
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पिछले कई चुनावों से यह सीट सरफराज आलम के परिवार में रही है। 1989 से ही माय समीकरण का दबदबा रहा है। इस लोकसभा क्षेत्र में लगभग 54 प्रतिशत हिंदू आबादी है, तो 46 प्रतिशत मुस्लिम आबादी। हिंदू मतदाताओं में लगभग पांच से छह प्रतिशत यादव मतदाता हैं। 2014 के चुनाव में माय समीकरण सफल हुआ और तसलीमुद्दीन आसानी से चुनाव जीत गये थे। यहां सीधा मुकाबला एनडीए-महागंधबंधन में है।
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पिछले दो चुनावों से राजद का इस सीट पर कब्जा रहा है। मो तसलीमुद्दीन के निधन के बाद खाली सीट पर हुए उपचुनाव में उनके पुत्र सरफराज आलम सांसद निर्वाचित हुए। भाजपा ने एक बार फिर प्रदीप कुमार सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया। इस बार जदयू ने भी भाजपा का साथ दिया। लेकिन, भाजपा को जीत नहीं मिल सकी। 2014 के चुनाव में जदयू ने विजय कुमार मंडल को अपना उम्मीदवार बनाया था। उन्हें 2,21769 वोट मिले थे और वो तीसरे स्थान पर रहे थे। दूसरे स्थान पर भाजपा के प्रदीप सिंह रहे थे। इस बार के चुनाव में एक बार फिर मुख्य मुकाबला राजद और भाजपा के बीच ही होने की उम्मीद है।
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2009 में परिसीमन के बाद यह सीट सामान्य हो गयी इस सीट पर प्राय: हर चुनाव में समाजवादी-कांग्रेस, जनता दल-कांग्रेस व अब भाजपा-राजद के बीच सीधा मुकाबला होता रहा है। अररिया लोकसभा के गठन के बाद से यह सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित थी। पर, 2009 में परिसीमन के बाद यह सीट सामान्य हो गयी। नये परिसीमन के बाद हुए चुनाव में पहली बार भाजपा को सफलता मिली। तस्लीमुद्दीन के निधन के बाद हुए उपचुनाव में उनके पुत्र सरफराज आलम ने एक बार फिर भाजपा प्रत्याशी प्रदीप कुमार सिंह को लगभग 50 हजार वोटों से हराया था।
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