पटना। सावधान! बिहार में भी ‘वर्ड वॉर’ शुरू हो गया है। नरभक्षी, जल्लाद जैसे शब्द गूंज रहे हैं। चुनाव में वैसे भी बड़े-बड़े नेता बोलचाल की मर्यादा भूल जाते हैं। राजीव गांधी पर टिप्पणी को लेकर नरेंद्र मोदी पर इस तरह के आरोप भी लगे हैं। अब तो बिहार में भी राज्य स्तर के नेताओं की जुबान फिसलने लगी है। वे ऐसे शब्दों से परहेज नहीं कर रहे।
वरिष्ठ पत्रकार देवेंद्र मिश्र ने अपने फेसबुक वाल पर लिखा है- सावधान! बिहार में भी ‘वर्ड वॉर’ :
नरभक्षी, जल्लाद, शूर्पणखा, डायनासोर, शुतुरमुर्ग, नाली के कीड़े! कीचड़ से कीचड़ धोया जा रहा! दरअसल ऐसे शब्दों के इस्तेमाल पर चुनाव आयोग संज्ञान तो लेता है, लेकिन कोई सख्त कार्वाई नहीं होती। बहुत हुआ तो महज माफीनामे से मामला सलट जाता है।
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वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी ने लिखा- बिहार में चुनाव अब ‘डायनासोर’, ‘शुतुरमुर्ग’ और ‘नाली के कीड़े’ के सहारे लड़ा जा रहा है। नेता मुद्दाविहीन हो गए हैं। विरोधी की आलोचना के लिए उनके पास शब्द नहीं हैं। इसलिए जानवरों और कीड़ों का सहारा लेना पड़ रहा है। जिस बिहार के वैशाली को लोकतंत्र की जननी होने का गौरव हासिल हैं, जिस बिहार ने संविधान सभा का अध्यक्ष दिया, जिसके आधार पर राजनीतिक दल चुनाव लड़ रहे हैं, उसी बिहार के कतिपय राजनेता सार्वजनिक जीवन की मर्यादा और शिष्टाचार को तहस-नहस कर रहे हैं। चुनाव में गली के आवारा लड़कों की भाषा का इस्तेमाल धड़ल्ले से किया जा रहा है।
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यह माना जाना चाहिए कि जो राजनेता डायनासोर, शुतुरमुर्ग और नाली के कीड़े जैसे शब्दों का इस्तेमाल चुनाव प्रचार में कर रहे हैं, वे जनता से कटे हुए और हवा में लटके हुए नेता हैं। उनके पास जनता से बात करने, उसे बताने के लिए कुछ नहीं है। इसलिए वे अपनी खीझ निकाल रहे हैं। अगर उनके पास विकास का कोई वैकल्पिक मॉडल होता, बिहार की सूरत संवारने की कोई योजना होती तो वे जरूर उस पर बात करते। काश! उनके पास कल्पना शक्ति होती, कुछ करने का जज्बा होता तो हालात कुछ और होते।
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बिहार के बाहर भी स्थिति कोई बहुत बेहतर नहीं है। कमोबेश पूरे देश मे गाली गलौज की भाषा का इस्तेमाल विरोधियों के लिए किया जा रहा है। क्या हम आनेवाली पीढ़ी के लिए यही आदर्श छोड़ कर जाना चाहते है ? यह हम सभी को सोचना होगा।
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बता दें कि हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री और राजद नेता राबड़ी देवी ने नरेंद्र मोदी को बाथरूम का कीड़ा कहा था। उन्होंने जल्लाद शब्द का भी प्रयोग किया था। अलबत्ता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पहले भी इस तरह के शबिदों के इस्तेमाल से दूर रहे हैं और इस बार भी उनकी जुबान से कोई गलत शब्द अब तक नहीं निकला है। वे अपना काम गिनाते हैं और उसी के आधार पर वोट की जनता से वोट की अपील भी करते हैं।
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