पटना। JDU से किनारे किये जा सकते हैं उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर (PK)। पार्टी में उनके दिन अच्छे नहीं चल रहे। लालू बम उन पर भारी पड़ गया है। वे किनारे भी किये जा सकते हैं। लालू यादव (Lalu Yadav) की आने वाली पुस्तक का अंश बाहर आते ही प्रशांत किशोर को जवाब देते नहीं बन रहा है। लालू पर लिखी किताब में कहा गया है कि RJD से अलग होकर JDU ने जब हाथ मिलाया, उसके कुछ ही दिन बाद प्रशांत किय़ोर ने लालू यादव से मिलना-बात करना शुरू किया। राबड़ी देवी की मानें तो वे लालू परिवार के निर्णायक लोगों यानी राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव से भी कई बार उनके आवास पर मिले, पर बात नीहं बनी। प्रस्ताव था फिर से राजद-जदयू की दोस्ती का।
बिहार के मुख्यमंत्री और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कामर ने भी कुछ ही दन पहले कहा था कि लालू प्रसाद हमारे प्रशांत किशोर से फोन पर जेल से बात करते हैं। उसके पहले उन्होंने मीडिया वालों से यह भी कहा था कि प्रशांत किशोर को उपाध्यक्ष उन्होंने BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष के दो बार कहने पर बनाया था। प्रशांत किशोर एक और मामले में फंसते दिख रहे हैं। कभी शिवसेना के रणनीतिकार तो कभी जगन कांग्रेस के जगन से वह मुलाकात कर रहे हैं। यानी उन्होंने ठेके की तलाश शुरू कर दी है।
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वरिष्ठ स्तंभकार प्रेम कुमार मणि ने अपने फेस बुक वाल पर- दाढ़ी में तिनका- शीर्षक से एक पोस्ट डाला है। उन्होंने शुरुआत की है- प्रशांत किशोर क्या हैं? ठीक-ठीक मैं नहीं जानता। चुनाव प्रबंधक के रूप में उन्होंने खुद को प्रचारित किया है। शायद हों भी, लेकिन फिलहाल लालू की आत्मकथा से वह सुर्ख़ियों में हैं। इस आत्मकथा को पत्रकार मित्र नलिन वर्मा ने लिपिबद्ध किया और संवारा है। किताब बाजार में आने के पहले ही चर्चित हो गयी है, ठीक लालू प्रसाद की तरह। चर्चा भी किसी गंभीर मुद्दे पर नहीं है। यही कि प्रशांत के माध्यम से नीतीश ने लालू से संपर्क साधा और एक बार फिर महागठबंधन यानी बिहार की लालू नीत राजनीति, में लौटने की इच्छा जताई। इस खुलासे को प्रशांत झूठ बता रहे।
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उनने लालू को मीडिया के समक्ष आने की चुनौती दी है। प्रशांत ने लालू पर विशेषण भी नत्थी किये हैं, जो जगजाहिर हैं। कौन नहीं जानता वह किस चीज की सजा भुगत रहे हैं, लेकिन आप ऐसे आदमी से मिलने के लिए कई दफा उत्कंठित क्यों और कैसे हुए, यह प्रश्न तो यह बनता ही है।
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अब लालू जेल में हैं। प्रशांत जानते हैं कि वह कमसे कम चुनाव तक अब बाहर नहीं आ सकते। चुनौती देने में हर्ज क्या है! लेकिन कोई भी प्रशांत से यह पूछ सकता है कि आप लालू से मिलने गए थे या लालू आपसे मिलने गए थे? यदि आप उनसे मिलने गए थे, वह भी एक से अधिक बार, तो किसलिए गए थे? लालूजी न तो आप के रिश्तेदार हैं, न मित्र। आप का नीतीश से जरूर जुड़ाव है। बिहार में आपकी पहचान नीतीश के आदमी के रूप में है। लालू आप से मिले भी इसी आधार पर होंगे। आपका वहां जाना एक सन्देश वाहक का जाना था। क्योंकि आप की कोई स्वतंत्र हैसियत न तब थी, न आज है।
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26 जुलाई 17 तक लालू-नीतीश एक राजनीतिक गठबंधन में थे। अचानक एक ने पाला बदला। पाला बदलने के बाद पुनः पाला बदलने के विचार आना अस्वाभाविक नहीं है। इससे अधिक बात तो उस खुलासे में है भी नहीं। अब प्रशांत इससे परेशान हैं, तो हों। उनकी चुनौती हास्यास्पद है। आपका लालू के निकट जाना ही बहुत कुछ है।
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यूँ सब जानते हैं कि लालू प्रसाद के पेट में कोई बात पचती नहीं। किताब में तो बातें आज आई हैं, बिहार के राजनीतिक गलियारे में बातें उसी वक्त फ़ैल चुकी थीं, जब आप मिल कर लौटे थे। कुछ समय पूर्व आप ने मीडिया को बतलाया था कि नीतीश का भाजपा के साथ जाना बिहार के लिए तो अच्छा हुआ, लेकिन नीतीश की राजनीति के लिए बुरा हुआ, क्योंकि वह विपक्ष में एक राष्ट्रीय विकल्प के रूप में उभर रहे थे। आपकी इस बात में ही वह बात दिख रही है, जिसकी तरफ लालू इशारा कर रहे हैं। आप की बातें खुद ही आपका मज़ाक उड़ा रही हैं। इसे ही कहते हैं दाढ़ी में तिनका !!
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