कोरोना काल में ऐसी खबरें, जो भारत की ताकत का एहसास कराती हैं

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कोरोना काल में ऐसी खबरें, जो भारत की ताकत का एहसास कराती हैं
कोरोना काल में ऐसी खबरें, जो भारत की ताकत का एहसास कराती हैं

कोरोना काल में ऐसी अनेक खबरें आईं हैं,  जिसमें बताया गया कि घर में मौत हो गई, और फलां अधिकारी-कर्मचारी दूसरे दिन काम पर लौट आया। घर में छोटे-छोटे बच्चों को छोड़कर मां सेवा कार्य  में जुटी हैं। यह है हमारे देश की ताकत-कोरोना काल हमें यह बता भी रहा है। कोरोना काल ही बता रहा है कि देश की पहली महिला यानी राष्ट्रपति की धर्मपत्नी सविता कोविंद भी  मास्क सिल कर बंटवा रही हैं। यह है भारत, यही है असली इंडिया। यह तो चंद उदाहरण हैं, ऐसी लाखों कहानियां हैं। कोरोना डायरी (6) का एक अंश

  • डा. संतोष मानव            
डा. संतोष मानव
डा. संतोष मानव

कोरोना काल से उपजे भय, आशंका, परेशानी और घर में कैद हो जाने का यह असर है या खाली समय का फितूर? यही कि आजकल लोकगीत सुहाते हैं। बहुत समय नहीं हुआ, जब लोकगीत-संगीत, लोकनाट्य, लोककला से प्रेम नहीं था। विरोध भी नहीं था, पर अंदाज- ठीक है न, वाला था। आज तय किया था कि यू ट्यूब पर लोकगीत सुनेंगे- विभिन्न बोलियों के गीत- खासकर भोजपुरी, अवधी और खोरठा के लोकगीत।

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दिन के ग्यारह बजे थे। यू ट्यूब टटोलने, बदलने-छांटने में खासा समय गया। तय हुआ कि पहले मैथिली ठाकुर को सुना जाए। कम समय में इस बच्ची ने अच्छा नाम कमाया है। मैथिली ठाकुर की आवाज में सोहर। सोहर घर में संतान होने पर गाया जाने वाला मंगलगीत है- युग-युग जियसु ललनवा, भवनवा के भाग जागल हो, ललना लाल होहिए कुलवा के दीपक, मनवा में आस जागल हो—-। पहला गीत ही पूरा हुआ था कि मोबाइल पर एक वेबसाइट का नोटिफिकेशन आया। दिल दहला देने वाली खबर थी- इरफान नहीं रहे। पान सिंह तोमर वाला इरफान। इस  अमंगल के बाद मंगल कहां? घंटों, अब भी दिल-दिमाग पर  पान सिंह तोमर के संवाद हैं- बीहड़़ में बागी होत है–डकैत मिलत हैं पार्लियामेंट में–। पान सिंह का सजीव अभिनय। चंबल का पान सिंह–दिल-दिमाग, टेलीविजन पर इरफान छाए थे। इससे अलग होना मुश्किल था। सोशल मीडिया पर भी इरफान-मदारी, मकबूल, पान सिंह तोमर वाला इरफान। शाम तक इरफान- वेग कुछ कम हुआ, तब कोरोना चिंतन।

घाव कितना भी गहरा हो, वक्त का मरहम उसे धीरे-धीरे भर ही देता है। कहने की बात है, तुम्हारे या आपके बिना जी न पाएंगे और वही इंसान जब नहीं होता है, हम धीरे-धीरे सहज हो ही जाते हैं। इरफान को भी भूल ही जाएगी दुनिया? हां, जब-जब इरफान की फिल्म सामने होगी, उनकी याद जरूर आएगी। यह भी याद आएगा कि कोरोना काल में ही इस उम्दा अभिनेता को हम खो बैठे थे।

लेकिन, क्या कोरोना सिर्फ कोसने के लिए है? क्या भारत देश की शक्ति पहचानने का समय यह नहीं है?  कैसे-कैसे हाथ, एक दूसरे की मदद के लिए सामने आ रहे हैं। आपने उत्तराखंड की देवकी भंडारी की कहानी सुनी? नहीं सुनी न, तो सुनिए। देवकी साठ साल की महिला हैं। एक दिन बैंक पहुंच गईं, कहा कि कोरोना पीड़ितों के लिए पीएम फंड में सहयोग करना है। बैंककर्मी ने सहज भाव से एक पर्ची बढ़ा दी, उसे लगा कि होगा हजार-दो हजार का सहयोग। पता है, देवकी भंडारी ने कितने का चेक दिया, पूरे दस लाख। बैंककर्मी की आंखें फटी रह गईं। यह है हमारे देश की ताकत। एक महिला जो अकेली हैं, अभी जिंदगी बाकी है। पूरी जिंदगी की कमाई देश के लिए दान कर आई। यह न सोचा कि उसका क्या होगा!  किसी दूसरे देश से ऐसी कहानी सामने नहीं आती। अगर कभी आई भी होगी, तो इक्का-दुक्का। देश के लिए दिल निकाल देने वाले इसी देश में होते हैं।

शहर-शहर, बस्ती-बस्ती यूं ही लगंर, भोजन केंद्र नहीं चल रहे हैं। दिल्ली का बंगला साहिब गुरुद्वारा हर रोज हजारों-हजार लोगों को इस कोरोना काल में भोजन करा रहा है। शहर-शहर लोगों की टीम भोजन पैकेट लिए तैयार है। मकसद एक ही है- कोई भूखा न रहे। सोशल मीडिया पर संदेश तैर रहे हैं- किसी को दिक्कत है, कोई परिवार भूखा है तो फलां नंबर पर संपर्क करें। यही वह देश है, जहाँ संकट में आगे बढ़ने वाले हाथों की कमी नहीं पड़ती। यही वह देश है, जहां संकट के समय परिवार गौण, देश प्रमुख हो जाता है। इसी कोरोना काल में ऐसी अनेक खबरें आईं हैं,  जिसमें बताया गया कि घर में मौत हो गई, और फलां अधिकारी-कर्मचारी दूसरे दिन काम पर लौट आया। घर में छोटे-छोटे बच्चों को छोड़कर मां सेवा कार्य  में जुटी हैं। यह है हमारे देश की ताकत-कोरोना काल हमें यह बता भी रहा है। कोरोना काल ही बता रहा है कि देश की पहली महिला यानी राष्ट्रपति की धर्मपत्नी सविता कोविंद भी  मास्क सिल कर बंटवा रही हैं। यह है भारत, यही है असली इंडिया। यह तो चंद उदाहरण हैं, ऐसी लाखों कहानियां हैं।

आपने सुभाषचंद्र बनर्जी के बारे में भी नहीं सुना होगा। 82 साल का बूढ़ा। रिटायर्ड प्राध्यापक। कोलकाता के दमदम में रहते हैं। एक दिन अपने तई तेज आवाज में अपने घर की खिड़की से पुलिसकर्मियों को पुकार रहे थे। वहां से गुजर रहे पुलिसकर्मियों को लगा कि उन्हें मदद की आवश्यकता होगी। जानते हैं, उसे बूढ़े प्राध्यापक ने क्या कहा-किया? उन्होंने पुलिसकर्मियों को दस हजार का चेक दिया । कहा कि मुख्यमंत्री राहत कोष में जमा करवा दीजिए। वे घर में अकेले हैं। बूढ़ी काया बहुत चलने-फिरने में असमर्थ है। वे और मदद करना चाहते थे, पर पेंशन का बड़ा हिस्सा दवा आदि में खर्च हो जाता है। यह है असली इंडिया। इसलिए हे वत्स, कोरोना से लड़ाई लंबी सही, जीतेगा भारत, हमारा इंडिया। ऐसी नेकी की ताकत दूसरे देशों को नसीब नहीं है।

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कोरोना काल में मध्यप्रदेश के बैतूल से एक सूचना आई है। आप भी सुनिए। वहां के एक मंदिर में हर रोज सैकड़ों लोग बंद पोटलियों में जरूरत का सामान रख जाते हैं। जिन्हें जरूरत हो, वे स्वतः ले जाते हैं। न देने वाले का पता न लेने वाले का पता। यह है राजा भरत के देश भारत की कहानी। सेवा भाव, सहायता भाव की हैरत में डालने वाली कहानियां। फिर कोरोना हो या कोरोना का बाप, अपना देश नहीं हारेगा। दुनिया देखेगी-सुनेगी, सुन रही होगी, हमारी कहानियां।

उस दिन टेलीविजन के सामने पसरा था। टेलीविजन स्क्रीन पर देखा, एक महिला अपने घर के सामने खड़ी है। वह बार-बार हाथ हिला रही है। सामने सड़क पर सैकड़ों गाड़ियों में बैठे लोग भी हाथ हिलाकर आगे बढ़ रहे थे। पता लगा कि वह महिला डॉक्टर है। सामने से गुजर रहे लोग डॉक्टर के मरीज। सब कोरोना मरीज, जिन्हें इस महिला डॉक्टर ने दिन-रात की मेहनत से ठीक किया। वे सब, सैकड़ों लोग डॉक्टर का आभार व्यक्त करने आए थे। जानते हैं, कौन थी वह महिला? डॉ. उमा मधुसूदन। भारतवंशी। मैसूर में पढ़ी-लिखी। अभी अमेरिका के एक अस्पताल में सेवारत हैं।

और विधि का विधान देखिए। जिस कोरोना की कोई दवा नहीं, उस पर हमारी ही बनाई दवा हाइड्रोक्सी कोलोरोक्वीन काम कर रही है। जिसे हमने सौ साल पहले मलेरिया के लिए तैयार किया था। अब यह दुनिया भर को चाहिए। हमारा ही काढ़ा कोरोना को धायल कर रहा। यह है भारत-हमारा इंडिया।  जीतेंगे हम, जीतेगा इंडिया।

रात जा चुकी। सुबह होने वाली है। तीन बज रहे हैं । मिलते हैं कल- फिक्र नहीं जी। भारत जिंदाबाद था, जिंदाबाद ही रहेगा।

(लेखक दैनिक भास्कर, हरिभूमि, राज एक्सप्रेस के संपादक रहे हैं)

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