- सुरेंद्र किशोर
भारतीय कम्युनिस्टों की एक बड़ी जमात ने 1962 में इस देश (भारत) पर जब चीन ने हमला हुआ तो चीन का साथ दिया, जो बाद में पार्टी से निकाल दिये गये। मूल कम्युनिस्ट पार्टी से इस कारण वे लोग निकाल दिए गए। उन कम्युनिस्टों ने बाद में सी.पी.एम. बनाई। मनुष्य पर जब विपदा आती है तो घर के और बाहर के लोगों की पहचान हो जाती है। जब किसी देश पर विपदा आती है तो देश के भीतर और बाहर के दोस्तों और दुश्मनों, खास कर छिपे दुश्मनों की पहचान हो जाती है। यानी विपदा एक मामले में ‘विपत्ति में वरदान’ भी साबित होती है।
1962 में जब चीन ने इस देश पर हमला किया तो भारतीय कम्युनिस्टों की एक बड़ी जमात ने चीन का साथ दिया। मूल कम्युनिस्ट पार्टी से इस कारण वे लोग निकाल दिए गए। उन कम्युनिस्टों ने बाद में सी.पी.एम. बनाई। फुलवामा की घटना भी उसी तरह ‘विपत्ति में वरदान’ साबित हो रही है। कुछ लोग एक बार फिर पहचाने जा रहे हैं। पहले तो सिर्फ अखबारों के जरिए दोस्तों व दुश्मनों की पहचान होती थी। अब तो इलेक्ट्रानिक मीडिया के जरिए बहुत सारे चेहरे बाहर आ जाते हैं। लोगों को दिखाई पड़ने लग जाते हैं। वे तरह-तरह के तर्क देकर भारत को ही फुलवामा के लिए दोषी ठहरा रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि यह पहली बार हो रहा है। नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने से पहले भी होता था। बाद में भी होता रहेगा। क्योंकि ऐसे लोग हमारे उदार लोकतंत्र का लाभ उठाते रहते हैं। हां, वैसे लोगों की संख्या बढ़ती-घटती रहती है।
मैं गलत साबित होना चाहता हूं!
मैं चाहता हूं कि मेरी कुछ आशंकाएं पूरी तरह गलत साबित हो जाएं। यानी, शाहीन बाग के आंदोलनकारी सुप्रीम कोर्ट का कहा मान लें। बिना शर्त मान लेंगे तो मैं गलत साबित हो जाऊंगा। वैसे मेरी आशंका है कि वे आंदोलनकारी दरअसल जेहादी तत्वों के पूरे प्रभाव में हैं। मुझे खुशी होगी, यह जानकर कि शाहीन बाग वाले शुद्ध आंदोलनकारी हैं और जेहादियों से दूर-दूर का भी उनका कोई रिश्ता नहीं है।
मेरी यह भी आशंका है कि शाहीन बाग वालों को सीएए-एनपीआर-एनआरसी के बारे में जेहादियों द्वारा यह समझा दिया गया है कि तीनों लागू होने से इस देश में इस्लाम भारी खतरे में पड़ जाएगा। उसका विकास रुक जाएगा। धार्मिक महत्वाकांक्षाएं विफल हो जाएंगी। मैं चाहता हूं कि मैं इस मामले में भी गलत साबित हो जाऊं कि एक समुदाय गजवा ए हिन्द कायम करना चाहता है। वैसे मेरी आशंकाएं ठोस अधार पर टिकी हैं,,फिर भी देशहित में मैं चाहता हूं कि मैं ही गलत साबित हो जाऊं।
मेरी हमेशा यह निजी राय रही है कि न तो हिन्दू राज कायम करने की कोई कोशिश करें और न ही मुस्लिम राज। दोनों समुदाय बराबरी के दर्जे के साथ मिलजुल कर रहें। इसी में दोनों की भलाई है अन्यथा प्रलय आ जाएगा। वैसे मेरा मानना है कि यहां के वास्तविक नागरिकों की,चाहे वे किसी समुदाय के हों, स्थिति पर सीएए-एनपीआर-एनआरसी से कोई खतरा है। इसे लागू करना देशहित में बहुत जरुरी है। मोदी-शाह एन.आर.सी. से पीछे हट रहे हैं। पर अगली किसी न किसी सरकार को इसे लागू करना ही पड़ेग। कांग्रेस सरकार ने भी अपने कार्यकाल में इन्हें लागू करने का वादा देश से किया भी था।
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