राम मनोहर लोहिया जनसंघ के राष्ट्रवाद को पसंद करते थे

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राम मनोहर लोहिया
राम मनोहर लोहिया

राम मनोहर लोहिया जनसंघ के प्रखर राष्ट्रवाद को पसंद करते थे, पर शर्तों के साथ। वे जनसंघ के प्रखर राष्ट्रवाद  को पसंद करते थे। लेकिन इस बात पर बल देते थे कि प्रखर राष्ट्रवाद के साथ अगर सामाजिक न्याय नहीं जोड़ा गया तो राष्ट्रवाद रूमानी रहेगा। उसमें शक्ति पैदा नहीं होगी। लोहिया की जयंती पर बता रहे वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोरः

कांग्रेसी नेता बसंत साठे ने डा. लोहिया के बारे में कहा था कि ‘मैं समझता हूं कि डा. लोहिया एक महान चिंतक, एक बड़े रहस्यमय बुद्धिमान विचारक और सारे समाज के लिए एक आंतरिक अनुकम्पा रखने वाले, प्यार रखने वाले और वेदना रखने वाले, जो अन्याय हो रहा है, उसके खिलाफ लड़ने वाले नेता थे। ऐसे विचार के व्यक्ति से आज भी बहुत प्रेरणा मिल सकती है और समाज में खासकर विचार करने वाले नौजवानों को प्रेरणा लेनी चाहिए, इस देश को बनाने के लिए।’

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विचारक और समाजवादी नेता दिवंगत राम नंदन मिश्र ने लोहिया के बारे में लिखा था कि ‘राम मनोहर के जीवन में, ऐसा लगता था, जैसे अन्याय और पाखंड के विरूद्ध उनका क्षोभ, केवल उनके अंतर की भावना न रह कर, उनके रक्त-मांस तथा स्नायु तंतुओं को झंकृत कर दिया करते थे। उनकी इस वृत्ति के उद्दाम रूप को देख कर कभी-कभी अवाक् हो जाता था।’

‘एक दिन लखनऊ में आचार्य नरेंद्र देव जी के निवास पर हम दोनों एक कमरे में विश्राम कर रहे थे। अकेला पाकर मैंने पूछा, ‘राम मनोहर, तुम्हारी इस आग का ऐतिहासिक स्रोत कहां है, बता सकते हो? मुझे लगता है कि तुम्हारे जीवन की किसी घटना में इसका स्रोत छिपा है।’ वह उठकर बैठ गए। कहने लगे- जब मैं चार वर्ष का बच्चा था, उस समय ही, मेरे साथ खेलने के लिए धनियों के बच्चे आते। परंतु उनका व्यवहार मेरे अंतर पर चोट करता था। सात-आठ वर्ष की उम्र में इसी तरह कलकत्ता के लखपतियों के बच्चों को करते देखा। इस व्यवहार से वितृष्णा और विक्षोभ जो जगे, वे मेरे अंतर की अमिट लकीर बन गए। आगे आकर नेताओं के पाखंड और अवसरवादिता ने इस अग्नि में घी की आहुति दी।’

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अटल बिहारी वाजपेयी ने डा. लोहिया के बारे में लिखा है कि ‘डा. लोहिया का व्यक्तित्व सचमुच अनूठा था। मैं उनकी गणना चिंतकों में करता हूं। चिंतक भी मौलिक चिंतक-प्रतिबद्ध समाजवादी थे। लेकिन उनका व्यक्ति की स्वतंत्रता और गरिमा में अटूट विश्वास था। लोकतंत्र की बलि चढ़ाकर लाए गए समाजवाद के वे विरूद्ध थे। वे जनसंघ के प्रखर राष्ट्रवाद  को पसंद करते थे। लेकिन इस बात पर बल देते थे कि प्रखर राष्ट्रवाद के साथ अगर सामाजिक न्याय नहीं जोड़ा गया तो राष्ट्रवाद रूमानी रहेगा। उसमें शक्ति पैदा नहीं होगी। हम भी इस दिशा में काम कर रहे थे।’

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मुसलमानों के साथ उनके संबंधों के बारे में अटल जी ने लिखा कि ‘उनके साथ मुसलमान तो थे ही, इससे भी अधिक उन्हें इसका श्रेय जाता है कि उन्होंने अपने साथ के मुसलमानों को सच्चा राष्ट्रवादी बनाया। कांग्रेस के साथ जो मुसलमान थे, वे भी राष्ट्रवादी होते थे, मगर इस सीमा तक नहीं, जितने कि डा. साहब के साथ जाने वाले होते थे। उनमें देश की मिट्टी से प्यार, देश की संस्कृति के बारे में अभिमान था। उनके साथ जो मुसलमान होते थे, मैं तो उन्हें देखकर बहुत प्रसन्न होता था।’

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राम मनोहर लोहिया के प्रति चंद्रशेखर ने इन शब्दों में भावोद्गार प्रकट किए थे, ‘संसद में प्रधान मंत्री के रूप में डा. लोहिया के चित्र का अनावरण करते समय मैंने कहा था कि मैंने थोड़े दिनों तक डा. लोहिया के नेतृत्व में काम किया। लेकिन यह गौरव मुझे प्राप्त नहीं था कि मैं यह कह सकूं कि उनका सान्निध्य मुझे इतने निकट से प्राप्त था, जैसे रवि राय को या हमारे मित्र और भाई मधु लिमये जी को प्राप्त था। लेकिन मैं इतना जानता हूं कि समाजवादी आंदोलन के एक कार्यकर्ता के रूप में हमने डा. लोहिया को एक विचारक के रूप में देखा है, जिसने समाजवाद की परिभाषा को एक नया आयाम दिया है।

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न केवल हमारे देश के लिए, बल्कि दुनिया के समाजवादियों के लिए डा. लोहिया एक प्रेरणा स्रोत थे। दुनिया में जितने क्रांतिकारी थे, हथियार वाले नहीं, जो विचार से, मानसिक दृष्टि से क्रांति के बिगुल को बजाना चाहते थे, उनमें मैं यह कह सकता हूं कि दुनिया के क्रांतिकारियों में डा. लोहिया अग्रिम पंक्ति में खड़े होने वाले क्रांतिकारी नेता थे।’

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