पटना : भारतेंदु जी की कविता का एक वाक्य है निज भाषा उन्नति अहे.. इसी में किसी भी भाषा के महत्व का मर्म छिपा है। अपनी सभी खुबियों और कमियों के बावजूद दुनिया की सारी भाषाएं अच्छी हैं। सभी भाषाओं का संरक्षण होना चाहिए। जिस तरह छोटी मछली को बड़ी मछली खा जाती है उसी तरह कई तथाकथित बड़ी भाषाएं भी छोटी भाषाओं को खाती जा रही हैं। दुनिया की कई भाषाएं लुप्तप्राय हो गई हैं। ऐसे में सजग और बुद्धिजीवियों को भाषाओं के संरक्षण की पहल करनी चाहिए। हर भाषा का अपना अलग महत्व है।
हमारे देश में भी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कारणों से कई भाषाएं प्रचलित हैं। इस विविधता को बनाए रखने की जरूरत है लेकिन राष्ट्रभाषा हिंदी को उसका उचित स्थान मिलना ही चाहिए। देश में जितनी भाषाएं हैं उनमें निर्विवाद रूप में हिंदी ही सबसे अधिक लोगों द्वारा व्यवहार की जानेवाली भाषा है। संविधान में भी उसे राजभाषा का दर्जा दिया गया है लेकिन हमारे राजनेताओं और व्यूरोक्रेट्स ने हिंदी को उसके अधिकार से वंचित रखा है।
मध्यकाल में शासन की भाषा फारसी रही
मध्यकाल में शासन की भाषा फारसी रही। ब्रिटिश शासनकाल में करीब 200 वर्षों तक अंग्रेजी का साम्राज्य रहा। आजादी के समय उचित मौका था हिंदी को राजकाज की भाषा बनाने का लेकिन हमारा दुर्भाग्य रहा कि उस समय के हमारे नेता और नौकरशाह अंग्रेजीपरस्त थे। उन्हें अंग्रेजी एलीट क्लास की भाषा लगती थी हिंदी सामान्य जन की। अंग्रेजी रौबदार लगती थी हिंंदी दीनहीन।
आजादी के बाद भी अंग्रेज़ी का राज है कायम आजादी के बाद एक मायने में कहा जाए तो गोरे तो चले गए लेकिन हमारे यहां काले(या कहें भूरे) अंग्रेजों का राज आ गया। इन्होंने अपनी सुविधा के लिए अंग्रेजी को ही राजकाज की भाषा बनाए रखा। नतीजतन हिंदी दोयम दर्जे की दासी बनकर रह गई। दक्षिण भारतीय राज्यों में हिंदी विरोधी आंदोलन हुआ उसका भय दिखाकर अंग्रेजी को देशवासियों पर लाद दिया गया। यह अजीब सी स्थिति है। गैरहिंदी भाषी लोग राजकाज में हिंदी को लागू करने का विरोध करते हैं लेकिन अंग्रेजी का नहीं। उन्हें विदेशी भाषा की गुलामी पसंद है लेकिन अपने राष्ट्र की भाषा हिंदी से परहेज है।
अंग्रेजीपरस्त लोग ये थोथा तर्क देते हैं कि अंग्रेजी में ही विज्ञान और आधुनिक टेक्नोलॉजी की पढ़ाई हो सकती है। उनको ये बताने की जरूरत है कि वैसे देश जो अंग्रेजों के गुलाम नहीं रहे हैं वो अपनी ही भाषा में इन विषयों की पढ़ाई करते हैं जैसे जर्मनी के लोग जर्मन में, फ्रांस के लोग फ्रेंच में, जापान के लोग जापानी और चीन के लोग चीनी भाषा में ही पढ़ाई करते हैं। इन सभी देशों की सरकारों के काम काज की भाषा भी वहीं है।