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मकर संक्रांति इस वर्ष विशेष है, जानिए कैसे और क्यों। कैसे करें मकर संक्रांति पर सूर्य की आराधना। इस बार 14 जनवरी दिन बृहस्पतिवार को यह है। यह विक्रम संवत- 2077, शक संवत- 1942 है। अयन- दक्षिणायन, ऋतु- शिशिर, मास- पौष/ (मार्गशीर्ष)। सूर्योदय- 07:19 और सूर्यास्त- 18:14 बजे। दिशाशूल- दक्षिण दिशा में, व्रत पर्व विवरण- दर्श अमावस्या, / संक्रांति। विशेष ध्यान रखें- चतुर्दशी और अमावस्या के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38))। मकर संक्रांति आत्मोद्धारक व जीवन-पथ प्रकाशक पर्व है। मकर संक्रांति के दिन (14 जनवरी 2021 गुरुवार को) पुण्यकाल सुबह 08:16 से शाम 04:16 तक है।
जिस दिन भगवान सूर्यनारायण उत्तर दिशा की तरफ प्रयाण करते हैं, उस दिन उत्तरायण (मकर संक्रांति) का पर्व मनाया जाता है। इस दिन से अंधकारमयी रात्रि कम होती जाती है और प्रकाशमय दिवस बढ़ता जाता है। उत्तरायण का वाच्यार्थ है कि सूर्य उत्तर की तरफ, लक्ष्यार्थ है आकाश के देवता की कृपा से ह्दय में भी अनासक्ति करनी है। नीचे के केन्द्रों में वासनाओं का आकर्षण होता है व ऊपर के केन्द्रों में निष्कामता, प्रीति और आनंद होता है। संक्रांति रास्ता बदलने की सम्यक सुव्यवस्था है। इस दिन आप सोच व कर्म की दिशा बदलें। जैसी सोच होगी, वैसा विचार होगा, जैसा विचार होगा, वैसा कर्म होगा। हाड़-मांस के शरीर को सुविधाएँ देकर विकार भोगकर सुखी होने की पाश्चात्य सोच है और हाड़-मांस के शरीर को संयत, जितेन्द्रीय रखकर सदभाव से विकट परिस्थितियों में भी सामनेवाले का मंगल चाहते हुए उसका मंगलमय स्वभाव प्रकट करना यह भारतीय सोच है। सम्यक क्रांति- ऐसे तो हर महीने संक्रांति आती है, लेकिन मकर संक्रांति साल में एक बार आती है। उसी का इंतजार किया था भीष्म पितामह ने। उन्होंने उत्तरायण काल शुरू होने के बाद ही देह त्यागी थी।
पुण्यपुंज व आरोग्यता अर्जन का दिन है मकर संक्रांति
जो संक्रांति के दिन स्नान नहीं करता वह, सात जन्मों तक निर्धन और रोगी रहता है और जो संक्रांति का स्नान कर लेता है, वह तेजस्वी और पुण्यात्मा हो जाता है। संक्रांति के दिन उबटन लगायें, जिसमें काले तिल का उपयोग हो। भगवान सूर्य को भी तिल मिश्रित जल से अर्घ्य दें। इस दिन तिल का दान पाप नाश करता है, तिल का भोजन आरोग्य देता है, तिल का हवन पुण्य देता है। पानी में भी थोड़े तिल डाल के पीयें तो स्वास्थ्य लाभ होता है। तिल का उबटन भी आरोग्यप्रद होता है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करने से 10 हजार गौदान करने का फल होता है। जो भी पुण्यकर्म उत्तरायण के दिन करते हैं, वे अक्षय पुण्यदायी होते हैं। तिल और गुड़ के व्यंजन, चावल और चने की दाल की खिचड़ी आदि ऋतु-परिवर्तनजन्य रोगों से रक्षा करते हैं। तिल मिश्रित जल से स्नान आदि से भी ऋतु-परिवर्तन के प्रभाव से जो भी रोग-शोक होते हैं, उनसे आदमी भिड़ने में सफल होता है।
सूर्य देव की विशेष प्रसन्नता हेतु करें मंत्र जाप
ब्रम्हज्ञान सबसे पहले भगवान सूर्य को मिला था। उनके बाद राजा मनु को, यमराज को…. ऐसी परम्परा चली। भास्कर आत्मज्ञानी हैं, पक्के ब्रम्ह्वेत्ता हैं। बड़े निष्कलंक व निष्काम हैं। कर्तव्यनिष्ठ होने में और निष्कामता में भगवान सूर्य की बराबरी कौन कर सकता है! कुछ भी लेना नहीं, न किसी से राग है, न द्वेष है। अपनी सत्ता-समानता में प्रकाश बरसाते रहते हैं, देते रहते हैं। ‘पद्म पुराण’ में सूर्यदेवता का मूल मंत्र है : ॐ ह्रां ह्रीं स: सूर्याय नम:। अगर इस सूर्य मंत्र का ‘आत्मप्रीति व आत्मानंद की प्राप्ति हो’- इस हेतु भगवान भास्कर का प्रीतिपूर्वक चिंतन करते हुए जप करते हैं तो खूब प्रभु-प्यार बढ़ेगा, आनंद बढेंगा।
ओज-तेज-बल का स्त्रोत : सूर्य नमस्कार
सूर्य नमस्कार करने से ओज-तेज और बुद्धि की बढ़ोत्तरी होती है। ॐ सूर्याय नम:, ॐ भानवे नम:, ॐ खगाय नम:, ॐ रवये नम:, ॐ अर्काय नम: आदि मंत्रों से सूर्य नमस्कार करने से आदमी ओजस्वी-तेजस्वी व बलवान बनता है। इसमें प्राणायाम भी हो जाता है, कसरत भी हो जाती है। सूर्य की उपासना करने से, अर्घ्य देने से, सूर्य स्नान व सूर्य-ध्यान आदि करने से कामनापूर्ति होती है। सूर्य का ध्यान भ्रूमध्य में करने से बुद्धि बढ़ती है और नाभि-केंद्र में करने से मन्दाग्नि दूर होती है, आरोग्य का विकास होता है।
आरोग्य व पुष्टि वर्धक होता है सूर्य स्नान
सूर्य के धूप में जो खाद्य पदार्थ, जैसे-घी, तेल आदि 2-4 घंटे रखा रहे तो अधिक सुपाच्य हो जाता है। धूप में रखे हुए पानी से कभी-कभी स्नान कर सकते हैं। इससे सूखा रोग (Rickets) नहीं होता और रोगनाशिनी शक्ति बरक़रार रहती है। सूर्य की किरणों से रोग दूर करने की प्रशंसा ‘अथर्ववेद’ में भी आती है। कांड- 1, सूक्त 22 के श्लोकों में सूर्य की किरणों का वर्णन आता है।
15-20 मिनट तक जरूर करें सूर्य स्नान
लेटे–लेटे सूर्य स्नान करना और भी हितकारी होता है, लेकिन सूर्य की कोमल धूप हो, सूर्योदय से एक-डेढ़ घंटे के अंदर सूर्य स्नान कर लें। इससे मांसपेशियाँ तंदुरस्त होती हैं, स्नायुओं का दौर्बल्य दूर होता है। सूर्य स्नान के इस प्रसाद का मुझे अनुभव है। स्नायुओं में दौर्बल्य नहीं होता है। स्नायु की दुर्बलता, शरीर में दुर्बलता, थकान व कमजोरी हो तो प्रतिदिन सूर्य स्नान करना चाहिए।
मकर संक्रांति के दिन सूर्यस्नान से त्वचा के रोग भी दूर होते हैं, हड्डियाँ मजबूत होती हैं। रक्त में कैल्शियम, फ़ॉस्फोरस व लोहे की मात्रा बढ़ती है, ग्रंथियों के स्रोतों में संतुलन होता है। सूर्य किरणों से खून का दौरा तेज, नियमित व नियंत्रित चलता है। लाल रक्त कोशिकाएँ जाग्रत होती हैं, रक्त की वृद्धि होती है। गठिया, लकवा और आर्थराइटिस के रोग में भी लाभ होता है। रोगाणुओं का नाश होता है, मस्तिष्क के रोग, आलस्य, प्रमाद, अवसाद, ईर्ष्या-द्वेष आदि शांत होते हैं। मन स्थिर होने में भी सूर्य की किरणों का योगदान है। नियमित सूर्य स्नान से मन पर नियंत्रण, हार्मोन्स पर नियंत्रण और त्वचा व स्नायुओं में क्षमता, सहनशीलता की वृद्धि होती है। नियमित सूर्य स्नान से दाँतों के रोग दूर होने लगते हैं। विटामिन ‘डी’ की कमी से होनेवाले सूखा रोग, संक्रामक रोग आदि भी सूर्य किरणों से भगाये जा सकते हैं। अत: आप भी खाद्य अन्नों को व स्नान के पानी को धूप में रखें तथा सूर्य स्नान का खूब लाभ लें।
दृढ़ संकल्पवान व साधना में उन्नत होने का दिन
उत्तरायण देवताओं का ब्रम्ह मुहूर्त है तथा लौकिक व अध्यात्म विद्याओं की सिद्धि का काल है मकर संक्रांति। तो मकर संक्रांति के पूर्व की रात्रि में सोते समय भावना करना कि ‘पंचभौतिक शरीर पंचभूतों में, मन, बुद्धि व अहंकार प्रकृति में लीन कर मैं परमात्मा में शांत हो रहा हूँ। और जैसे उत्तरायण के पर्व के दिन भगवान सूर्य दक्षिण से मुख मोड़ कर उत्तर की तरफ जायेंगे, ऐसे ही हम नीचे के केन्द्रों से मुख मोड़ कर ध्यान-भजन और समता के सूर्य की तरफ बढ़ेंगे। रात को ‘ॐ सूर्याय नम:’ मंत्र का चिंतन कर सोएंगे तो सुबह उठते-उठते सूर्य नारायण का भ्रूमध्य में ध्यान भी सहज में कर पायेंगे। उससे बुद्धि का विकास होगा।
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