‘सामूहिक वार्तालाप का एकल पाठ’ सीरिज में कई पाठ हैं। यानी कई अंश और अलग-अलग शीर्षक। सब एक-दूसरे से जुड़े। सब अपने आप में स्वाधीन भी। वरिष्ठ पत्रकार हेमंत ने इसे तैयार किया है। आप भी पढ़ें।
ये वोटरों के सामूहिक वार्तालाप का ‘एकल पाठ’ है। आज की बोली-बानी में और ‘सरल’ शब्दों में कहें, तो ये ‘एक्चुअल’ में हुई बौद्धिक ‘संगोष्ठियों’ के सारांश हैं। इन संगोष्ठियों की विशेषता यह थी कि विमर्श शुरू होने के पहले सबमें कोई न कोई आधार-पाठ प्रस्तुत किये गए। कहीं देश के नए-पुराने ख्याति प्राप्त चिन्तक, लेखक-पत्रकारों के आलेख आधार-पाठ के रूप में प्रस्तुत हुए, तो कहीं ‘पहली आजादी’ और ‘दूसरी आजादी’ के दौर के नायकों-महानायकों के कहे-लिखे बीज-पाठ के रूप में। यूं सबके स्रोत-सन्दर्भ में लेखक-नायकों के नाम दर्ज थे, लेकिन लगभग किसी भी संगोष्ठी में किसी ने उनका जिक्र नहीं किया!
ये संगोष्ठियां कहां-कहां हुईं? हिंदू बहुल इलाके में हुईं या मुस्लिम बहुल या ईसाई बहुल या सिख बहुल? इन सवालों को महत्वपूर्ण मानते हुए भी संगोष्ठियों की ‘विषय-वस्तु’ के मद्देनजर इसकी जानकारी देना हमने गैरजरूरी माना। इसलिए कि सांस्कृतिक भूगोल के लिहाज से ये सब इलाके भारत में हैं और यहाँ बसने वाले लोग ‘भारतीय’ हैं, लेकिन भारत के राजनीतिक आकाश में इस वक्त संशय की यह धूल उड़ाई जा रही है कि वे भारतीय न होने के कारण ‘भाई-भाई’ हैं या ‘भाई-भाई’ न होने की वजह से भारतीय हैं? और, खासकर इसलिए भी कि चुनाव-2019 के मद्देनजर इस तरह की चर्चा आज लगभग हर प्रदेश के उन समाजों में चल रही है, जहां अब भी भारतीय ‘विवेक’ नाम की चीज की पूछ या पूजा-प्रार्थना, तर्क-वितर्क की परंपरा कायम है।
उम्मीद है, इन ‘एकल-पाठों’ में पाठकगण गणेश शंकर विद्यार्थी, अमर्त्य सेन, गौरकिशोर घोष, रामदयाल मुंडा, यू. आर. अनंतमूर्ति, यदुनाथ थत्ते, पी.सी. जोशी, गांधी-अम्बेडकर, नेहरू-पटेल, जेपी-भगत सिंह जैसे अनेक लोगों की कृतियों के अपने ‘लगाव’ के उन अंशों को पहचान लेंगे, जिन्हें ‘अलगाव’ के प्रमाण के रूप में अलग-अलग उद्धृत किया जाता है।
समाधान ही समस्या है! “यदि हिंदू-धर्म एकेश्वरवादी बन जाये तो ईसाई-धर्म, इस्लाम और हिंदू-धर्म परस्पर सहयोग करते हुए देश की सेवा कर सकते हैं।” “यानी एकेश्वरवाद’ प्रॉब्लम है? सभी धर्मों के बीच परस्पर सहयोग में यह सबसे बड़ी बाधा है?” “हां, एक एंगल से लगता है कि हिंदू-धर्म एकेश्वरवादी नहीं है। इसलिए हिंदू-धर्म और इस्लाम के बीच परस्पर सहयोग की प्रेरणा या प्रवृत्ति पैदा नहीं हो पा रही है।” तब तो ‘जय श्री राम’ इस प्रॉब्लम का सबसे कारगर जवाब हो सकता है? देश में ‘जय श्री राम’ और ‘अयोध्या में ही मन्दिर’ की मुहिम तेज है। ये हिन्दू-धर्म का एकेश्वरवाद की ओर महाप्रयाण का सबसे पक्का सबूत है! तो अब प्रॉब्लम खत्म हो जाएगा?
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“नहीं, यहाँ तो एक और भी सवाल है। इस्लाम और ईसाई-धर्म में, जिनमें एक ही ईश्वर में विश्वास किया जाता है, आपस में कोई सहयोग और मेल-जोल नहीं है। एकेश्वरवाद अकेला मामला होता तो दुनिया के कई देशों में इस्लाम और ईसाई के बीच मतैक्य होता। लेकिन ऐसा नहीं है। यहाँ तक कि देश-दुनिया में सभी मुस्लिम (शिया-सुन्नी) या सभी ईसाई सम्प्रदायों (कैथलिक, प्रोटेस्टेन्ट और अन्य) के अंदर में भी मतैक्य नहीं है।”
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“तो इसका माने यह हुआ कि देश हो या दुनिया, एकेश्वरवाद अकेला प्रॉब्लम नहीं है। इसका मायने यह सवाल भी हुआ कि अगर इन दो एकेश्वरवादी धर्मों– इस्लाम और ईसाई में मेल-जोल नहीं है, तो फिर हिंदू धर्म के एकेश्वरवादी हो जाने पर भी, उसके और इस्लाम एवं ईसाई-धर्म के बीच किसी ढंग से मेल-जोल और सहयोग की आशा नहीं की जा सकती है!
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