पटना। मंत्री पद के लिए बिहार में बीजेपी और जेडीयू में घमासान मचा हुआ है। मंत्री पद के दो ऐसे दावेदार अपनी-अपनी पार्टियों से बिदके हुए हैं। मुखर भी हो रहे हैं। बीजेपी में ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानु को मंत्रिमंडल में शामिल न किये जाने पर गुस्सा है तो जेडीयू में गोपाल मंडल का गुस्सा बाहर आया है। 84 दिनों के बाद बिहार में नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल का विस्तार तो किया, लेकिन इसने देरी की आग में नाराजगी के घी का काम किया है।
हाल ही में नीतीश कुमार ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया। इसमें बीजेपी के 9 और जेडीयू के 8 मंत्रियों को जगह मिली। ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानु का आरोप है कि जान-बूझ कर उनकी उपेक्षा की गयी। उन्होंने पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उनका तो यह भी दावा है कि उनके साथ दर्जन भर विधायक हैं। अपरोक्ष तौर पर उन्होंने संकेत दिया कि वे सरकार का खेल बिगाड़ सकते हैं। हालांकि यह उतना आसान नहीं, जितना वे सोचते हैं। बीजेपी के 7 विधायक हैं और उनमें 12-13 विधायक उनके साथ होंगे भी तो सरकार की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। वह भी तब, जब स्पीकर की कुर्सी पर बीजेपी का ही कोई आदमी बैठा हो।
जेडीयू के गोपाल मंडल भागलपुर के गोपालपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गये हैं। उनका दावा है कि पार्टी आलाकमान ने उन्हें मंत्री बनाने का आश्वासन भी दिया था, लेकिन उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया। मंत्री पद के लिए गोपाल मंडल ने जाति और नीतीश कुमार से अपने नजदीकी संबंधों का भी हवाला दिया। उन्होंने तो यहां तक कहा कि वे हफ्तेभर से पटना में डेरा जमाये हुए थे। उन्हें पूरा विश्वास था कि जाति और संबंधों के आधार पर उन्हें मंत्री पद अवश्य मिलेगा। आलाकमान ने उन्हें आश्वासन देकर उम्मीद जगा दी थी। हालांकि उन्होंने किसान प्रकोष्ठ के अध्यक्ष बना दिये जाने पर संतुष्ट हो जाने की इच्छा का इजहार भी कर दिया है।
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भीतर ही भीतर बीजेपी और जेडीयू में कई विधायकों को मंत्री न बन पाने का मलाल है। कुछ तो मुखर होकर बोल रहे हैं, पर अधिकतर भीतर ही भीतर खफा हैं। यहां यह प्रसंग उल्लेखनीय है कि आरजेडी की ओर से कहा गया था कि मंत्रिमंडल विस्तार के बाद बगावत के सुर फूटेंगे और सरकार का पराभव भी हो सकता है। देखना यह है कि विधायकों की नाराजगी और आरजेडी के दावे में कितना दम दिखायी देता है।
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