- निराला
गांधीजी ने बकरे की बलि रोकने पर लोगों को विवश कर धर्म की शिक्षा दी थी। चंपारण सत्याग्रह के दिनों की बात है। गांधीजी वहीं एक गांव में रुके हुए थे। सुबह-सुबह एक भारी भीड़ के साथ एक जुलूस निकल रहा था। गांधीजी ने अपने एक सहयोगी से पूछा कि यह विशाल जुलूस किसलिए है और लोग इतना शोर क्यों कर रहे हैं?
सहयोगी को मालूम न था। वह कुछ बता न सका। गांधी खुद ही बाहर आ गये। गांधी ने देखा कि चंपारण के गांव के जुलूस में एक बकरा आगे चल रहा है। उसके गले में माला है। उसे तिलक लगाया गया है। पीछे-पीछे देवी माई की जय करते हुए लोग चल रहे हैं। गांधी भी जुलूस में शामिल हो गये। लोग जुलूस की धुन में थे। किसी ने गांधीजी की तरफ ध्यान नहीं दिया। जुलूस देवी स्थान पहुंचा।
वहां पहुंचते-पहुंचते जयकारा और तेज हो गया। गांधीजी जुलूस के सामने आये। लोग अकबका गये कि ये कब शामिल हुए जुलूस में। गांधी ने पूछा कि क्या करना है बकरे का? लोगों ने कहा कि यह देवी का भोग है। गांधी ने कहा कि बकरा श्रेष्ठ कि मनुष्य? लोगों ने कहा, जाहिर सी बात है कि मनुष्य।
गांधीजी ने कहा कि तब क्यों न श्रेष्ठतम का भोग देवी को चढ़ाया जाए? देवी और ज्यादा प्रसन्न होंगी। लोक हक्के-बक्के। किसी के पास कोई जवाब नहीं। गांधी ने बात जारी रखी। कहा कि आप लोग इतने जयकारा लगा रहे हैं। आप ही में से कोई तैयार हो और खुद को देवी के भोग के लिए प्रस्तुत करे। अगर आप लोगों को डर लग रहा है, जीवन का मोह है तो मैं ही लेटता हूं, मेरा ही भोग लगाया जाए। किसी मनुष्य का लगे, मनुष्य बकरा से श्रेष्ठ है तो भोग श्रेष्ठ ही होगा और देवी भी अधिक ही प्रसन्न होगी।
अब किसी के पास कोई जवाब नहीं। गांधी ने कहा कि गूंगे और निर्दोष प्राणी को मार कर भोग चढ़ाने से देवी प्रसन्न होंगी, ऐसा किसने कहा? अगर मनुष्य का खून श्रेष्ठ है तो मनुष्य को अपना ही खून चढ़ाना चाहिए। पर, ऐसा कोई करता कहां है? निर्दोष प्राणी को, हमारी भाषा न समझनेवाले प्राणी को मार कर हम अपनी आकांक्षा को पूरा करते हैं। यह तो अधर्म है।
लोगों ने पूछा कि फिर धर्म क्या है? गांधी ने कहा कि आज इस बकरे को छोड़ दीजिए। देखिएगा आज की तरह देवी कभी प्रसन्न नहीं हुई होंगी, इतनी प्रसन्न होगी। और रही बात धर्म की, तो धर्म सिर्फ इतना है कि सभी प्राणियों से प्रेम कीजिए। सभी जीवों को और सभी इंसानों से आत्मवत रिश्ता रखते हुए सबको अपने समान समझिए। सच बोलिए। किसी का बुरा नहीं कीजिए। बस यही धर्म है। गांव के लोग बकरे को आजाद छोड़ दिये। जुलूस शांति जुलूस में बदलकर लौटने लगा। इस शांति जुलूस का नेतृत्व गांधी कर रहे थे। चंपारण सत्याग्रह की एक उपलब्ध यह भी कही जा सकती है।