अरविंद केजरीवाल का करंट अब दूसरे राज्यों को भी लगने लगा है

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अरविंद केजरीवाल और केंद्र सरकार के बीच विवाद, लगता है, कभी खत्‍म नहीं हो सकते। ताजा विवाद दिल्‍ली में घर-घर राशन वितरण योजना को लेकर शुरू हुआ है।
अरविंद केजरीवाल और केंद्र सरकार के बीच विवाद, लगता है, कभी खत्‍म नहीं हो सकते। ताजा विवाद दिल्‍ली में घर-घर राशन वितरण योजना को लेकर शुरू हुआ है।

दिल्ली। अरविंद केजरीवाल का करंट अब दूसरे राज्यों को भी लगने लगा है। दिल्ली विधानसभा के चुनाव परिणाम ने दूसरे राज्यों के लिए कई नसीहतें दी हैं। खासकर उन राज्यों के लिए, जिनके यहां आने वाले समय में चुनाव होने हैं। यानी बिहार और बंगाल। बंगाल में भी 75 यूनिट तक बिजली मुफ्त देने की तैयारी चल रही है। झारखंड भी 100 यूनिट तक बिजली मुफ्त देने की कवायद में जुट गया है।

बिजली फ्री और मुहल्ला क्लीनिकों को जो काम अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में किया, वही नुस्खा अपनाने को अब दूसरे राज्य बेताब हैं। अब उसी नक्शेकदम पर दूसरे राज्य भी बढ़ने लगे हैं। पहला काम झारखंड और बंगाल में निश्चित यूनिट तक बिजली फ्री करने का होने वाला है। बंगाल ने 75 यूनिट बिजली फ्री करने की बात कही है। झारखंड में 100 यूनिट फ्री बिजली का प्रस्ताव तैयार हो रहा है। झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने यह भी इशारा किया है कि दिल्ली की तरह ही अब झारखंड में भी मोहल्ला क्लीनिक खुलेंगे।

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यानी एक बात बिल्कुल साफ हो चुकी है कि बुनियादी सुविधाएं देकर ही जनता का दिल जीता जा सकता है। बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क जैसी बुनियादी चीजों को जो सरकार जितनी सस्ता करेगी, जनता उसकी ही ओर मुखातिब होगी। केजरीवाल ने यही काम किए और अपने दम पर सर्वाधिक सीटें विधानसभा में जीतने में कामयाबी हासिल की। उनके पास संसाधनों का अभाव भी था और केंद्र सरकार असहयोग भी, फिर भी राज्य सरकार ने सीमित अधिकार होते हुए भी ये सारी सुविधाएं जनता को दीं। इसके बावजूद उनके खजाने का प्रबंध बेहतर रहा। तभी तो लेखा महा परीक्षक (सीएजी) ने उनकी तारीफ की।

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अब वक्त बिहार में चुनाव का है। अब से तकरीबन आठ महीने बाद बिहार में चुनाव होने हैं। बिहार सरकार को भी दिल्ली जैसा ही कोई करिश्माई काम करना होगा, जिससे वह जनता को संदेश दे सके कि वह जनता के साथ है और लगातार जनहित के काम कर रही है। वैसे भी बिहार सरकार कई मामलों में अच्छा काम कर रही है। बिजली की हालत सुधरी हैं, सड़कें चकाचक हुई हैं। कनेक्टिविटी बढ़ी है। हर घर नल का जल पहुंचाने पर तेजी से काम हो रहा है, लेकिन एक क्षेत्र ऐसा है, जहां अभी बिहार सरकार को तेजी से काम करना होगा। वह है स्वास्थ्य का क्षेत्र।

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बिहार के स्वास्थ्य महकमे की हालत काफी खराब है। हाल ही में नीति आयोग ने 23 पैमानों पर आधारित वार्षिक स्वास्थ्य सूचकांक जारी किया तो इसमें बिहार सबसे निचले पायदान पर खड़ा दिखा। बिहार में 2015-16 के मुकाबले 2017-18 में स्वास्थ्य सेवाओं में सबसे ज्यादा गिरावट पायी गयी है। ऐसी स्थिति तब हुई है, जब राज्य और केंद्र सरकार में स्वास्थ्य मंत्री भाजपा कोटे के हैं। दोनों बिहार के ही हैं। मंगल पांडेय को बिहार की कमीन मिली है तो अश्वनी चौबे केंद्र सरकार में स्वास्थ्य राज्यमंत्री हैं।

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स्वास्थ्य के क्षेत्र में बिहार सरकार को अभी बहुत कुछ करना है। उसके लिए दिल्ली का मॉडल सबसे मुफीद साबित हो सकता है। बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं के बुरे हाल को समझने के लिए एक ही उदाहरण काफी है। लोगों को अपनी बीमारी पर जतना खर्च करना पड़ता है, उससे हर साल 4 करोड़ लोग गरीबी की सीमा रेखा से नीचे चले जाते हैं। बिहार में प्रतिव्यक्ति स्वास्थ्य सेवा पर ₹450 खर्च होते हैं, वही उत्तर प्रदेश में ₹890 खर्च होते हैं। स्वास्थ्य सेवाओं पर सर्वाधिक खर्च हिमाचल प्रदेश की सरकार करती है, जहां प्रतिव्यक्ति ₹2500 का प्रावधान है। यानी प्रतिव्यक्ति ₹450 के खर्च को ही आधार मानें और हिमाचल के प्रावधान से तुलना करें तो बिहार में 5 गुना अधिक रकम इलाज पर लोगों को अपनी जेब से खर्च करनी पड़ती है। आंकड़े बताते हैं कि बिहार का हर दूसरा बच्चा कुपोषण का शिकार है। ऐसे में बिहार सरकार को सर्वाधिक ध्यान स्वास्थ्य सेवाओं पर देना होगा। अगर नीतीश कुमार की सरकार ऐसा कर पाती है तो यह दिल्ली मॉडल की रिप्लिका होगी और यह जनता के हित में भी होगा।

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दिल्ली के चुनाव ने इतना तो साबित ही कर दिया है कि अब कोई भी दल जनता की उपेक्षा कर सिर्फ पैसे से चुनाव नहीं जीत सकता। उसे जनहित के ऐसे काम करने होंगे, जिससे आम आदमी के जीवन पर सीधा असर पड़े। कर्ज माफी का फार्मूला अब पुराना पड़ चुका है। लोगों को अब वैसी सुविधाएं चाहिए, जिससे तत्काल उसे महंगाई के डंक से राहत मिल सके। केजरीवाल ने जनता के इसी नब्ज को पकड़ा और कामयाब रहे। कोई भी दल अगर इस नब्ज को पकड़ पायेगा, वह कामयाब होगा।

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