- अरविंद पांडेय
खिलाड़ी कोटा से घोटाला-मुक्त नियुक्ति कैसे की जाती है, यह तो सबको मालूम है, लेकिन इसमें भी गड़बड़ियां दिखती-मिलती रही हैं। नियमों का उल्लेंघन होता है। उत्कृष्ट खिलाड़ियों की नियुक्ति के लिए बिहार सरकार ने वर्ष 2009 में और पुनः वर्ष 2014 में सामान्य प्रशासन विभाग के प्रधान सचिव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था, जिसमें अन्य सदस्यों के अतिरिक्त खेल प्राधिकरण के महानिदेशक भी होते हैं। मैंने जब खेल प्राधिकरण के महानिदेशक के रूप में समिति की बैठकों में भाग लेना प्रारम्भ किया तो उपर्युक्त दोनों नियमावलियों का अध्ययन किया।
दोनों नियमावलियों में एक प्रावधान सर्वाधिक महत्वपूर्ण था- “योग्य अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र निर्गत करने के पूर्व उनके द्वारा जमा किये गए सभी प्रमाणपत्रों का सत्यापन सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा करा लिया जाएगा!” किन्तु दुर्भाग्य से 2015 के पूर्व जितनी भी नियुक्तियां हुई थीं, उनमें इस प्रावधान का पालन नहीं किया गया था। मतलब प्रमाणपत्रों का सत्यापन कराए बिना ही नियुक्ति पत्र निर्गत कर दिया गया!
मैंने 2015 के विज्ञापन के आधार पर खिलाड़ी कोटा से होने वाली नियुक्तियों की बैठक में कहा कि नियुक्ति नियमावली के प्रवधानानुसार सभी प्रमाणपत्रों का सत्यापन नियुक्ति पत्र निर्गत करने के पूर्व कराया जाये। मेरे इस नियमसंगत कथन को मानने में कुछ लोगों को कठिनाई हो रही थी। तब मैंने सारे तथ्य लिखकर देते हुए कहा कि नियुक्ति प्रक्रिया में राज्य सरकार के आदेशों का शत प्रतिशत पालन करना ही होगा। अंततः पूरी समिति को मेरी बात माननी पड़ी।
अब प्रमाणपत्रों का सत्यापन शुरू हुआ। सत्यापन शुरू होते ही 2 आवेदकों ने लिखकर दिया कि वे निजी कारणों से नियुक्ति नहीं चाहते हैं। इसका कारण आप समझ सकते हैं। अब तक हुए सत्यापन मे 2 आवेदकों का खेल प्रमाणपत्र जाली पाया गया और कुछ दिन पूर्व ही उन दोनों आवेदकों के विरुद्ध पटना के सचिवालय थाना में FIR कराया गया है।
अब मैं अभी प्राधिकरण में नहीं हूँ, किन्तु मेरे द्वारा लिखे गए सारे पत्रों पर शत-प्रतिशत कार्रवाई जारी है। सामान्य प्रशासन विभाग ने वर्ष 2009 से हुई सारी नियुक्तियों में प्राप्त आवेदनों के प्रमाणपत्रों के भी सत्यापन की कार्रवाई हेतु उन सभी DM को निर्देश दिया है, जहां उत्कृष्ट खिलाड़ी नियुक्त होकर सेवा कर रहे हैं।
खिलाड़ी कोटे से इस नियुक्ति मामले में अब तक 2 FIR सचिवालय थाना में ही दर्ज किए जा चुके हैं। यदि यह सत्यापन की कार्रवाई सरकारी नियम के आलोक में नहीं की जाती तो क्या होता? फर्जी प्रमाणपत्र पर जो अयोग्य खिलाड़ी नियुक्त होते, उनके कारण कुछ योग्य खिलाड़ियों को नियुक्ति से वंचित होना पड़ता। पूरी चयन समिति के विरुद्ध FIR और कार्रवाई होती, क्योंकि आरोप लगता कि सरकार के स्पष्ट आदेश का उल्लंघन करते हुए जाली प्रमाणपत्रों के आधार पर नियुक्तियां कर ली गईं। बिहार को एक और अपयश का सामना करना पड़ता। इसलिए प्रत्येक सरकारी निर्णय को शुद्ध और पवित्र बनाए रखा जा सकता है यदि अधिकारियों को नियमों का पूर्ण परिज्ञान होऒ। यदि अधिकारियों को नियमों के प्रति पूर्ण सम्मान हो। यदि अधिकारियों के दिल में मुक़म्मल ईमान हो।
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