- नवीन शर्मा
अमिताभ बच्चन मेरे ही नहीं, मेरी पीढ़ी सहित कई पीढियों के सुपर स्टार हैं। उनको यह सफलता यूं ही नहीं मिली है। इसके लिए उन्होंने काफी संघर्ष किया है। केए अब्बास के निर्देशन में बनी पहली फिल्म सात हिंदुस्तानी में अमिताभ को ब्रेक भले ही अपने पिता प्रसिद्ध कवि हरिवंशराय बच्चन के नाम और पहुंच के बल पर मिल गया हो, लेकिन लगातार 12 फिल्में फ्लॉप होने के बाद भी इन्होंने हार नहीं मानी। वे मजबूती से डटे रहे और लगातार मेहनत, अनुशासन और काम के प्रति जबरदस्त समर्पण की बदौलत भारत के सबसे बड़े सुपर स्टार बने। इन्हें सदी का सबसे बड़ा स्टार माना गया। आज अमिताभ 78 साल के हो गए हैं, लेकिन वे युवाओं को भी मात देने वाले जोशो-खरोश के साथ अपने काम में जुटे हुए हैं। आमतौर पर बहुत से लोग जहां 65-70 साल तक पहुंचते-पहुंचते रिटायर्मेंट वाले मोड में आ जाते हैं और खुद को काम से अलग कर बुड्ढा समझने लगते हैं और आरामतलब हो जाते हैं। आज जन्मदिन पर भी छुट्टी मनाने की जगह वे KBC की शूटिंग में जुटे हैं। वे चाहते तो बड़े आराम से आज के दिन तो काम से छुट्टी ले ही सकते थे। इनका ये जज्बा बहुत ही प्रेरक है। आइए, आज उनकी जीवन यात्रा पर एक नजर डालते हैं।
ऐसे चला अमिताभ का जादू
इनकी ही फिल्में देख के हम बच्चा से किशोर हुए। मैंने सिनेमा हॉल में उनकी पहली फिल्म मुकद्दर का सिकंदर रांची के श्री विष्णु हॉल में देखी थी। उस फिल्म का एक दृश्य मेरे बालमन पर काफी गहराई से अंकित हो गया था। किशोर कुमार के गीत ‘रोते हुए आते हैं, सब, हंसता हुआ जो जाएगा’ गीत गाते हुए मोटरसाइकिल को जिगजैग करते हुए अमिताभ का सड़कों से गुजरना। उसी सीन में अमिताभ किशोर से अचानक बड़े हो जाते हैं। इस फिल्म से ही वे मेरे सुपर स्टार हो गए। उनके इलाहाबाद से चुनाव लड़ने तक उनकी लगभग हर अच्छी-बुरी फिल्म बिना कोई सोच विचार कर देखता और इंज्वाय करता था। अमिताभ से एक कनेक्शन रहा है। 1969 में मेरा जन्म रांची में हुआ था। उसी साल उनकी पहली फिल्म सात हिंदुस्तानी रिलीज थी, जिसमें उन्होंने रांची निवासी शायर अनवर अली का किरदार निभाया था।
एंग्री यंगमैन की ख्याति
इस छवि के कारण ही वे मेरे हीरो थे। बुराई के खिलाफ लड़ना, गरीबों व जरूरतमंदों की मदद करना तथा कई गुंडों-बदमाशों की अकेले ही पिटाई कर देना हमारे किशोर मन को काफी प्रभावित करता था। मुझे अमिताभ की कॉमेडी पसंद नहीं थी। मुझे वे दीवार, जंजीर, मुकद्दर का सिकंदर, शोले व लावारिस में अच्छे लगे।
पहले दौर का आम इंसान
बाद में जब बड़ा हुआ तो अमिताभ की पुरानी फिल्में देखीं। जैसे अभिमान, आनंद, मिली, नमकहराम, मजबूर, चुपके-चुपके आदि। इन फिल्मों में भी उन्होंने सीधे सादे और आम व्यक्तियों के किरदारों को अच्छी तरह निभाया है। ऋषिकेश मुखर्जी जैसे लाजवाब निर्देशक के साथ आनंद और अभिमान में अमिताभ ने यादगार भूमिकाएं निभाई हैं।
बकवास फिल्मों का दौर
बीच के दौर में 1980-2000 तक अमिताभ ने काफी बकवास फिल्में की थीं। जैसे महान, नास्तिक, पुकार, कुली, गंगा, जमना सरस्वती, तूफान, जादूगर, आदि। इस दौर में उन्होंने फिल्म की कहानी पर ध्यान नहीं दिया। खासकर फेवरेट डायरेक्टर मनमोहन देसाई और अन्य के साथ इन्होंने एक से बढ़कर एक रद्दी फिल्में कीं।वे जब कांग्रेस की टिकट पर इलाहाबाद से चुनाव में खड़े हुए तो मैंने नाराज होकर शराबी के बाद उनकी फिल्में देखनी छोड़ दीं थीं ।
मिला राष्ट्रीय पुरस्कार
इस दौर में एक फिल्म अच्छी थी अग्निपथ। इसके लिए इन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था।इस फिल्म में अमिताभ विजय दीनानाथ चौहान नाम के डॉन की भूमिका में जमे थे। इसमें इन्होंने अपनी आवाज़ में तब्दीली की थी जो कुछ लोगों को पसंद नहीं भी आई थी। इस फिल्म का एक डॉयलॉग याद आता है ‘मेरा नाम है विजय दीनानाथ चौहान कल अपुन का मौत के साथ एपाटमेंट है’।
फिर एक अर्से के बाद फिर से उनकी फिल्में देखनी शुरू की। उस दिन दूरदर्शन पर शायद मिली फिल्म आ रही थी, पूरे मुहल्ले में लोडशेडिंग थी। इसलिए अमिताभ की ही फिल्म देखने का मन हो रहा था इसलिए मैं आजद हू देखने के लिए संध्या सिनेमा गया। फिल्म अच्छी लगी थी।
सबसे शानदार पारी
तीसरी पारी में अमिताभ ने सबसे अच्छी फिल्में की हैं यह पारी वर्ष 2000 में मुहब्बतें से शुरू हुई मान सकते हैं। अब अमिताभ अपनी असली उम्र के हिसाब से रोल करने लगे हैं। इस दौर में उन्होंने फिल्मों के चुनाव पर ध्यान दिया। इसके अलावा अधिकतर फिल्मों में अमिताभ को ध्यान में रखकर उनके किरदार लिखे गए। ब्लैक अमिताभ की बेहतरीन फिल्म थी। इसके बाद विरुद्ध, निशब्द, कभी खुशी कभी गम आदि। अभी हाल के वर्षों में पा, पिकू, तीन, वजीर और पिंक में वे लाजवाब लगे हैं। खासकर पा और पिंक तो उनकी यादगार फिल्में हैं। उन्होने साबित कर दिया की उनके कद और लोकप्रियता में कोई अभिनेता उनके सामने नहीं ठहरता। उनमें आज 75 वर्ष की उम्र में भी अभिनय को लेकर जो दिवानगी है वो किसी और में नजर नही आती। इसी लिए वो मिलेनियम सुपर स्टार हैं। हिंदी फिल्मों के वे पहले अभिनेता हैं जो 70 साल के बाद भी बालीवुड के लिए जरूरी बने हुए हैं। उनमें अभिनय के प्रति दिवानगी है। इसलिए आज भी वो उत्साह से लबरेज नजर आते हैं।
अच्छे गीत भी गाए
वैसे अमिताभ की आवाज गायकी के हिसाब से अच्छी नहीं कही जा सकती इसके बावजूद उन्होंने कुछ अच्छे गीत गाए हैं। पहला गीत मेरे पास आओ मेरे दोस्तों हिट तो हुआ पर उसे गीत कहने में भी संकोच होता है। लावारिस का गाना जिसकी बीबी मोटी भी जबर्दस्त हिट हुआ था पर मुझे खास पसंद नहीं। मुझे महान फिल्म का जिधर देखूं तेरी तस्वीर, सिलसिला का नीला आसमान और निशब्द का गीत काफी पसंद है।
बेहतरीन होस्ट
टीवी पर उनके केबीसी ने तो उन्हें शानदार एंकर के रूप में स्थापित कर दिया है। वे एक अच्छे होस्ट साबित हुए। अंजान लोगों से भी आत्मियता से बात कर उन्हें कार्यक्रम के लिए सहज बना लेते हैं। उनकी शानदार हिंदी के आगे कोई नहीं टिकता ना शाहरूख,ना आमिर और ना ही सलमान।