शीला दीक्षित के निधन से एक युग का अंत हो गया। उनके निधन पर जिस तरह सर्वदलीय शोक संवेदनाएं प्रकट की जा रही हैं, उससे उनका कद पता चलता है। सोशल मीडिया शीला जी के निधन की सूचना और शोक संवेदनाओं का सर्वाधिक मुखर मंच बना। वरिष्ठ स्तंभकार वीर निवोद छाबड़ा ने उन्हों इस तरह याद किया हैः
शीला दीक्षित जी नहीं रहीं। बहुत दुख हुआ। शीला जी की दो पहचान थी, एक वो एक मजबूत राजनैतिक महिला थीं और दो, जो ज्यादा अहम है, उनका चेहरा और दिल्ली का विकास एक दूसरे के पूरक थे। उन्हें दिल्ली की लौह महिला के रूप में भी जाना गया। दिल्ली का जो विकास आज देखा जाता है, उसका बहुत सारा हिस्सा उनके पंद्रह साल के मुख्यमंत्रित्व काल से संबंधित रहा। उनके धुरंधर विरोधी भी उनका लोहा मानते रहे।
आज उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए उनके एक धुर विरोधी नेता कह रहे थे कि बिना टकराव के दिल्ली की कुर्सी पर राज कैसे किया जाए, ये हर मुख्यमंत्री को शीला जी से सीखना चाहिए। वो 2013 में दिल्ली की सत्ता आम आदमी पार्टी के हाथों गंवा बैठीं, खुद चुनाव भी अरविन्द केजरीवाल से हार गयीं। हमें याद है उस दिन खुद दिल्ली वाले भी बहुत दुखी थे, हाय ये हमने क्या कर दिया? जिसने हमारे लिए मेट्रो चलवाई, फलाईओवर बनवाये, एलीवेटेड कॉरिडोर बनवाया, हमने उसे हरवा दिया।
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पार्टी ने शीला जी को मार्च 2014 केरल का राज्यपाल बना कर भेज दिया। मगर अगस्त 2014 में वो वापस दिल्ली आ गयीं। उनकी बढ़ती उम्र और खराब स्वास्थ्य भी उन्हें सक्रिय राजनीति से बेदखल नहीं कर सके, कभी अप्रासंगिक नहीं कर सके। वो कहती थीं, राजनीति से कोई रिटायर नहीं होता। उनका ये कथन उन लोगों को बहुत प्रेरणा देता था, जिन्हें बढ़ती उम्र के कारण राजनीति से रिटायर कर किनारे कर दिया गया। राजनीतिक चिंतन इंसान को जवान बनाने में सहायक होता है।
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शीला जी कांग्रेस पार्टी की समर्पित सिपाही रहीं। वो अपनी उपेक्षा के दिनों में भी निराश नहीं हुईं, कई नेताओं ने रंग बदला, लेकिन शीला जी के बारे में ऐसा कभी नहीं सुना गया। गांधी परिवार के बहुत निकट माना जाता रहा है उन्हें। पंजाब के कपूरथला में 31 मार्च 1938 को पंजाबी खत्री परिवार में जन्मी शीला जी दिल्ली में पढ़ीं और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता उमा शंकर दीक्षित के बेटे विनोद दीक्षित से उनका प्रेम विवाह हुआ, जो भारतीय प्रशासनिक सेवा में थे।
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उनके प्रेम विवाह की कथा बहुत रोचक रही। विनोद उनके साथ पढ़ते थे। डीटीसी की बस में उन्होंने शीला को बताया कि मैं एक लड़की से शादी के बारे में अपने माता-पिता से बात करने जा रहा हूँ। शीला ने पूछा, लड़की को मालूम है? विनोद ने कहा, वो लड़की मेरे आगे वाली सीट पर बैठी है।
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शीला जी 1984 में कन्नौज से लोकसभा के लिए चुनी गयीं। राजीव गांधी की कैबिनेट में मिनिस्टर रहीं। शीला जी के निधन से एक युग पीढ़ी का अंत हुआ। कांग्रेस की ही क्षति नहीं दिल्ली वासियों और देश की भी क्षति है, कम से कम उन लोगों को उनकी कमी ज़रूर खलेगी जो विकास की बात करते हैं।
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