भाजपा बहुमत से दूर रहेगी, कौन कह रहा यह बात, आइए जानते हैं

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नरेंद्र मोदी के निशाने पर राहुल गांदी
नरेंद्र मोदी के निशाने पर राहुल गांधी
  • मिथिलेश कुमार सिंह

नयी दिल्ली। भाजपा बहुमत से दूर रहेगी, कौन कह रहा यह बात। पता है आपको? यह विपक्षी दलों का नहीं, बल्कि भाजपा और उसके सहयोगी दलों का अपना आकलन है। पिछले कई दिनों से टुकड़े-टुकड़े में यह बात सामने आ रही है। भाजपा के कद्दावर नेता राम माधव ने कहा कि 271 सीटें इस बार भाजपा को मिल जायें तो इसे सौभाग्य कहिए। भाजपा के सहयोगी दल शिवसेना के संजय राउत भी मान रहे कि भाजपा को अपने दम पर इस बार बहुमत नहीं मिलना है। विपक्षी दल तो भाजपा के सफाये का अनुमान लगा रहे हैं।

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क्या सचमुच भाजपा की दुर्गति होने वाली है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2014 में लड़े गये चुनाव में इस तरह की कोई अटकलबाजी किसी नेता ने नहीं की थी। पीएम उम्मीदवार बनने से चूके लालकृष्ण आडवाणी ने भी गम-गुस्से के बावजूद ऐसी कोई अनर्गल टिप्पणी नहीं की थी। गुजरात दंगे में धूमिल हुई छवि के बावजूद नरेंद्र मोदी हर तबके के चहेते थे। isयुवा पीढ़ी तो मोदी में अपने साथ भारत का भविष्य भी देख रही थी। इस बार क्या ऐसा हो गया कि दो चरणों के चुनाव बाकी रहने के पहले ही ऐसे कयास लगाये जाने लगे हैं।

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दरअसल मोदी ने विकास के जिस नारे के साथ पिछला चुनाव लड़ा था, उसकी चर्चा तक वे इस बार नहीं कर रहे। मसलन मोदी खुद यह बताने की स्थिति में नहीं हैं कि उन्होंने देश का कितना विकास किया। सरकारी रोजगार के अवसर कम किये। उनके पहले ही कार्यकाल में सार्वजनिक उपक्रमों की हालत पतली हुई। देश के बैंकों को चूना लगा कर भागने वालों की फेहरिश्त लंबी होती गयी। नोटबंदी और जीएसटी से भाजपा का पारंपरिक वोट बैंक- व्यापारी समाज नाराज हुआ है। जिन गरीबों को मोदी सरकार ने गैस के चूल्हे और सिलिंडर मुफ्त में दिये, उन्हें तब तक सबसिडी से वंचित कर दिया गया, जब तक उनकी सबसिडी के पैसे से चूल्हे और सिलिंडर की कीमत नहीं वसूल हो जाती।

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मसलन मोदी के पास विकास कार्यों को बताने-गिनाने के लिए इस बार कुछ नया नहीं है। अपनी किसी भी चुनावी सभा में वे उपलब्धियां नहीं गिना-बता रहे, बल्कि देश की खस्ताहाली का ठीकरा कांग्रेस के सिर फोड़ने पर अपनी सारी ऊर्जा जाया कर रहे हैं। नेहरू से लेकर राहुल तक उनके निशाने बनते हैं। नेहरू खानदान के पीछे मोदी ऐसे पिल पड़े हैं कि कांग्रेस मुक्त भारत बनाने के अपने नारे का मतलब वे महज नेहरू खानदान का राजनीति से सफाया चाहते हैं। आधी से थोड़ी अधिक उम्र के राहुल गांधी से तो उनको इतना भय है कि कभी नाम लेकर तो ज्यादातर इशारों में वह राहुल को पप्पू बनाने से बाज नहीं आते।

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माना गया था कि नोटबंदी से देश में काले धन की समस्या खत्म हो जायेगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। रिजर्व बैंक ने भी माना कि जितने नोट प्रचलन में थे, वे सब बैंकों में लौट आये। फिर काला धन कहां गया। फेक करेंसी चलाने वाले आतंकियों की कैसी कमर टूटी कि वे पुलवामा जैसी घटना को अंजाम दे गये। कश्मीर अब भी अशांत है। बल्कि पहले से कहीं ज्यादा वहां अलगाववादी स्वर मुखर हुए हैं।

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देश के आर्थिक मोरचे की बात करें तो प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद के रथिन राय ने कहा है कि देश की अर्थव्यस्था बदतर हालात में जा रही है। हालत इतनी खराब है कि देश मंदी की चपेट में आ सकता है। उनका अनुमान है कि भारत दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील जैसे धीमी गति के विकासशील देशों की कतार में जाता दिख रहा है। आयकर वसूली में इस बार 50 हजार करोड़ रुपये की कमी आयी है। आर्थिक उदारीकरण 1991 में शुरू हुआ था। तब से निर्यात के आधार पर अर्थव्यवस्था नहीं बढ़ रही है।

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अब तो एनडीए के बैनर तले जुटे भाजपा के सहयोगी दल भी दबी जुबान यह चर्चा करने लगे हैं कि भाजपा अपने दम पर बहुमत के आंकड़ों तक नहीं पहुंच पायेगी। बिहार में बराबर के हिस्सेदार जदयू के एक नेता गुलाम रसूल बलियावी ने तो खुल कर कहना शुरू कर दिया है कि भाजपा अपने दम पर सरकार नहीं बना पायेगी। सहयोगी दलों की सरकार बनाने में बड़ी भूमिका होगी। उन्होंने एनडीए के सर्वमान्य नेता के तौर पर नीतीश कुमार का नाम पेश किया है। यानी सहयोगी दल भी एनडीए में नरेंद्र मोदी का विकल्प खोजने लगे हैं।

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