कोरोना बड़ा पापी है, जल्दी जाएगा नहीं, सबको दबना ही पड़ेगा

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कोरोना बड़ा पापी है। जल्दी जाएगा नहीं। सरकारें हो या समाज सबको दबना ही पड़ेगा। रहेगा अभी-बहुत दिनों तक। चला भी गया, तो आता-जाता रहेगा।
कोरोना बड़ा पापी है। जल्दी जाएगा नहीं। सरकारें हो या समाज सबको दबना ही पड़ेगा। रहेगा अभी-बहुत दिनों तक। चला भी गया, तो आता-जाता रहेगा।

कोरोना डायरी: 10   

  • डा. संतोष मानव
डा. संतोष मानव
डा. संतोष मानव

कोरोना बड़ा पापी है। जल्दी जाएगा नहीं। सरकारें हो या समाज सबको दबना ही पड़ेगा। रहेगा अभी-बहुत दिनों तक। चला भी गया, तो आता-जाता रहेगा। वैज्ञानिकों, अनुसंधानकर्ताओं ने भी मान लिया है। तो क्या हम लाक डाउन में रहेंगे सदा-सर्वदा? नहीं, यह संभव नहीं है। लाक डाउन एक फौरी उपाय है। यह रामबाण नहीं है। देश-राज्य ज्यादा दिनों तक बंद नहीं रह सकता। 54 दिनों में ही हालत खराब है। लोग भी उकताने लगे हैं।  सौ दिन हो गया, तो अर्थव्यवस्था का भट्ठा बैठ जाएगा। अभी से चिल्ला-चोट जारी है कि इतने लाख करोड़ का घाटा हो गया। सो, भूल जाना चाहिए कि लाक डाउन पार्ट फोर भी होगा। और करने की गलती हो गई, तो लोग ही सड़कों पर उतरने लगेंगे। वे कहेंगे – कोरोना से मरना मंजूर, भूख से नहीं। इसलिए मान कर चलना चाहिए कि हजारों बीमारियों की लिस्ट में एक कोरोना भी है। जैसे लोग दूसरी बीमारियों से मरते थे, कोरोना से मरेंगे। हां, अगर जीना है, तो हमें कुछ सावधानियों के साथ जीना होगा। परंपराएं, शिष्टाचार के तौर-तरीकों, व्यवस्था को बदलना पड़ेगा।  कुछ हमें और कुछ सरकारों को बदलना होगा। हम आदतें बदलेंगे और सरकारें नीति, व्यवस्था और प्राथमिकताएं, तभी जान बचेगी।  ऐसा भी नहीं है कि कोरोना इच्छा मृत्यु का वरदान लेकर आया है। जाएगा यह भी, पर लंबा समय लेगा। हमने, देश ने पोलियो, चेचक का सफाया किया, तो यह कोरोना किस खेत की मूली है? इसको भी उखड़ना ही पड़ेगा।

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इसको उखाड़ने के लिए हम कहां-कहां बदलेंगे और सरकारें क्या बदलेंगी? इसको याद रखना चाहिए। हर समय, नहीं तो सावधानी हटी और दुर्घटना घटी। सबसे पहले हमें नमस्ते की आदत डालनी होगी। विदेशी हैंडशेक यानी हाथ मिलाना बिल्कुल बंद। जितनी बार हाथ मिलाएंगे, उतनी बार कोरोना का खतरा। इसलिए जरूरी है सलाम-नमस्ते-प्रणाम के दौर में आ जाएं। हमारे मुल्क में किसिंग-विसिंग फिल्मी दुनिया तक सीमित है। उन्हें भी यह  विदेशी तरीका बदलना होगा।  भेड़ियाधसान भी बंद। दूरी रखकर लाइन लगानी होगी।  भीड़भाड़ से बचने की कोशिश होगी। बड़े आयोजनों से परहेज और शारीरिक दूरी जैसी सावधानी आवश्यक होगी।  बार-बार हाथ धोने की आदत डालनी होगी। मास्क को शर्ट-पैंट की तरह अनिवार्य करना होगा। इसे परिधान का हिस्सा बनाना होगा। छींकने-खांसने-थूकने  का तरीका बदलना होगा। हम इतना कर लें, तो काफी होगा।  बाकी काम सरकारों का है। समाज और सरकारों के बदलावों को जोड़ दें, तो मानकर चलिए कि कोरोना एक बडा़ परिवर्तन लेकर आया है।

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सबसे खतरनाक बातें या बदलाव शुरू हो गये हैं। ये हैं बेरोजगारी, छंटनी, तनख्वाह कटौती। अनेक संस्थानों में वेतन कटौती हो गई, जो बच गए हैं, वहां प्रक्रिया जारी है। कटौती के बाद छंटनी भी बड़े पैमाने पर तय है। पिछले दिनों दो विदेशी कंपनियों को लेकर ऐसी खबरें आईं। देश से भी खबरें कदाचित लाकडाउन के बाद आए। ब्रिटिश एयरवेज और लुफ्थांसा एयरवेज को लेकर खबरें थीं कि ब्रिटिश 12 और लुफ्थांसा 10 हजार मैनपावर कम करेगा। यानी देश-दुनिया में रोजगार कम होंगे। अपने देश में वैसे ही रोजगार के अवसर लगातार कम हुए हैं। कोरोना के बाद तो हाहाकार तय मानकर चलना चाहिए।

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जब रोजगार नहीं होंगे, तो गरीब और गरीबी बढ़ेगी। गरीबी के आंकड़ों को लेकर हमेशा विवाद रहा है। लेकिन, मोटे तौर पर माना जाता है कि देश में  37 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं। इसमें कम से कम आठ प्रतिशत और जोर लीजिए। यानी देश में अब 45 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे होंगे। गरीबी से अवसादग्रस्त लोगों की संख्या बढ़ेगी। ये लोग जीवन को किस तरह लेंगे, यह विचारणीय प्रश्न है। यह तो हुए खतरनाक किस्म के बदलाव। अब नीतिगत बदलावों पर विचार कीजिए। करना ही पड़ेगा। तय है कि हवाई जहाज, रेल और बसों की बैठक व्यवस्था बदलेगी। जब व्यवस्था बदलेगी, सीटों की संख्या कम होगी, तो किराया बढ़ेगा। सो, ज्यादा किराया देने के लिए तैयार हो जाइए।

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ये तो कुछ नेगेटिव बातें थीं। कुछ पाजिटिव भी होना तय है। देश में स्वास्थ्य व्यवस्था बहुत ही खराब है। सरकारों को इसमें सुधार लाना होगा। हर ब्लॉक में वेंटीलेटर वाले चाकचौबंद अस्पताल चाहिए। इसके लिए सरकारों को स्वास्थ्य का बजट बढ़ाना होगा। अब कुल आय के दो-तीन प्रतिशत से काम नहीं चलेगा। लोग भी अपनी तैयारी करेंगे। साफ है कि हेल्थ बीमा का कारोबार बढ़ेगा। पच्चीस प्रतिशत तक उछाल संभव है।  आनलाइन कल्चर बूम करेगा।  वर्क फ्राम होम, डिस्टेंस  एजुकेशन और होम डिलेवरी जोर पकड़ेगा। अनेक कंपनियों ने 75 प्रतिशत तक काम घर से करवाने की व्यवस्था कर ली है। जो नहीं कर पाए, वे थोड़े दिन बाद करेंगे। आनलाइन मार्केटिंग वाली ढेर सारी कंपनियों का आगमन भी  होगा। उन्नयन भी होगा। प्रतियोगिता भी होगी।

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कुछ सामाजिक बदलाव भी हो सकते हैं। हालांकि यह तय नहीं है, ऐसा इसलिए कि भारतीय स्वभाव से उत्सवप्रिय हैं। मेला-ठेला, उत्सव-धमाल का चलन कम हो सकता है। शादी-विवाह, पर्व-त्योहार पर बड़ा यानी ज्यादा संख्या में उपस्थिति वाले कार्यक्रम कम हो सकते हैं या वे कुछ हिदायतों के साथ हों। सेमिनार की जगह वेबिनार यानी आनलाइन सम्मेलन ज्यादा होंगे। बंदी के चालीस दिनों में खूब वेबिनार हुए हैं। बैठकों का नया दौर आएगा। एक जरूरी सवाल धार्मिक और राजनीतिक जलसों को लेकर है। प्रवचनों-तकरीरों को लेकर है। यहाँ भी कुछ बदवाल तय है। नेताजी लोग फेसबुक लाइव ज्यादा होंगे। वीडियो संदेश का प्रचलन बढ़ेगा। चालीस दिनों के बाद कुछ-कुछ छूट की घोषणा हुई है। पूरी आजादी में अभी समय लगेगा। कितना? कोरोना से पूछना पड़ेगा!

(लेखक राज एक्सप्रेस और दैनिक भास्कर के संपादक रह चुके हैं)

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