पटना। बिहार में निर्यात को बढ़ावा देने के लिए हर संभव मदद करेगी सरकार। यह बात उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने नाबार्ड के एक कार्यक्रम में कही। ज्ञान भवन, पटना में नाबार्ड द्वारा आयोजित राज्य क्रेडिट सेमिनार 2020-21 को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि स्टेट फोकस पेपर 2020-21 में बिहार के प्राथमिक क्षेत्रों के लिए आकलित ऋण क्षमता 1,36,830 करोड़ है। बैंक राज्य में इस लक्ष्य के अनुरूप ऋण वितरण करें। अगली बार से यह भी आकलन करें कि फोकस पेपर के अनुपात में कितना ऋण दिया गया।
देश से निर्यात में बिहार का योगदान 0.50 प्रतिशत है। वर्ष 2017-18 में बिहार से 1,748 करोड़ के 8.74 लाख मैट्रिक टन खाद्य पदार्थों व अन्य वस्तुओं का निर्यात किया गया जो 2018-19 में बढ़कर 9.35 लाख मैट्रिक टन हो गया, जिसका मूल्य लगभग 2025 हजार करोड़ है। इस दौरान बिहार के निर्यात की वृद्धि दर 64.1 प्रतिशत रही। बिहार से हुए कुल निर्यात में बासमति चावल 32 प्रतिशत, मक्का 26.9 व गेहूं 17.2 प्रतिशत रहा। बिहार सरकार भागलपुर के कतरनी चावल, मुजफ्फरपुर की लीची, गया का तिलकुट, सिलाव का खाजा व मधुबनी पेटिंग के निर्यात को बढ़ावा देने के मद्देनजर उसकी ब्रांडिग समेत हरसंभव मदद देने का प्रयास करेगी।
वर्ष 2020-21 में कृषि ऋण वितरण के लिए 52,243 करोड़ के लक्ष्य निर्धारण किया गया है। विगत तीन वर्षों में केसीसी धारक किसानों की संख्या 36.14 लाख से घट कर वर्ष 2018-19 में मात्र 19 लाख 55 हजार रह गयी हैं। बिहार में जब एसएचजी समूह की गरीब महिलाओं की कर्ज वापसी दर 98.5 प्रतिशत और एनबीएफसी कम्पनियों की वसूली दर 99 प्रतिशत है तो फिर बैंक किसानों से ऋण वापसी क्यों नहीं करा पाते हैं?
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आर्थिक सुस्ती के वर्तमान दौर में बैंकों को अधिक से अधिक कर्ज देना होगा। अगर कृषि प्रक्षेत्र में कर्ज प्रवाह नहीं बढ़ेगा तो बिहार का अपेक्षित विकास संभव नहीं होगा। मछली उत्पादन के क्षेत्र में बिहार आत्मनिर्भरता के करीब पहुंच गया है। यह गैप अब केवल 40 हजार मैट्रिक टन बच गया है। चालू वित्तीय वर्ष के अंदर ही बाहर से मछली आयात करने की आवश्यकता नहीं होगी। फिशरीज और डेयरी जैसे अपार संभावना वाले कोर सेक्टर में बैंकों को ऋण प्रवाह में तेजी लाने की जरूरत है।
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