डॉ. अम्बेडकर मानते थे- लोकतंत्र के लिए बुद्ध का उपयोग ही उपयुक्त है

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डॉ. अंबेडकर मानते थे कि लोकतंत्र की स्थापना के लिए बुद्ध का उपयोग हो सकता है। राम, कृष्ण और गांधी ब्राह्मण धर्म के पक्षपोषक हैं।
डॉ. अंबेडकर मानते थे कि लोकतंत्र की स्थापना के लिए बुद्ध का उपयोग हो सकता है। राम, कृष्ण और गांधी ब्राह्मण धर्म के पक्षपोषक हैं।
कृपाशंकर चौबे
कृपाशंकर चौबे
डॉ. अंबेडकर मानते थे कि लोकतंत्र की स्थापना के लिए बुद्ध का उपयोग हो सकता है। राम, कृष्ण और गांधी ब्राह्मण धर्म के पक्षपोषक हैं। लोकतंत्र की स्थापना के लिए उनका कोई उपयोग नहीं है। अगर उपयोग है तो वह केवल बुद्ध का हो सकता है। वह मानते थे बुद्ध के सिद्धांतों को अपनाना ही हिन्दू समाज के राजनीतिक और सामाजिक रक्तशुद्धि का इलाज है। डॉ. अंबेडकर के बारे में पढ़ें कृपाशंकर चौबे का यह लेखः

डॉ. अंबेडकर ने 24 नवंबर 1930 को पाक्षिक अखबार ‘जनता’ निकाला। बाद में वह साप्ताहिक के रूप में परिवर्तित हो गया। ‘जनता’ के 25 जून 1932 के अंक में डॉ. अम्बेडकर ने अपने ऊपर लगनेवाले तमाम आरोपों का दो टूक जवाब दिया था।

उन्होंने लिखा था, “आज हिन्दुस्तान में देशद्रोही, देशविघातक, हिन्दू धर्म विघातक और हिन्दू हिन्दू में दरार पैदा करनेवाला, अगर किसी को कहा जाता है तो वह मुझे कहा जाता है। किन्तु यह तूफानी वातावरण शान्त होने के बाद मेरे आलोचक गोलमेज परिषद के कार्य की यदि गहराई में जाकर समीक्षा करेंगे तो उन्हें एक बात स्वीकार करनी पड़ेगी कि मैंने राष्ट्र के लिए कुछ न कुछ जरूर किया है।

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उन्होंने यदि आज के इस दूषित वातावरण में बदलाव की बात कबूल नहीं की तो मैं उन्हें फूटी कौड़ी का भी महत्त्व नहीं दूंगा। मेरे कार्य पर मेरे दलित समाज का भरोसा है, इस बात को में बड़ी बात मानता हूँ। जिस समाज में मेरा जन्म हुआ है और मैं जिन लोगों में बहुत घूमता हूँ और जिन लोगों के बीच मुझे मरना है, उन्हीं के लिए मैं कार्य करता रहूँगा। मुझे अपने आलोचकों की परवाह नहीं है।”

डॉ. अम्बेडकर ने ‘जनता’ के 24 सितंबर 1932 के अंक में लिखा था, “महात्मा गांधी ने दि. 15 सितम्बर 1932 को मुम्बई सरकार को एक पत्र लिखकर अपने आमरण अनशन की भूमिका स्पष्ट की थी। महात्मा गांधी द्वारा किए गए आत्महत्या के संकल्प से उन्होंने मुझे विरोधी और मुश्किल स्थिति में डाल दिया है। इसमें मेरी कितनी बड़ी जिम्मेदारी है, इस बात की कल्पना कोई आसानी से कर सकता है।”

डॉ. अम्बेडकर ने धर्मांतरण की आवश्यकता को स्पष्ट करने के लिए ‘जनता’ के 23 मई 1936 के अंक में ‘अपने मटियामेट जीवन में नए प्रभात के लिए ही धर्मान्तरण की जरूरत’ शीर्षक लेख लिखा। डॉ. अम्बेडकर मानते थे कि बुद्ध के सिद्धान्तों को अपनाकर ही हिन्दू समाज के राजनीतिक और सामाजिक रक्तशुद्धि संभव है। उन्होंने ‘जनता’ के 7 मई, 1941 के अंक में ‘लोकतन्त्र की स्थापना के लिए बुद्ध-जयन्ती का राजनीतिक महत्त्व’ शीर्षक टिप्पणी में लिखा था, “राम, कृष्ण और गांधी ब्राह्मण धर्म के पक्षपोषक हैं। लोकतन्त्र की स्थापना के लिए उनका कोई उपयोग नहीं है। अगर उपयोग है तो वह केवल बुद्ध का हो सकता है। इसलिए उन्हें याद करना और उनके सिद्धान्तों को अपनाना यही हिन्दू समाज के राजनीतिक और सामाजिक रक्तशुद्धि का इलाज है, ऐसा हमें प्रामाणिकता के साथ लगता है। बुद्धं शरणं गच्छामि। धम्मं शरणं गच्छामि। संघं शरणं गच्छामि। और इसी बात को उन्हें बार-बार दोहराते रहना चाहिए, हम उन्हें यह सलाह देना चाहते हैं।” (जारी)

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