फणीश्वरनाथ रेणु की जीवनी और अशोक वाजपेयी की प्रेरणा

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अशोक वाजपेयी ने 2016 में फणीश्वरनाथ रेणु की जीवनी का दायित्व मुझे दिया। मैंने खोज की अनवरत साधना की। लम्बी-लम्बी यात्राएँ कीं। और रेणु की जीवनी का एक भाग पूरा हुआ।
अशोक वाजपेयी ने 2016 में फणीश्वरनाथ रेणु की जीवनी का दायित्व मुझे दिया। मैंने खोज की अनवरत साधना की। लम्बी-लम्बी यात्राएँ कीं। और रेणु की जीवनी का एक भाग पूरा हुआ।
फणीश्वरनाथ रेणु की जीवनी का दायित्व अशोक वाजपेयी ने 2016 में मुझे दिया। मैंने खोज की अनवरत साधना की। लम्बी-लम्बी यात्राएँ कीं। और रेणु की जीवनी का एक भाग पूरा हुआ। इसे मैंने अशोक वाजपेयी की देखरेख में चलने वाले रज़ा फाउंडेशन को सौंप दिया। यह रज़ा फाउंडेशन के द्वारा सेतु प्रकाशन से छप रही है।
  • भारत यायावर
भारत यायावर
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फणीश्वरनाथ रेणु की जीवन की भूमिका कैसे बनी।  1980 मे पूर्वग्रह पत्रिका का कविता विशेषांक आया था और देखते ही देखते हिन्दी साहित्य में कविता का अदभुत वातावरण निर्मित हुआ था। मध्यप्रदेश में कविता की किताबों की खरीद शुरू हुई थी और हाशिए पर पड़ी कविता विधा पुनः समादृत हुई थी। मेरे गुरु स्थानीय कवि नागार्जुन, त्रिलोचन, शमशेर के कविता संग्रह प्रकाशित हुए थे। बीस वर्षों के बाद केदारनाथ सिंह का संग्रह छपा था। एक अजीब नाम का संग्रह विनोद कुमार शुक्ल का छपा था- ‘वह आदमी नया गरम कोट पहन कर चला गया विचार की तरह’ और तब एक दिन राजेश जोशी के पेड़ बोलने लगे थे। शेरों ने मुँह धोए थे और अपनी धार दिखाते हुए अरुण कमल आए थे। मंगलेश डबराल पहाड़ पर लालटेन जलाकर लाए थे और दिल्ली में दिखाते फिर रहे थे। किसिम किसिम के कवि थे और किसिम किसिम के उनके संग्रहों के नाम। ये सब कवि दृश्य में थे और हवा में कविता की वापसी का नारा बुलंद था।

मैं तब फणीश्वरनाथ रेणु को खोज रहा था और अब भी खोज रहा हूँ। लेकिन अब लगता है कि मेरा यह काम पूरा हो जाएगा। इसका एक प्रसंग है। इधर भारत के महान कलाकार सैयद हैदर रज़ा ने अपने जीवन भर की कमाई से ‘रज़ा फाउंडेशन’ की शुरुआत कर दी और इसकी रचनात्मक गतिविधियों की जिम्मेदारी अशोक वाजपेयी जी को सौंप दी। वे जानते थे कि उनके जैसा साहित्य और कलाओं का मर्मज्ञ मिलना मुश्किल है। अशोक वाजपेयी जी नई सोच और समझ के व्यक्ति हैं। उनके मन में यह बात आई कि हिन्दी साहित्य में जीवनी साहित्य का अभाव है। इसे पूरित किया जाए। 2016 में उन्होंने फणीश्वरनाथ रेणु की जीवनी का दायित्व मुझे दिया। मैंने खोज की अनवरत साधना की। लम्बी-लम्बी यात्राएँ कीं। और उनकी जीवनी का एक भाग पूरा हुआ। इसे मैंने रज़ा फाउंडेशन को सौंप दिया। यह रज़ा फाउंडेशन के द्वारा सेतु प्रकाशन से छप रही है।

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दूसरे भाग की रचना के लिए मुझे फिर यात्राओं पर खोज के लिए निकलना होगा। यदि रज़ा फाउंडेशन के द्वारा मुझे फेलोशिप नहीं दिया जाता तो यह कार्य मैं इस जन्म में नहीं कर पाता। रज़ा फाउंडेशन के द्वारा अनेक साहित्यकारों की जीवनियाँ विभिन्न लेखकों से  लिखवा कर  प्रकाशित की जा चुकी हैं। आज गिरिधर राठी द्वारा लिखित कृष्णा सोबती की जीवनी का लोकार्पण हुआ।

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कई जीवनी प्रकाशित होने वाली है। यह हिन्दी में अबतक किए गए योगदान में बिल्कुल अनूठा है। अशोक वाजपेयी जी की प्रेरणा से ही यह हो रहा है। फणीश्वरनाथ रेणु की जीवनी का सबसे प्रेरक तत्त्व यह है कि कैसे एक लेखक पद और धनलिप्सा से विरत रहकर सतत लेखन में रत रहकर नित नूतन संधान में लगा रहता है। लेखक अपनी  भौतिक उपलब्धियों को ठुकरा कर रचनाशीलता को ही अपना जीवन सौंप देता है और सतत विरोध झेल कर भी गतिशील रहता है! वह अन्याय और अंधेरगर्दी के प्रतिरोध में जेल की यातना सहता है और लोक से अपनी संबद्धता को कभी नहीं छोड़ता।

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