पावं लागी मलिकार। रउरा त कहीले कि रावन बड़का पंडित रहे। ओकर गलती अतने रहे कि सीता जी के उठा ले गइल। तबो मलिकार, ओकरा में एतना ईमान त बांचल रहे कि सीता जी के संगे कवनो बाउर बेवहार ना कइलस। चलीं, राम जी ओकरा के मार दिहले। हनुमान जी ओकर लंका जरा दिहले। ओकरा खानदान के केहू बांचल त ऊ रामजी के भगत हो गइल, बाकी त मराइए-ओरा गइले सन। तबो काहें हर साल लोगवा रावन के जारे-बारे में एतना आनंद मनावेला मलिकार। मलिकाइन के पाती ढेर दिन बाद आइल बा, बाकिर ओकर शुरुआते एतना सवाले से बा कि ओकर जवाब दिहल केहू खातिर आसान नइखे।
ऊ आगे शुरू भइल बाड़ी- ए मलिकार, सुने में आइल हा कि रावन जरावे के बेरा नीतीश जी के संगे फूल छाप वाला पाटी के केहुए ना रहे। हरदम झोलटंग नीयर सटल रहे वाला छोटका मोदियो जी ना गइले। काल्ह पांड़े बाबा खबर कागज पढ़ के बतावत रहवीं कि अब पहिले अइसन बात नइखे रह गइल। फूल छाप वाला लोग गते-गते नीतीश बाबू से दूर भइल जाता।
पांड़े बाबा के दुअरवा फूल छाप के झंडा अपना फटफटिया में बान्ह के घूमे वाला लवंगड़ापुर के लखनो सिंह आइल रहुवन। ऊ बतावे लगुवन कि नीतीशो बाबू ढेर अइंठे लागल रहले हां। उनका भरम हो गइल रहल हा कि उनका बिना फूल छाप के कल्यान नइखे होखे के। इहे भय देखा के ऊ फूल छाप के पांच गो सीट वोट के पहिलहीं हथिया लिहले। जवन फूल छाप पाटी कहे, ओकरा उलटा उनकर बतकही होत रहल हा। अब उनकरो आंख के पट्टर खुल गइल होई। साफ बुझा गइल होई कि उनकर मुर्गा बिना भी बिहान हो सकेला।
इहो पढ़ींः मलिकाइन के पातीः इयारी में बेसी होशियारी ठीक ना होखे नीतीश जी!
हमरा त अबहीं ले इहे बुझात रहल हा मलिकार कि दूनू पाटी के अइसन गंठजोरउल बा कि कहियो ना टूटी। बाकिर काल्ह के बात जवन पांड़े बाबा खबरिया पढ़ के बतावत रहवीं, ओइसे त बुझाता मलिकार कि ढेर दिन ले ई संघत नइखे निभे वाला। कई जने त ई कहत रहुवन कि फूल छाप वाली पाटी नीतीश बाबू के इशारा वोट के बादे से क रहल बिया कि ऊ आपन रास्ता देख लेस। बाकिर ऊ बूझत नइखन। ठीके कहल बा मलिकार कि दुधार गाय के लातो नीमन। उनकरा मुखमंतरी बनल रहे खातिर सगरी सांसत सह के फूल छाप के संगे रहहीं के परी।
जाये दीं मलिकार, हमहू कवन लमतरानी लेके बइठ गइनी। हालो-समाचार ना भइल। दसईं के मेला काल्ह सगरी लरिका गइल रहुवन सन। छंवड़ा पचास गो रुपिया लेके गइल रहुवे। केतनो कहवीं बाकिर पचास से कम पर ना मनुवे। लवट के अवे त पांच गो जिलेबी आ दूगो चोखा भरल पूड़ी लेके आइल रहुवे। हम पूछवीं कि ई का ह त कवन दूनी नाम धरत रहुवे। हं, सिंघाड़ा बतौउवे। हम त अबहीं ले जानत रहनी हां कि सिंघाड़ा पानी में होला। पूछवीं कि कतना में मिलल हा त कहुए कि चौबीस रुपिया के दूगो सिंघाड़ा आ दस रुपिया के पांच गो जिलेबी। हमार त माथ ठनक गउवे मलिका। बताई हमनी चार आना में तीन कोस पैदल जाके थावे के मेला घूम आवत रहनी सन। केतना महंगाई आ गइल। पाती लमहर हो गइल मलिकार, बाकी अगली बेर।
राउरे- मलिकाइन
यह भी पढ़ेंः भाजपा नीतीश को अब ढोने के मूड में नहीं : शिवानंद तिवारी