राज्यसभा नहीं, वरन भारत रत्न के लायक हैं रंजन गोगोई ! सुप्रीम कोर्ट के अवकाश प्राप्त चीफ जस्टिस को भाजपा ने राज्यसभा के लिए नामित किया है। इस पर विपक्ष की तीखी आलोचना सामने आ रही है। कई तरह के लांछन लगाये जा रहे हैं। गोगोई भी उसका जवाब अपने अंदाज में दे रहे हैं। लेकिन वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर तो उन्हें भारत रत्न देने के योग्य मानते हैं। पढ़ें उनकी कलम सेः
- सुरेंद्र किशोर
इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर जज जगमोहन लाल सिन्हा को मोरारजी देसाई सरकार के शासनकाल में राज्यपाल पद का आफर मिला था। ऐसा मैंने सुना था। पर, उन्होंने उसे ठुकराते हुए कहा था कि ‘किताबें पढ़ने और अपनी बागवानी में बढ़ते हुए पौधों को देखने में जो सुख है, वह अन्यत्र नहीं।’
याद रहे कि इंदिरा गांधी के चुनाव को 1975 में इसी जज ने रद किया था। आरोप भ्रष्ट तरीके अपनाने का था। आरोप गंभीर नहीं थे। एन.पालकीवाला ने तो कहा था कि ‘‘प्रधान मंत्री ने ट्रैफिक नियम भंग करने जैसा मामूली अपराध किया था।’’ पर, जज जगमोहन तो 24 कैरेट के सोना थे। उन्हें नियम-भंग तनिक भी मंजूर नहीं था।
अब माननीय रंजन गोगई पर आइए। मेरी समझ से उन्होंने ‘भारत रत्न’ पाने लायक काम किया था। पर, राज्यसभा स्वीकार कर न्यायपालिका की गरिमा नहीं बढ़ाई। कम से कम सुप्रीम कोर्ट के किसी न्यायाधीश को ऐसा कोई पद स्वीकार नहीं करना चाहिए। ऐसा नियम बने।
पिछले कुछ दशकों में कुछ विचलनों के बावजूद आमतौर पर हमारे सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर सकारात्मक हस्तक्षेप किया है। नहीं किया होता, तो इस देश का क्या होता? यही होता कि पक्ष-विपक्ष की राजनीति में सक्रिय आधुनिक चंगेज खानों और वारेन हेस्टिंग्सों ने अब तक इस देश को पूरी तरह लूट लिया होता।
वैसे भी अब तक जितना लूटा है और बेहतर निगरानी के बावजूद अब भी लूट रहे हैं, वह भी कोई कम नहीं है। इस देश में तो इन दिनों असल लड़ाई लुटेरे नेताओं आदि बनाम लूट को रोकने की कोशिश करने वालों के बीच ही हो रही है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका कुल मिलाकर सही रही है।
राजनीति के इस कलियुग में इतनी बड़ी जिम्मेदारी उठा रहे सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को यह शोभा नहीं देता, जो काम रंजन बाबू ने किया। मैं एक संपादक को जानता हूं, जिसे एक चतुर मुख्यमंत्री ने राज्यसभा पद का झूठा आफर दे दिया था। उस आफर के बाद तो वह संपादक उस विवादास्पद मुख्यमंत्री के पक्ष में ‘‘ओवर एक्टिव’’ हो गया था। उसे न तो वह पद मिलना था और न मिला। उसी तरह यदि सुप्रीम कोर्ट के किसी जज को कोई चतुर सत्ताधारी नेता राज्यसभा या गवर्नर पद का आफर दे दे तो कितने जज लोभ संवरण कर पाएंगे? फिर इस देश की जनता की उम्मीदों का क्या होगा, जो वह सबसे बड़ी अदालत से लगाए रहती है?
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अब यह जानिए कि मैं रंजन बाबू को भारत रत्न के काबिल क्यों मानता हूं। गत कई सदियों में बाबरी मस्जिद-राम मंदिर विवाद को लेकर दोनों समुदायों के हजारों लोगों की जानें गईं। यदि पिछले साल सुप्रीम कोर्ट का निर्णय नहीं आया होता तो आगे भी न जाने क्या-क्या होता! पर सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद-142 का प्रयोग करते हुए इस विवाद को हल कर दिया। जिस बेंच ने इसे हल किया, उसके प्रमुख क्या भारत रत्न के काबिल नहीं? अब तक के दर्जनों भारत रत्नों में से कितनों ने ऐसा ऐतिहासिक काम किया है?
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