नाटक-नौटंकी का भूत ऐसा सवार था कि पढ़ाई से मन उचटने लगा था…

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  • शिकारपुर, मझौलिया, मोतिहारी होते हुए दिल्ली, पटना और फिर मुंबई का सफर
  • जो लोग मेहनत की आंच पर तपाकर मुकाम पाते हैं, वही इतिहास बनाते हैं
  • 1971, रावण, और बाटला हाउस जैसी फिल्मों में काम किया

चंपारण: सपने आंखों में ही पाला जाता है और ये कोई बड़ी बात नहीं, बड़ी बात तो है आंखों में पल रहे उन सपनों को हकीकत बनाने के लिए जी-तोड़ मेहनत करना। जो लोग खुद को मेहनत की आंच पर तपाकर अपना मुकाम पाते हैं, वही इतिहास बनाते हैं। ऐसा ही एक नाम है 1971, रावण, और बाटला हाउस जैसी फिल्मों के जरिये खुद को तपाकर अपने मुकाम की ओर बढ़ते अभिनेता अमरेंद्र शर्मा का।

अमरेंद्र सिनेमा की जादुई दुनिया में हुआ शामिल

बिहार, चम्पारण के छोटे से गांव मझौलिया से आंखों में बड़े सपने लिए अमरेंद्र सिनेमा की जादुई दुनिया में कैसे खुद को शामिल कर लेते हैं और कैसे उनकी यात्रा हर स्ट्रगलर की यात्रा बन जाती है। बेतिया के शिकारपुर, मझौलिया और मोतिहारी होते हुए दिल्ली, पटना और फिर मुंबई का सफर। आइये, इन्हीं सब ख़ास बातों को हम अभिनेता अमरेंद्र शर्मा से जानने की कोशिश करते हैं।

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अमरेंद्र बताते हैं कि-

शुरूआती पढ़ाई गांव से करने के बाद बारहवीं की पढ़ाई के लिए मोतिहारी आ गया। नाटक-नौटंकी का भूत ऐसा सवार था कि पढ़ाई से मन उचटने लगा था। बारहवीं पास करने के बाद एडमिशन तो ले लिया, पर थिएटर का मोह मुझे दिल्ली खींच ले गया। तबतक हमारे शहर से मनोज वाजपेयी जैसे स्टार का उदय हो चुका था। अब प्रेरणा कहिये या क्रेज, उनकी जानकारी इकठ्ठी करते-करते खुद नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) दिल्ली के मोह में पड़ गया।

और आगे बताते हैं…

मजेदार बात देखिये कि दिल्ली जाने के बाद मुझे एनएसडी तलाशने में डेढ़ महीने लग गए। हुआ यूं कि जिन दोस्तों के साथ दिल्ली गया था सब फ़ैक्ट्री में काम करने वाले लोग थे। उन्हें अपने काम के अलावा दिल्ली की कोई जानकारी ही नहीं थी। खैर काफी खोज-बिन के बाद एनएसडी तो मिला पर एनके शर्मा जी और कुछ दोस्तों की सलाह पर मैं थिएटर की शुरुआत करने वापस पटना चला गया। पटना पहुंचकर मेरी मुलाकात पंकज त्रिपाठी, पुंज प्रकाश और विजय जी जैसे थिएटर के लोगों से हुई। उन लोगों के ग्रुप से जुड़ गया।

आपको जानकार आश्चर्य होगा आज के स्टार एक्टर पंकज त्रिपाठी जी ने वहां एक प्ले ‘जात ना पूछो साधो की’ का निर्देशन भी किया, जिसमें उन्होंने मुझे काम दिया था। जो मेरी लाइफ का पहला प्रोफेशनल प्ले था।

जानिये, अमरेंद्र का सफर पटना से किस ओर मुड़ा

पटना में थिएटर के दौरान मुझे मौका मिला कोलकाता जाकर भारंगम की उषा गांगुली जी से मिलने का। असल में उन्हें कुछ बिहारी लड़कों की जरुरत थी तो विजय जी ने हमें वहां जाने को कहा था। वहां पहुंचकर उनसे मुलाकात हुई और फिर मैंने उनकी रेपेट्री ज्वाइन कर ली। दो साल कोलकाता रहा। पर मन में एक कसक थी कि हर जगह थिएटर किया बस दिल्ली रह गयी। यही सोचकर मैं दिल्ली गया और मैने साहित्य कला परिषद् रेपेट्री ज्वाइन कर ली। फिर वहां कुछ वक़्त थिएटर करने के बाद मुंबई आ गया।

मुंबई में ऐसे शुरू हुआ सफर

इस मामले में मैं खुद को थोड़ा लकी मानता हूं। दरअसल मेरे जेहन में शुरू से ही कुछ लोग जगह बना चुके थे जिनके साथ मैं भविष्य में काम करना चाहता था। जिनमें मनोज बाजपेयी सर, मणिरत्नम सर, इरफ़ान सर और अजय देवगन सर जैसे लोग थे।

संयोग देखिये कि जिस मनोज बाजपेयी को देखकर मेरे अंतर्मन में अभिनय का कीड़ा जागा था, मुंबई पहुंचते ही मुझे उनके साथ ‘1971’ जैसी फिल्म में काम मिल गया। उस फिल्म में मेरी एक पाकिस्तानी सोल्जर की भूमिका थी। शूटिंग के सिलसिले में दो महीने के लिए मनाली गया और जब वापस लौटा तो इरफ़ान सर के साथ अपना आसमान में काम करने का मौका मिल गया। दोनों अभिनेताओं से काफी कुछ सीखने को मिला। अभी उन दोनों की खुमारी उतरी भी नहीं थी कि मणिरत्नम सर के साथ ‘रावण’ में काम करने का मौका मिल गया। उस फिल्म में पंकज त्रिपाठी जी भी एक भूमिका में थे. शूटिंग के दौरान हम दोनों ने रूम शेयर भी किया। इन सब फिल्मों में मेरी भूमिका भले छोटी थी पर उन सबके अनुभव सहेजने का अच्छा मौका मिल गया।

बाद में टेलीविज़न का रुख करना पड़ा

मुंबई जैसे शहर में सर्वाइवल सबसे बड़ी समस्या है। फिल्मों में छोटे-छोटे काम तो मिल रहे था पर गुजारा के लिए पैसा भी जरूरी था, सो ‘क्राइम पैट्रोल’, ‘सावधान इंडिया’ जैसे शोज करने लगा। इस बीच मुझसे एक गलती हो गयी। मुझे अजय देवगन के साथ ‘वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई’ में काम करने का मौका जरूर मिला पर छोटा रोल जानकर मैंने उसे छोड़ दिया। बाद में फिल्म देखी तो पता चला फिल्म में खुद को साबित करने का अच्छा स्कोप था। वो अफ़सोस अब तक है।

खैर वक़्त से पहले और किस्मत से ज्यादा किसी को आजतक मिला भी नहीं है। पिछले साल कास्टिंग डायरेक्टर दिलीप शंकर सर के जरिये एक फिल्म ‘भोर’ मिली। ‘भोर’ अबतक कई नेशनल-इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल्स में प्रतिष्ठा पा चुकी है। इस साल दिसंबर तक शायद यह फिल्म थिएटर में आ जायेगी। फिर उसके बाद एक फिल्म फ्रेंड ‘बोले तो एनिमी’ में मुख्य भूमिका निभाई, जो अभी आने वाली है। इस बीच ‘बाटला हाउस’ जैसी फिल्म में भी काम करने का मौका मिला। तो यही है अबतक का सफर, जो अनवरत जारी है।

फैमिली का काफी सहयोग रहा

परिवार का शुरू से सहयोग रहा है। खासकर पिताजी का। बचपन में गांव के नाटकों में काम करने के लिए हमेशा प्रोत्साहित करते थे। आप ये सोचिये कि बचपन में एक नाटक लव-कुश कांड में अभिनय करने के लिए उन्होंने खुद बांस से धनुष बनाकर दिया था। तो पांच भाई-बहनों और मां-पिताजी का हमेशा से ही सहयोग रहा। मुंबई आने के बाद पिताजी को कभी-कभार चिंतित हो जाते थे, पर वो चिंता केवल मेरे सर्वाइवल को लेकर होती थी।

ऊब या खींज में कभी भी वापसी का ख्याल नहीं आया

मैं शुरू से ही पॉजिटिव रहा हूं। मुझे पता है कि अपने लिए ये रास्ता मैंने खुद चुना है। तो इस रास्ते का हर संघर्ष मेरे हिस्से ही आना है। बीच-बीच में हल्की उदासीनता के पल आते रहते हैं, पर हर बार मैं दोगुनी एनर्जी के साथ उठ खड़ा होता हूं। और ये मेरी खुशकिस्मती रही है कि जब-जब मैं अंदर से थोड़ा कमजोर पड़ा हर बार मुझे कोई न कोई काम मिल जाता है और मेरी एनर्जी दोगुनी हो जाती है।

आगे की योजनाएं

‘भोर’ और ‘फ्रेंड्स बोले तो एनिमी’ के अलावा कुछ फिल्मों के लिए बात चल रही है। इसके साथ ही गायन का भी शौक है तो बहुत जल्दी अपना एक गाना भी लेकर आ रहा हूं।

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