दिल्ली। YES BANK को संकट से उबारने का जिम्मा भले ही SBI (भारतीय स्टेट बैंक) ने लिया हो, लेकिन सच कहें तो उसकी भी हालत ठीक नहीं है। अगर सरकार के दबाव में स्टेट बैंक उसे उबारने की कोशिश करता है तो उसकी भी हालत आगे चल कर YES BANK जैसी हो जाये तो कोई आश्चर्य नहीं।
YES BANK के वित्तीय संकट में फंसने की सूचना मात्र से शेयर बाजार में हड़कंप मच गया है। उसके शेयर धराशायी हो गये हैं। बैंक के ग्राहकों की चिंता भी सरकार के आश्वासन के बावजूद कम होने का नाम नहीं ले रही। जिस दिन से YES BANK की शाखाओं और एटीएम से पैसे निकलने बंद हुए और रिजर्व बैंक ने 50 हजार से अधिक की निकासी पर रोक लगा दी, उसी दिन से बैंक के ग्राहकों का गुस्सा परवान पर है। लोगों के गुस्से को देखते हुए बैंक की शाखाओं पर पुलिस बल की तैनाती करनी पड़ी। गुरुवार से ही बैंक से 50,000 से अधिक की निकासी पर रिजर्व बैंक ने रोक लगा दी है।
बैंक के इस संकट में दो धार्मिक ट्रस्टों के पैसे भी फंस गए हैं। तिरुपति बालाजी ट्रस्ट ने एक दिन पहले बड़ी रकम निकाल ली थी, लेकिन भगवान जगन्नाथ के तकरीबन 550 करोड़ अंटक गये हैं। सीधे शब्दों में कहें तो ये पैसे फिलहाल डूब गये हैं। इसका असर यह हुआ कि 2 साल पहले तक बैंक का मार्केट कैप 86 हजार करोड़ से घट कर 4000 करोड़ पर आ गया है। इसका सीधा असर बैंक के शेयरों पर पड़ा है।
भारतीय अर्थव्यवस्था वैसे ही फिलवक्त डांवाडोल हालत में है। डालर के मुकाबले रुपया लगातार कमजोर हुआ है। इसका सीधा असर यह है कि आयात महंगा होगा और निर्यात सस्ता। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बैंक के ग्राहकों को आश्वस्त किया है वे घबराएं नहीं, उनका पैसा डूबेगा नहीं। जमाकर्ता का धन सुरक्षित है। इसका समाधान भी जल्द होगा।
समाधान के रूप में स्टेट बैंक बैंक ऑफ इंडिया को YES BANK के शेयर खरीदने को कहा गया है, लेकिन स्टेट बैंक इसे कितना उबार पाएगा, इसमें संदेह है। ऐसा इसलिए कि जिस NPA की वजह से YES BANK की यह दुर्गति हुई है, वैसे ही हालात भारतीय स्टेट बैंक के भी हैं। पहले से ही स्टेट बैंक का NPA बढ़ा हुआ है। वर्ष 2018-19 तक बैंक का NPA 184682 करोड़ रुपए था। हालांकि स्टेट बैंक ने इस अधि में अपने को मुनाफे में दिखाया था। रिजर्व बैंक ने एनपीए का मामला पकड़ा और तब पाया गया कि एनपीए को ले लिया जाये तो स्टेट बैंक मुनाफे में नहीं, बल्कि घाटे में है। 2019-20 की गणना अभी रिजर्व बैंक ने नहीं की है।
अब सूचना है कि सरकार के दबाव में YES BANK को स्टेट बैंक सहारा देगा। इसका प्रतिकूल असर स्टेट बैंक के शेयरों पर पड़ा। यानी निवेशक पहले से ही स्टेट बैंक के एनपीए से भयभीत थे और अब एनपीए के कारण डूब रहे यस बैंक को उसने उबारने के लिए उसमें हिस्सेदारी खरीदी तो निवेशकों का बंटाधार हो सकता है। इस सूचना के बाद भारतीय स्टेट बैंक के शेयर 5 फीसदी तक गिर गए। शुक्रवार को भी हालात कुछ ऐसे ही रहे। स्टेट बैंक के शेयर गिरावट के साथ खुले और इसका असर शेयर बाजार पर पड़ा।
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यस बैंक के शेयर 34% तक शुक्रवार को गिर गये। भारतीय स्टेट बैंक के शेयर में करीब 6 फ़ीसदी की गिरावट नजर आयी। भारतीय स्टेट बैंक की हालत को देखकर अब लोग उस पर भी भरोसा करने से डरने लगे हैं। निवेशकों और ग्राहकों को यह बात पच नहीं रही कि खुद ही एनपीए के भार से जो बैंक दबा है, वह एनपीए की वजह से डूब रहे दूसरे बैंक को कैसे बचा पाएगा। अगर ऐसा होता है तो उसके भी डूब जाने का खतरा बढ़ जाएगा।
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भारतीय अर्थव्यवस्था की हालत लगातार खस्ता हो रही है। चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर गिरकर 4.7 प्रतिशत पर आ गयी। यह गिरावट पिछले 6 साल के दौरान सबसे अधिक है। हालांकि केंद्रीय वित्त मंत्री इसे बहुत खराब नहीं मानतीं। उनका कहना है कि यह अर्थव्यवस्था की स्थिरता की निशानी है। वह इसे अर्थव्यवस्था की bottom-line मानती हैं। उनका दावा है कि अर्थव्यवस्था में अब स्वाभाविक वृद्धि होगी। कोई भी समझदार व्यक्ति इसे सच स्वीकारने में हिचकेगा। इसलिए कि यह लगातार 8 तिमाही यानी 2 वर्षों से गिरावट जारी है। सरकार खुद कहती है कि 2019-20 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 5 प्रतिशत रहेगी।
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अर्थव्यवस्था की खस्ताहाली की दूसरी वजह यह है कि कार्पोरेट बिक्री की दर अक्टूबर-दिसंबर के दौरान 1.2% तक गिरी है। इससे पहले की तिमाही में गिरावट 2.8% थी। इसी तरह टैक्स के पहले का मुनाफा यानी (PBT) गिरा है। पिछले तिमाही में यह गिरावट 60% थी। इसकी वजह से केंद्र सरकार सरकार को टैक्स के रूप में मिलने वाली आय घटी है। केंद्र सरकार की हालत यह है कि अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए उसे रिजर्व बैंक से हाल ही में 1,76000 करोड़ रुपये का कर्ज लेना पड़ा। जीवन बीमा निगम (LIC) का भी एनपीए लगातार बढ़ रहा है। सारव्जनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) में सरकार लगातार विनिवेश कर रही है। रेलवे जैसे बड़े उपक्रम को सरकार आहिस्ता-आहिस्ता निजी हाथों में सौंपने की तैयारी कर चुकी है। कुल मिला कर हालात ऐसे बन गये हैं कि आर्थिक आपात काल (Eonomic Emergency) की ओर देश बढ़ता दिख रहा है।
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