तेलंगाना और छत्तीसगढ़ के बॉर्डर पर फंसे हैं झारखंड के 30 मजदूर

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तेलंगाना और छत्तीसगढ़ के बॉर्डर पर तीन दिनों से झारखंड के 30 मजदूर फंसे हैं। सभी गढ़वा जिले के बताये जाते हैं। इनके सामने भुखमरी की स्थिति है।
तेलंगाना और छत्तीसगढ़ के बॉर्डर पर तीन दिनों से झारखंड के 30 मजदूर फंसे हैं। सभी गढ़वा जिले के बताये जाते हैं। इनके सामने भुखमरी की स्थिति है।
  • विशद कुमार

रांची। तेलंगाना और छत्तीसगढ़ के बॉर्डर पर तीन दिनों से झारखंड के 30 मजदूर फंसे हैं। सभी गढ़वा जिले के बताये जाते हैं। इनके सामने भुखमरी की स्थिति है। आंध्रप्रदेश के विजयवाड़ा में रोड कंस्ट्रक्शन के लिए झबली कांट्रैक्टर के पास काम करने वाले झारखंड के गढ़वा जिला निवासी 30 मजदूरों को लॉक डाउन के बाद भूखों मरने की नौबत आई तो वे सभी मजदूर 3 मई को विजयवाड़ा से पैदल चल पड़े। हालांकि तेलंगाना से मजदूर झारखंड ट्रेन से आने लगे हैं, लेकिन जो राह में हैं, उन्हें मालूम नहीं।

ये प्रवासी मजदूर 333 किलोमीटर यात्रा पैदल पूरी करके जब तेलंगाना और छत्तीसगढ़ सीमा के सुकमा जिला के कोंटा पहुंचे तो उन्हें रोक दिया गया। ये सभी मजदूर गढ़वा जिले के बरडीहा प्रखंड के सलगा गांव के रहने वाले हैं। जब इसकी जानकारी वाट्सएप के माध्यम हुई और इनसे फोन पर संपर्क किया गया तो धर्मदेव राम ने बताया कि जो हमारे पास मजदूरी के पैसे बचे थे, अब वे भी खत्म हो गये हैं। यह पूछे जाने पर कि वहां का प्रशासन खाना वगैरह दे रहा है कि नहीं, धर्मदेव राम ने बताया कि दिन भर में एक समय खाना दिया जा रहा है। पिछली रात से वे लोग खाने की व्यवस्था कर रहे हैं, पर घर भेजने के लिए किसी गाड़ी की व्यवस्था नहीं कर पाये हैं।

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बता दें कि पैदल ही घर के लिए निकले रवि मुंडा की मौत रास्ते में ही हो गयी। बिलासपुर शहर के निकट सरगांव पहुंचने पर रवि मुंडा की तबीयत बिगड़ी। तब तक वह 400 किलोमीटर की दूरी तय कर चुका था। उसे अचानक डिहाइड्रेशन की शिकायत हुई। लेकिन कोरोना का संदिग्ध मानकर उसका इलाज देर से शुरू किया गया। बताते हैं कि 3 अप्रैल को छत्तीसगढ़ आयुर्वेदिक संस्थान में रवि का दाखिला हुआ। उसके साथ चल रहे सात लोगों को भी जांच के लिए भर्ती किया गया। 4 अप्रैल को रवि की मौत हो गयी। मौत के बाद रवि और उसके बाकी के साथियों की रिपोर्ट भी नेगेटिव ही आई। रिपोर्ट के बाद 6 अप्रैल की सुबह रवि मुंडा के शव का अंतिम संस्कार छत्तीसगढ़ में ही कर दिया गया।

कोरोना के कारण लाक डाउन में भारत में मजदूरों के बीच भूख का भय, बेरोजगारी की चिंता, अपनों से मिलने की बेताबी से पैदा हो रही अफरा-तफरी का माहौल है। इस तरह की खबरें कोरोना के खतरों से भी ज्यादा चिंताजनक हो गई हैं। कहीं सैकड़ों मील पैदल चल पड़ने, तो कहीं साइकिल से ही निकल पड़ने की खबर संवेदनाओं को झंकझोर दे रही है। कभी भूखे प्यासे पैदल चलते-चलते हो रहीं मौतों की खबरें, कभी लगातार साइकिल चलाते हुए मौत का निवाला बन जाने की खबरें, तो कभी रेल की पटरी को ही सेज बनाकर निश्चिंत हो मौत का शिकार हो जाने की खबरों ने कोरोना के खतरों को एक खास वर्ग तक सिमट कर रह जाने को मजबूर कर दिया है।

कहना ना होगा कि आज मजदूर वर्ग सदी की सबसे बड़ी त्रासदी से गुजर रहा है। कोरोना के संक्रमण से मुक्ति को लेकर लॉक डाउन से प्रवासी मजदूरों का हाल खराब हो गया है। पिछले डेढ़ महीने से लॉक डान के कारण जो जहां है, उसे वहीं रुके रहना है। मजदूरों को भूखों रहने की नौबत आ गई है। ऐसे में प्रवासी मजदूर कहीं पैदल तो कहीं साइकिल से ही अपने गांव-घर निकल जा रहे हैं। छत्तीसगढ़ के नागपुर से झारखंड के 8 प्रवासी मजदूरों को घर लौटने का जब कोई साधन नहीं मिल सका तो वे झारखंड के लिए पैदल ही निकाल पड़े। इसमें एक मजदूर सरायकेला निवासी रवि मुंडा (42) की जान डिहाईड्रेशन के कारण रास्ते में ही चली गयी।

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