आना मेरी जान संडे के संडे…गाना सुनें तो दुलारी जरूर दिख जाएंगी

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फिल्म अभिनेत्री राजदुलारी
फिल्म अभिनेत्री राजदुलारी
  • वीर विनोद छाबड़ा 

आना मेरी जान संडे के संडे सुनें तो दुलारी दिख जाएंगी। दुलारी, कभी नाम सुना होगा या चेहरा याद होगा। कभी नेक दिल मां, कभी पड़ोसन तो कभी लालची ननद। याद दिलाता हूं। ‘पड़ोसन’ (1968) की सुनील दत्त की मामी और ओम प्रकाश की पत्नी, जिसे वो त्याग कर जवान सायरा बानो से ब्याह रचाने के सपने बुन रहे हैं। थोड़ा और पीछे जाएँ।

अभिनेत्री दुलारी
अभिनेत्री दुलारी

यूट्यूब पर ये गाना देखें, आना मेरी जान संडे के संडे… तो आपको थिरकती हुई जवान दुलारी दिख जाएंगी। राजकपूर ने सिर्फ एक ही फिल्म में डबल रोल किया था, पापी (1953), एक की नायिका नरगिस और दूसरे की दुलारी। हमारी बात (1943) में वो हीरो जयराज की छोटी बहन थीं। आदाब अर्ज़ (1944) में वो मुकेश के सामने अहम रोल में थीं। बाद में मुकेश एक्टिंग छोड़ सिंगर बन गए। मगर दुलारी पीछे छूट गयीं। 1947 की मशहूर फिल्म थी, शहनाई। इसमें उनका नायिका रेहाना के समानांतर रोल था और उनके अपोजिट थे, मुमताज़ अली यानी महमूद के पिता। चालीस और पचास के सालों में दुलारी ऐसे ही अहम किरदार किया करती थीं।

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यूपी के ब्राह्मण परिवार से संबंधित दुलारी का जन्म 18 अप्रेल 1928 में हुआ, मगरपली-बढ़ीं महाराष्ट्र में। असली नाम था, अंबिका गौतम। फ़िल्मी सफर शुरू हुआ तो राजदुलारी बन गयीं। फिर सिर्फ दुलारी हो गयीं, छोटा और ज़बान पर सहज चढ़ने वाला नाम। दुलारी का फिल्मों में पदार्पण मजबूरी वश हुआ। कमाऊ पिता बीमार पड़ गए, असाध्य रोग। घर का खर्च चलाने के लिए दुलारी आगे आयी। पिता के एक साउंड रिकार्डिस्ट मित्र ने उन्हें फिल्मों में एक्स्ट्रा की पंक्ति में खड़ा कर दिया। और शायद अशोक कुमार-लीला चिटणीस की ‘झूला’ (1941) उनकी पहली फिल्म थी। फिर तो दुलारी चल गयीं। जाना-पहचाना नाम हो गयीं। दिलीप कुमार वाली ‘देवदास’ में वो स्ट्रीट सिंगर थीं। उन पर दो भजन फिल्माए गए थे…साजन की हो गयी गोरी अब घर का आंगन बिदेस लागे रे…आन मिलो आन मिलो श्याम सांवरे…

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दुलारी की साउंड रिकार्डिस्ट जे.बी.जगताप से मुलाक़ात मोहब्बत में तब्दील हुई। 1952 में उनकी शादी हुई। गृहस्थी संभालने के लिए दुलारी ने फिल्मों में काम करना लगभग बंद ही कर दिया। अगले नौ साल में उनकी सात-आठ फ़िल्में ही आयीं, अलबेला, पेइंग गेस्ट, देवदास आदि। मगर 1961 में वो फिर पर्दे पर आ गयीं, अपने दिल से सिनेमा का मोह हटा नहीं पायीं। इसे उनकी सेकंड इनिंग माना गया। और ये भी बहुत यादगार रही। मुझे जीने दो, दिल दिया दर्द लिया, अनुपमा, आये दिन बहार के, तीसरी कसम, इंतकाम, पड़ोसन, चिराग, आराधना, गंवार, जॉनी मेरा नाम, लाल पत्थर, कारवां, बॉम्बे टू गोवा जैसी लगभग सवा सौ मशहूर फिल्मों में दिखीं। कई बार तो बहुत ही छोटे रोल किये। ‘आया सावन झूम के’ में दुलारी एक बच्चे को गोद लेती हैं। बच्चा बहन से राखी बंधवाते हुए एकदम से एडल्ट धर्मेंद्र हो जाता है। बैकग्राउंड में दीवार पर दुलारी की तस्वीर टंगी दिखी।

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दुलारी का अंत समय बहुत ही ट्रेजिक रहा, तनहाई। एक अदद बेटी शादी करके ऑस्ट्रेलिया जा बसी थी। कभी-कभी मां को देखने आती थी, जबकि वो अल्ज़ाइमर से पीड़ित थीं। एक वृद्धा आश्रम में उनकी देख-रेख हो रही थी। इलाज के लिए अधिक पैसा नहीं था। पुरानी सहेली वहीदा रहमान ने आर्टिस्ट एसोसिएशन CINTAA को स्मरण कराया। उनकी आर्थिक मदद शुरू हुई। मगर एक दिन बैंक वालों ने बताया कि दुलारी का खाता तो कई महीने पहले बंद हो चुका है। वस्तुतः 18 जनवरी 2013 को उनकी मौत हुई और पता चला 18 अप्रेल को। उनकी बेटी आयी और अगले दिन अंतिम क्रिया-कर्म करके चली गयी। अफ़सोस कि उनकी अंतिम विदाई में फिल्म इंडस्ट्री से किसी को हाज़िर होने का मौका नहीं मिला।

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