- नवीन शर्मा
एयर फोर्स की छोड़ फिल्मों में आए थे रहमान। आप लोगों में से कई लोगों को लता मंगेशकर का गाया गीत- ना जाओ सैंया छुड़ा के बैंया जरूर याद होगा। गुरु दत्त की क्लासिकल फिल्म साहिब, बीवी और गुलाम में यह यह गीत ट्रेजडी क्वीन मीना कुमारी पर फिल्माया गया था। मीना कुमारी इस गीत से जिस शख्स को रिझाने की कोशिश कर रहीं थीं, वो रहमान हैं।
मीना कुमारी के हर अंदाज से बेखबर और बेपरवाह शराब के नशे में मस्त जमींदार छोटे बाबू की भूमिका को रहमान ने बहुत ही विश्वसनीय ढंग से निभाया है। इससे यही लगता है कि ये रोल तो रहमान के लिए ही बनाया गया था। इनसे बेहतर इस भूमिका को कोई और नहीं निभा सकता था। रहमान इस भूमिका में इसलिए भी एकदम परफेक्ट नजर आए, क्योंकि रहमान खुद भी एक बड़े और संपन्न घराने से ताल्लुक रखते थे। रईसी और कुलीनता उनको विरासत में मिली थी। इसलिए इस भूमिका के लिए उन्हें कोई एफर्ट नहीं करना पड़ा। वे एकदम सहज लगे हैं।
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साहिब, बीवी और ग़ुलाम गुरु दत्त द्वारा निर्मित और अबरार अलवी द्वारा निर्देशित 1962 की हिन्दी फ़िल्म है। यह बिमल मित्रा द्वारा लिखी गए बंगाली उपन्यास, साहेब, बीवी, गुलाम पर आधारित है। यह ब्रिटिश राज के दौरान 19वीं शताब्दी के अंत तथा 20वीं शताब्दी की शुरुआत में बंगाल में ज़मींदारी और सामंतवाद के दुखद पतन की झलक है।
फिल्म एक कुलीन (साहिब) की एक सुंदर, अकेली पत्नी (बीवी) और एक कम आय अंशकालिक दास (ग़ुलाम) के बीच एक आदर्शवादी दोस्ती को दर्शाने की कोशिश करती है। फ़िल्म का संगीत हेमंत कुमार और गीत शकील बदायूँनी ने दिए हैं। फ़िल्म के मुख्य कलाकार गुरु दत्त, मीना कुमारी, रहमान, वहीदा रहमान और नज़ीर हुसैन थे। इस फ़िल्म को कुल चार फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों से नवाज़ा गया था, जिनमें से एक फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार भी था। रहमान ने गुरु दत्त के प्यासा में भी यादगार भूमिका निभाई थी। वे इसमें भी एक संपन्न रईस की भूमिका में थे। रहमान का कैरियर 1940 के दशक के उत्तरार्ध से लेकर 1970 के दशक के अंत तक फैला था। वे गुरु दत्त टीम का अभिन्न हिस्सा थे।
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रहमान ने निर्देशक गुलजार की क्लासिक फिल्म आंधी में भी अभिनय किया था। वे इसमें अभिनेत्री सुचित्रा सेन के पिता की भूमिका में थे। एक दमदार राजनेता के रोल में वे सहज लगे। रहमान बना पिता अपनी बेटी को भी राजनीति में ही लाना चाहता है। उसको अपनी बेटी का एक मामूली से नौकरी पेशा संजीव कुमार के इश्क में पड़ना रास नहीं आता है। पिता के अतिरिक्त हस्तक्षेप की वजह और सुचित्रा सेन की महत्वाकांक्षा की वजह से इस जोड़ी में अलगाव हो जाता है। वे प्यार की जीत, बडी बहन, प्यासा (1957), साहिब बीवी और गुलाम (1962), दिल ने फ़िर याद किया और वकत (1965) जैसी फिल्मों में उनकी भूमिका के लिए जाने जाते थे।
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रहमान लाहौर से कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने (1942) के बाद रॉयल इंडियन वायुसेना में शामिल हो गए और पुना में पायलट के रूप में प्रशिक्षित हुए। बांबे में फिल्मों में करियर के लिए उन्होने वायुसेना की नौकरी को छोड़ दिया। वह अपने सौहार्दपूर्ण परिष्कृत भूमिकाओं के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं, जो उनके व्यक्तित्व के अनुकूल हैं। पुणे में विष्णम बेडेकर के तीसरे सहायक निदेशक के रूप में उनके फिल्म कैरियर की शुरुआत हुई।
विष्णम को एक अफगान की जरूरत थी जो पश्तुन पगड़ी बांध सकता था। रहमान ऐसा कर सकते थे, एक पश्तुन होने के नाते, और वह उन्हें कुछ प्रमुख भूमिकाओं के लिए स्क्रीन पर लाया। नायक के रूप में उनकी प्रमुख हिट्स में से प्यासा के साथ प्यार की जीत थी,। और गीत- “एक दिल के तुकेडे हज़ार हू, कोई याहा गिरा, कोई वाहा गिरा” एक प्रमुख हिट था। शुरुआत में उन्होंने मुख्य भूमिका निभाई, लेकिन समय बीतने के बाद, उन्होंने सहायक भूमिका निभाई।
1977 में उन्हें तीन दिल के दौरे का सामना करना पड़ा, जिसके बाद उन्हें गले का कैंसर भी हो गया और 1984 में लंबी और दर्दनाक बीमारी के बाद उनकी मृत्यु हो गई।