DELHI : सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने फिलहाल राज्यसभा में भेजे जाने के मसले पर हो रही आलोचनाओं का जवाब देने से मना किया है। उनका कहना है कि अभी वे दिल्ली से बाहर हैं। शपथ लेते ही वे सब कुछ साफ-साफ बता देंगे। उनको राज्यसभा में भेजे जाने पर विरोधी दलों में खासा नाराजगी है।
विपक्ष का मानना है कि रंजन गोगोई ने सीजेआई रहते सरकार के मनोनुकूल फैसले सुनाए। इसलिए सरकार ने उसी का पारितोषिक उन्हें राज्यसभा में भेजकर दिया है। देश के 46 में सीजीआई रहे रंजन गोगोई न्यायपालिका की ऐसी पहली शख्सियत नहीं हैं, जिन्हें राज्यसभा भेजा जा रहा है। पहले भी इंदिरा गांधी ने कई जजों को राज्यसभा भेजा था। एक जज के बारे में तो यह भी कहा गया कि एक मुख्यमंत्री के भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने में उन्होंने जो मदद की, उसका पुरस्कार इंदिरा जी ने दिया।
दरअसल रंजन गोगोई चीफ जस्टिस की भूमिका में रहते हुए अपने कई फैसलों के कारण चर्चा में रहे। उन्होंने राम मंदिर समेत कई बड़े और चर्चित मामलों में ऐतिहासिक फैसले सुनाये थे। अपने कार्यकाल के तकरीबन साढ़े 13 महीनों में उन्होंने न सिर्फ अयोध्या विवाद का निपटारा किया, बल्कि चीफ जस्टिस के दफ्तर को भी आरटीआई के दायरे में लाने, सरकारी विज्ञापनों पर नेताओं की तस्वीर लगाने से रोकने जैसे कई ऐसे फैसले सुनाए थे, जिनकी उस वक्त तारीफ हुई थी।
जहां तक अयोध्या विवाद का सवाल है रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय संविधान पीठ बनी थी। पीठ ने सर्वसम्मति से अयोध्या के 7 दशक पुराने विवाद को सलटाया। उन्होंने अपने फैसले में 2.77 एकड़ विवादित जमीन पर राम मंदिर निर्माण का फैसला सुनाया था। दूसरे पक्ष सुन्नी वक्फ बोर्ड को उन्होंने दूसरी जगह पर 5 एकड़ वैकल्पिक भूमि मुहैया कराने का आदेश दिया, जिस पर मस्जिद का निर्माण होना है। गोगोई के अलावा जस्टिस एसए बोबडे (अभी सीजेआई), जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर बेंच में शामिल थे।
सबरीमाला प्रकरण पर भी गोगोई का फैसला काफी चर्चित रहा। सबरीमाला में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश के मुद्दे को लेकर दाखिल की गई सभी पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए उन्होंने इसे 7 जजों की संविधान पीठ के पास भेज दिया था। पीठ ने 3-2 मत से फैसला सुनाया। अब भी इस मामले पर सुनवाई नौ जजों की संविधान पीठ में चल रही है।
जस्टिस गोगोई से कांग्रेस इसलिए खफा है कि राफेल डील की जांच के लिए दाखिल रिव्यू पिटिशन को उनके नेतृत्व वाली पीठ ने खारिज कर दिया था। इससे सरकार को बहुत बड़ी राहत मिली थी। संविधान पीठ ने साफ-साफ कहा कि जांच अलग से कराने की कोई आवश्यकता नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने तमाम याचिकाओं को खारिज कर दिया था।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बयान- चौकीदार चोर है- पर भी गोगोई ने उन्हें नसीहत दी थी। बाद में राहुल गांधी ने माफी भी मांगी थी। अदालत ने यह भी कहा था कि राहुल गांधी भविष्य में ऐसी बयानबाजी से बचें। सनद रहे कि बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी ने राहुल गांधी के- चौकीदार चोर है- बयान पर अवमानना याचिका दाखिल की थी। मामला यह था कि राफेल मामले में मोदी सरकार पर हमला करने के लिए राहुल गांधी ने कोर्ट का भी जिक्र किया था। रंजन गोगोई ने चीफ जस्टिस रहते चीफ जस्टिस के कार्यालय को भी कुछ शर्तों के साथ सूचना के अधिकार कानून के तहत लाने का फैसला सुनाया था। उन्होंने कहा था कि सीजेआई. का ऑफिस भी पब्लिक अथॉरिटी है।
आइए अब जानते हैं कि रंजन गोगोई कौन हैं। वे 3 अक्टूबर 2018 से लेकर 17 नवंबर 2019 तक देश के चीफ जस्टिस की भूमिका में रहे। उनका कार्यकाल तकरीबन साढे 13 महीने का रहा। वे उन चार जजों में भी शामिल थे, जिन्होंने रोस्टर विवाद को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। इसके अलावा उन पर यौन उत्पीड़न के भी आरोप लगे थे। 18 नवंबर 1954 को जन्मे रंजन गोगोई के पिता असम के मुख्यमंत्री थे। रंजन गोगोई की शुरुआती पढ़ाई डॉन बॉस्को स्कूल से हुई। दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से उन्होंने ग्रेजुएशन किया। 1978 में उन्होंने वकालत के लिए रजिस्ट्रेशन कराया। 28 फरवरी 2001 को उन्हें गुवाहाटी हाई कोर्ट का परमानेंट जज बनाया गया। 23 अप्रैल 2012 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया था।
पहले भी जजों को राज्यसभा में भेजा जाता रहा है। मुख्य न्यायाधीश रहे मोहम्मद हिदायतुल्लाह को 31 अगस्त 1979 को उपराष्ट्रपति बनाया गया। 30 अगस्त 1984 तक वे भारत के उपराष्ट्रपति व राज्यसभा के पदेन सभापति रहे। भारत के चीफ जस्टिस रहे रंगनाथ मिश्रा को रिटायरमेंट के बाद सरकार ने राज्यसभा भेजा था। वे 1998 से 2004 तक सदस्य रहे। उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता भी ली थी। तब उन पर यह आरोप लगा था कि सिख विरोधी दंगों में उन्होंने कांग्रेस को क्लीन चिट दी थी, इसलिए उन्हें वह इनाम दिया गया।
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बहारूल इस्लाम का नाम भी आता है। 1952 में कांग्रेस पार्टी में शामिल होने के बाद वे लंबे समय तक पार्टी के लिए काम करते रहे। इंदिरा गांधी ने उनसे इस्तीफा दिलवाकर 1972 में हाई कोर्ट का जज बना दिया। रिटायर होने के बाद उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया। रिटायरमेंट के 6 महीने पहले इस्तीफा देकर वह कांग्रेस पार्टी से चुनाव भी लड़े थे।
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