दिग्विजय सिंह का बयान ममता बनर्जी को कमजोर करने की कोशिश

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कश्मीर से धारा 370 पर बयान देकर दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस को नुकसान तो पहुंचाया ही है, कांग्रेस को कमजोर भी किया है।
कश्मीर से धारा 370 पर बयान देकर दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस को नुकसान तो पहुंचाया ही है, कांग्रेस को कमजोर भी किया है।
दिग्विजय सिंह का बयान अल्पसंख्यकों पर ममता बनर्जी की पकड़ को कमजोर करने की कोशिश भी हो सकती है। ममता के राष्ट्रीय राजनीति के सपने का आधार अल्पसंख्यक ही हैं। कांग्रेस कभी नहीं चाहेगी कि ममता प्रधान मंत्री का चेहरा बन पायें। दिग्विजय सिंह के बयान को इसी रूप में देखा जाना चाहिए। 
  • सुरेंद्र किशोर
सुरेंद्र किशोर, वरिष्ठ पत्रकार
सुरेंद्र किशोर, वरिष्ठ पत्रकार

संभवतः ममता बनर्जी को राष्ट्रीय स्तर पर जमने से रोकने की कोशिश में दिग्विजय सिंह ने धारा- 370 का राग छेड़ दिया है। याद रहे कि अगले लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए ममता बनर्जी राष्ट्रीय स्तर की राजनीति भी अब करना चाहती हैं। इसके लिए मुकुल राय जमीन तैयार करेंगे, यह भी तय हुआ है। इस बार नई ताकत के साथ ममता बनर्जी राष्ट्रीय स्तर पर छा जाना चाहती हैं। ममता बनर्जी के इस प्रयास में सबसे बड़ी बाधा कांग्रेस बन सकती है।

याद रहे कि कांग्रेस पार्टी अगले प्रधान मंत्री के पद पर अपना दावा किसी अन्य के लिए आसानी से छोड़ने वाली नहीं है।

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नई ताकत ममता को पश्चिम बंगाल के मुस्लिम वोटरों से मिली है। मुस्लिम मतदाताओं के एजेंडे को समझना कोई राकेट साइंस समझना नहीं है। अकारण नहीं, उनके एकमुश्त वोट ममता को ही मिले। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव रिजल्ट आने के बाद लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीरंजन चैधरी ने कहा था कि ‘हम इसलिए हारे, क्योंकि हमारे मुसलमान मतदाता ममता के पास चले गए। सी.पी.एम. ने अपने मतदाताओं को टी.एम.सी. में भेज दिया।’

दिग्विजय सिंह को लगता है कि अल्पसंख्यक मतों को लेकर जो कुछ बंगाल में हुआ, अब वह कहीं पूरे देश में न हो जाए! यानी, देश भर के सारे मुस्लिम मतदाता ममता के साथ न जुड़ जाएं! संभवतः इसीलिए कश्मीर के अतिवादी मुसलमानों को खुश करने का दांव दिग्विजय सिंह ने खेला है।

जैसी ‘छवि’ के साथ ममता बनर्जी राष्ट्रीय राजनीति में भूमिका निभाने जा रही हैं, क्या उससे उल्टे नरेंद्र मोदी को ही राजनीतिक लाभ नहीं मिल जाएगा? ममता की उस ‘छवि’ का वर्णन ‘आउटलुक’ जैसी सेक्युलर पत्रिका 2017 में ही कर चुकी है। आगे-पीछे का बाकी नकारात्मक-सकारात्मक हाल सबको मालूम है।

खबर है कि मुकुल राय ममता बनर्जी की केंद्रीय राजनीति में भूमिका के लिए जमीन तैयार करेंगे। अच्छी बात है। मुकुल राय को ऐसा करना ही चाहिए! वैसे भी यह प्रचारित किया जा रहा है कि ममता ने बंगाल में ‘बड़ी जीत’ हासिल की है। पर, वह ‘बड़ी जीत’ कैसी है? वह जीत वास्तव में मूलतः पश्चिम बंगाल के करीब 32 प्रतिशत मुसलमान मतदाताओं की अभूतपूर्व एकजुटता की जीत है। उस एकजुटता के पीछे के एजेंडे से देश परिचित व आशंकित है।

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पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में टी.एम.सी. को इस बार कुल 48.8 प्रतिशत मत मिले। राज्य में तीन प्रतिशत मत ब्राह्मणों का है। इस देश में किसी भी प्रधान मंत्री या मुख्य मंत्री को उसकी अपनी जाति का बहुलांश मत बिना मांगे भी मिलता रहा है। यानी, मोटामोटी यह अनुमान है कि आम बंगाली मानुष के सिर्फ 14.8 प्रतिशत मत ही ममता बनर्जी को मिले। यानी, इतनी ही पूंजी के साथ ममता राष्ट्रीय राजनीति करेंगी। उनकी बाकी पूंजी का विवरण अक्तूबर 2017 के ‘आउटलुक’ में है। पहले व बाद की कहानियां भी देश के सामने हैं। राजनीतिक प्रेक्षक बताते हैं कि भाजपा इस बात से खुश होगी और चाहेगी कि ममता बनर्जी सन 2024 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के सामने हों।

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