पटना। राहुल गांधी झूठ बोलने के शौकीन बन चुके हैं, उन पर कड़ी कार्रवाई जरूरी है। यह कहना है बिहार बीजेपी के उपाध्यक्ष व पूर्व विधायक राजीव रंजन का। डॉ संजय जायसवाल द्वारा राहुल गांधी के खिलाफ संसद में लाए गये विशेषाधिकार हनन के प्रस्ताव को जरूरी बताते हुए भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष राजीव रंजन ने राहुल के खिलाफ कड़ी कारवाई की मांग की है। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी विश्व के इकलौते नेता हैं, जिनकी पूरी राजनीति झूठ बोलने पर केंद्रित हो चुकी है।
राहुल गांधी ने अपने सलाहकारों की सलाह पर जिस झूठ की राजनीति की कुछ वर्षों पहले शुरुआत की थी, वह अब इनका शौक बन गया है। याद करें तो इसी झूठ बोलने की आदत के कारण उन्हें कुछ वर्ष पहले सुप्रीम कोर्ट में माफ़ी भी मांगनी पड़ी थी, लेकिन फिर भी इनकी आदत बदली नहीं और अब हालात ऐसे हो गये हैं कि यह लोकतंत्र का मन्दिर कहे जाने वाले संसद में भी सीना ठोक कर झूठ बोलने लगे हैं।
इससे पहले कि राहुल का यह शौक लाइलाज हो जाए, इसका निदान जरूरी है। चूंकि कांग्रेस अपने युवराज की इस बीमारी का इलाज नहीं करवा रही है, इसीलिए भाजपा प्रदेश अध्यक्ष को मैदान में उतरना पड़ा है। गौरतलब हो कि संजय जायसवाल राजनेता होने के साथ-साथ प्रख्यात चिकित्सक भी हैं। वह समझ चुके हैं कि राहुल की यह बीमारी कड़ी कार्रवाई के टीके से ही संभव है। इसीलिए उन्होंने संसद में राहुल को विशेषाधिकार हनन का इंजेक्शन लगाने का प्रस्ताव दिया है, जिसे मंजूरी भी मिल चुकी है। हमें पूरी उम्मीद है कि इस टीके के बाद राहुल निश्चित ही झूठ बोलना छोड़ देंगे। कांग्रेस को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष को इसके लिए धन्यवाद देना चाहिए।
राहुल के झूठ बोलने का कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि बीते दिनों आम बजट पर अभिभाषण के दौरान राहुल गांधी अपने चिर-परिचित अंदाज में विषय से परे हट कर प्रधानमंत्री की गरिमा पर लगातार आघात करते रहे। झूठ बोलने की बीमारी के कारण उन्हें यह तक याद नहीं रहा कि संसद में सभापति के दिशा-निर्देश व संविधान के कुछ प्रासंगिक प्रावधानों के अनुसार ही किसी विषय को पटल पर रखा जाता है तथा साथ ही तथ्य और डॉक्यूमेंट भी प्रस्तुत करने पड़ते हैं। इसके अलावा भाषण के बीच में उन्होंने अपनी पार्टी के सांसदों को किसानों के लिए मौन रखने का आदेश दे दिया। गौरतलब हो कि सदन में इस तरह का सामूहिक शोक सभापति के निर्देश, सलाह और मार्गदर्शन में करने का ही नियम है। लोकसभा के नियम 223 के तहत यह विशेषाधिकार हनन और सदन की अवमानना है, जो दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है।
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