- शेष नारायण सिंह
फिल्म आर्टिकल 15 देख कर आया हूं। किस तरह से सिस्टम शोषित पीड़ित जनता के खिलाफ लामबंद होता है, उसी को दिखाने की कोशिश की गयी है। लेकिन अगर एक ठीकठाक पुलिस अफसर तैनात हो जाए तो खेल बदल जाता है। फिल्म में पुलिस अफसर की भूमिका जिस अभिनेता ने की है, उसी तरह के अफसर होने चाहिए। इन फैक्ट ब्रह्मदत्त टाइप थानेदार को शासक वर्गों के गुमाश्ते के रूप में दिखाया गया है, लेकिन उनका अपने सुपीरियर अफसर से संवाद कुछ ज्यादा ही फिल्मी हो गया है। उत्तर प्रदेश पुलिस में subordinate अफसर इस तरह बात नहीं करते।
इस फिल्म को देखते हुए अपने मित्र पुलिस अफसरों की जवानी की याद आ गयी। 1980 में मेरे दोस्त आगरा में IPS की नौकरी की अपनी पहली पोस्टिंग पर गए थे। एक ब्लाक प्रमुख ने किसी डकैत को प्रश्रय दे रखा था। उसने आतंक फैला रखा था। लोगों को परेशान करता रहता था। उसको उन्होंने पकड़ लिया। वहां के दारोगा जी ने बताया कि अरुण नेहरू का खास आदमी है। उन दिनों कांग्रेस सरकार में अरुण नेहरू की तूती बोलती थी। लखनऊ में वीपी सिंह मुख्यमंत्री थे।
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अपर पुलिस अधीक्षक जी को मालूम पड़ गया कि वह अपराधी नेता छूट तो जाएगा ही, इसलिए अदालत में उसका कुछ नहीं बिगाड़ पायेंगे। उन्होंने दो-तीन रंगरूटों को काम पर लगा दिया और उनका पाँव तुड़वा दिया। जब मैं उन भूतपूर्व प्रमुख जी से 1980 में मिला तो वे लंगड़ा कर चलते थे। मुकामी बदमाशी तो खैर पुलिस की कृपा के बाद ही बंद हो गयी।
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मेरे एक अन्य पुलिस अफसर मित्र बिजनौर के कप्तान थे। मायावती वहां की सांसद थीं। एक कारिंदे ने आकर खबर दी कि बहनजी ने बुलाया है। उन्होंने कहा कि अभी मैं बैडमिन्टन खेल रहा हूं। और बहनजी को बता दीजिएगा कि उनको मुझसे मिलना है तो उनको मेरे आफिस या रेजीडेंस पर आना होगा। मैं किसी बहनजी या भाई साहब से मिलने नहीं जाता।
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इन दोनों से थोड़े जूनियर एक अफसर हैं, उनके दोस्त हैं, मेरे फेसबुक फ्रेंड हैं। बेहतरीन इंसान हैं। अब लिखते हैं और बहुत अच्छा लिखते हैं। IPS में अपनी सेवा के दौरान वे उन दिनों सहारनपुर में कप्तान थे। केंद्र सरकार में शिवराज पाटिल गृहमंत्री थे। पाटिल साहब की एक दोस्त पत्रकार ने नरक मचा रखा था। अपराधियों की सिफारिश करती रहती थीं। सहारनपुर के कप्तान साहब ने उनकी कार पकड़ ली। वह कार उनको एक अपराधी ने गिफ्ट किया किया था। कार चोरी की थी। जब शिवराज पाटिल ने कप्तान को धमकाने की कोशिश की तो उनको बहुत ही विनम्रता से बता दिया गया कि मंत्री जी, चोरी की कार को रखने के जुर्म में मैडम बुक हो गई हैं और अगर आपकी सिफारिश को रिकार्ड में ले लिया गया तो आपको भी बुक करना पड़ेगा। मुराद यह है कि अगर कुछ ऐसे लोग सिस्टम में सही मुकाम पार पहुंच जाएं तो अभी भी कुछ उम्मीद बाकी है।
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