पटना लौटे तेजस्वी, बताया- हड्डी का इलाज कराने गये थे

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बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी सोशल इंजीनियरिंग के अब तक आजमाए नुस्खे से अलग प्रयोग करने जा रहा है। आरजेडी इस बार सवर्णों को साधने की कोशिश में है।
बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी सोशल इंजीनियरिंग के अब तक आजमाए नुस्खे से अलग प्रयोग करने जा रहा है। आरजेडी इस बार सवर्णों को साधने की कोशिश में है।

पटना। पटना लौटे तेजस्वी, बताया- हड्डी का इलाज कराने गये थे। बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री और आरजेडी नेता तेजस्तवी यादव तकरीबन सवा महीने बाद पटना लौटे हैं। पटना लौटने की जानकारी उन्होंने ट्वीट कर दी है। उन्होंने कहा कि वे हड्डी में चोट का इलाज कराने गये थे। उनके न रहने पर मीडिया और सत्ता पक्ष के नेता मसालेदार कहानियां गढ़ने लगे थे। उन्होंने स्पष्ट किया कि एक चुनाव हार जाने से राजद का अस्तित्व खत्म नहीं होने वाला है।

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तेजस्वी ने मुजफ्फरपुर में इंसेफलाइटिस से बच्चों की हुई और हो रही मौतों पर एक ट्वीट किया है। उन्होंने कहा कि राजद नेता पीड़ित परिवारों से मिलें और उनकी मदद करें, लेकिन फोटो खिचवाने से परहेज करें। उन्होंने कहा कि समाजवाद, धर्मनिरेक्षता और सामाजिक न्याय के प्रति उनकी पार्टी प्रतिबद्ध है। ऐसे लोगों के हम साथ हैं और हमारा संघर्ष जारी रहेगा।

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इधर बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने अपने ट्वीट में उनकी गैरहाजिरी पर तंज कसते हुए कहा है कि पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पद पर रहते हुए अपने बीमार होने और इलाज कराने की जानकारी देकर सार्वजनिक जीवन की मर्यादा का पालन किया, जबकि राजद नेता तेजस्वी प्रसाद यादव ने 36 दिनों तक अपने बारे में रहस्यमय गोपनीयता बनाये रख कर अपनी पार्टी, विधानसभा क्षेत्र की जनता और विधानसभा के प्रति अनादर प्रकट किया।

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उन्होंने सच न बता कर खुद मौका दिया और अब मीडिया पर मसालेदार कहानी बनाने का आरोप लगा रहे हैं। श्री मोदी ने कहा कि बीमारी हो या बेनामी सम्पत्ति, तेजस्वी यादव ने सच को बिंदुवार सबके सामने रखने का कभी साहस ही नहीं किया।

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कांग्रेस को आड़े हाथ लेते हुए श्री मोदी ने कहा कि जिस परिवारवाद के चलते कांग्रेस खुद मिटती-सिमटती जा रही है, उस प्रवृत्ति से बचने के बजाय जो प्रदेश प्रमुख राहुल गांधी के समर्थन में खून से लिखे पत्र सार्वजनिक रूप से स्वीकार करने में संकोच न करते हों, वे  तेजस्वी यादव के प्रवक्ता बन कर सदन के पहले दिन उनकी गैरहाजिरी का बचाव भी करने लगे। वे बतायें कि क्या सदन के पहले दिन की आधे घंटे की कार्यवाही में भाग लेने और दिवंगत विभूतियों को श्रद्धांजलि देने की परंपरा में नेता विरोधी दल का विश्वास नहीं है? लोकतंत्र में विरोधी दल के नेता का आचरण भी सवालों के दायरे में होता है।

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