- अमरनाथ
मैथिली 8वीं अनुसूची में हिन्दी के पाठ्यक्रम में विद्यापति क्यों? यह सवाल उठाया है कलकत्ता यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अमरनाथ ने। उनके सवाल में दम भी है। जब हिन्दी से अलग कर मैथिली को 8वीं अनुसूची में शामिल कर अलग कर ही दिया गय तो फिर इसकी आवश्यकता हिन्दी के पाठ्यक्रम में क्यों महसूस की जा रही है। अमरनाख की मूल चिंता यह है कि हिन्दी में शामिल भाषाओं को 8वीं अनुसूची में शामिल कर आखिरकार हिन्दी का ही अहित किया जा रहै है। पढ़ें उन्होंने क्या लिखा हैः
22 दिसंबर 2003 को हिन्दी की एक बोली मैथिली को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करके उसे हिन्दी से अलग और स्वतंत्र दर्जा दे दिया गया था। उसके बाद से मैथिली का संविधान में वही स्थान है, जो बांग्ला, ओड़िया, तमिल, तेलुगु आदि बाईस भाषाओं का है। भारत सरकार द्वारा कराई गई 2011 की जनगणना रिपोर्ट में भी हिन्दी और हिन्दी परिवार की 56 जनपदीय मातृभाषाओं में मैथिली का उल्लेख नहीं है। किन्तु इसके बावजूद अनेक विश्वविद्यालयों के हिन्दी- पाठ्यक्रमों तथा यूपीएससी, नेट, सेट आदि के हिन्दी-पाठ्यक्रमों में आज भी मैथिलकोकिल विद्यापति और उनकी पदावली शामिल है। इसका कारण सिर्फ यह है कि भाषा वैज्ञानिकों ने मैथिली को हिन्दी भाषा परिवार का अभिन्न हिस्सा माना है और साहित्य के इतिहासकारों ने भी मैथिलकोकिल विद्यापति को हिन्दी साहित्य के इतिहास में शामिल किया है।
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किन्तु यथार्थ से हम कबतक आँखे बंद किए रहेंगे? 22 दिसंबर 2003 के बाद से मैथिली भाषा और उसके साहित्य को हिन्दी परिवार में शामिल करना असंवैधानिक है। इसलिए देश भर के हिन्दी विभागाध्यक्षों, हिन्दी के शिक्षकों, संघ लोक सेवा आयोग सहित विभिन्न राज्यों के लोक सेवा आयोग के अध्यक्षों, एनटीए सहित विभिन्न राज्यों की सेट परीक्षा के संयोजकों आदि से विनम्र निवेदन है कि वे हिन्दी के पाठ्यक्रम में संशोधन करें और अबतक हिन्दी का अभिन्न अंग रहे मैथिलकोकिल विद्यापति तथा उनके साहित्य को पाठ्यक्रम में शामिल करने पर पुनर्विचार करें, क्योंकि हमारे संविधान के अनुसार विद्यापति अब हिन्दी के कवि नहीं हैं। वे अब सिर्फ मैथिली के कवि हैं और मैथिली साहित्य के पाठ्यक्रमों में सभी जगह विद्यापति शामिल भी हैं।
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