मैला आँचल का संदेश  क्या है, आइए जानते हैं इस बारे में

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मैला आँचल क्या है? मैला आँचल भारत माता का है और यह ग्रामवासिनी है। यह मलीन है, उदास है, दुखी है। भारत माता हमारी मातृभूमि और उस पर रहने वाले लोग हैं।
मैला आँचल क्या है? मैला आँचल भारत माता का है और यह ग्रामवासिनी है। यह मलीन है, उदास है, दुखी है। भारत माता हमारी मातृभूमि और उस पर रहने वाले लोग हैं।
  • भारत यायावर 
भारत यायावर
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मैला आँचल का संदेश क्या है? यह जानने के पहले यह जानना जरूरी है कि मैला आँचल क्या है? मैला आँचल भारत माता का है और यह ग्रामवासिनी है। यह मलीन है, उदास है, दुखी है। भारत माता हमारी मातृभूमि और उस पर रहने वाले लोग हैं। दुख-दर्द में डूबे हुए लोग। अर्द्धनग्न, अशिक्षित, भूखे, असहाय। इसीलिए भारत माता का यह ग्रामीण समाज मैला है।

‘मैला आँचल’ उपन्यास का उद्देश्य है इस ग्रामीण अंचल के प्रति दुनिया के लोगों का ध्यान आकर्षित करना। यह उद्देश्य ही अपने-आप में एक संदेश है और संदेश ही प्रेरणा है। इसके बगैर कृति मानो प्राणहीन है। उसके प्रेरक तत्त्वों में ही उसका संदेश अंतर्निहित होता है। संदेश ही मंतव्य है। कभी-कभी कथाकार अपने पात्रों के माध्यम से भी अपने मंतव्य को प्रकट करता है।

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और संदेश कथाकार की उदात्त चेतना और समझ को भी दर्शाता है। चूंकि यह भारत माता का मैला आँचल है, इसलिए इसमें राष्ट्रीय भावना भी प्रबल रूप से प्रकाशित है।

फणीश्वरनाथ रेणु के वाक्यों को अलग-थलग कर पढ़ने से उनका विहँसता हुआ विलक्षण रूप प्रकट होता है। इन पंक्तियों को मैं जब भी पढ़ता-गुनता हूँ तो ‘मैला आँचल’ का संदेश गुंजरित होने लगता है : मैं प्यार की खेती करना चाहता हूँ। आँसू से भींगी हुई धरती पर प्यार के पौधे लहलहायेंगे। मैं साधना करूँगा, ग्रामवासिनी भारतमाता के मैले आँचल तले! कम-से-कम एक ही गाँव के कुछ प्राणियों के मुरझाए ओठों पर मुस्कुराहट लौटा सकूँ, उनके हृदय में आशा और विश्वास को प्रतिष्ठित कर सकूँ।”

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पहली बात है प्यार की खेती करने की कामना। जीवन के मूल आधार में एक है खेती करना। खेती से ही भोजन मय्यसर हो पाता है। लेकिन रेणु अन्न से ऊपर उठकर प्रेम की खेती करना चाहते हैं। क्यों? प्यार ही जीवन को सरस, सुन्दर और सुवासित बनाता है। दुर्दान्त मनुष्य को भी संवेदनशील बनाता है। प्यार ही मनुष्य के मन को हरा-भरा बनाता है। लेकिन मन का खेत आँसुओं से भींगा है। आँसू, पीड़ा, यंत्रणा, दुखी जीवन की पहचान है। आर्थिक रूप से सम्पन्न होकर भी दुख से छुटकारा नहीं। प्यार की खेती कर ही इस अंचल को सुखी बनाया जा सकता है। मन के विषैले तत्त्वों को इसी से पवित्र और सरस बनाया जा सकता है।

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प्यार के जब पौधे लहलहायेंगे, तब मैला आँचल निर्मल हो सकेगा। तभी मुरझाए ओठों पर मुस्कुराहट लौट सकती है। उनके जीवन में आशा और विश्वास तभी स्थापित हो सकेगा। फणीश्वर नाथ रेणु की साधना ही प्रेम की है। लेकिन वे अपने ग्रामीण जीवन से जिस तरह घनिष्ठ रूप में जुड़े हुए थे, उसे खुशहाल देखना चाहते थे, यही तो उनकी मूल चेतना है। मुक्तिबोध की काव्य-पंक्तियाँ हैं : समस्या एक/ मेरे सभ्य नगरों और ग्रामों की/ सभी मानव

सुखी, सुन्दर औशोषणमुक्त कब होंगेरेणु का भी यही उद्देश्य है। मैला आँचल का संदेश भी यही है। यह एक उदात्त भावना है। चेतना का उज्ज्वल रूप है। ममता हँसती है- “मन करता है, किसी को आँचल पसारकर आशीर्वाद दूँ- तुम सफल होओ! मन करता है, किसी कर्मयोगी के बढ़े हुए चरणों की धूलि लेकर कहूँ….।”

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यहाँ रेणु कर्मयोगी शब्द का प्रयोग कर पूरे प्रसंग को ऊँचाई पर ले जाते हैं। चरण-धूलि को लेकर कहना, उसी भारतीय परम्परा का अनुगमन करना है, जिसे प्रसाद ने कामायनी में प्रकाशित किया है : आँसू से भींगे अंचल पर/ मन का सबकुछ रखना होगा/ तुमको अपनी स्मित रेखा से/  यह संधिपत्र लिखना होगा।

इस तरह फणीश्वर नाथ रेणु हिन्दी साहित्य की गौरवशाली परंपरा से अपने को जोड़ने का कार्य करते हैं। कालजयी कृति कोई तब बनती है, जब उसके संदेश में नवजागरण की स्फूर्ति हो। मैला आँचल उपन्यास इसलिए सिर्फ यथार्थवादी बनकर नहीं रह जाता, अपितु कर्मवीर बनकर सेवा भाव को संचरित करता है। यह मार्क्सवादी नजरिए से नहीं, गाँधी की सेवा-भावना से संचालित है।

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