- ओमप्रकाश अश्क
प्रलेक प्रकाशन, मुंबई ने पत्रकार, स्तंभकार, टिप्पणीकार, निबंधकार, साहित्य समालोचक कृपाशंकर चौबे के सृजन और शोध पर 464 पृष्ठों का ग्रंथ अभी-अभी प्रकाशित किया है। ‘कृपाशंकर चौबे एक शिनाख्त’ शीर्षक इस ग्रंथ का संपादन युवा साहित्यकार सोनम तोमर ने किया है। ग्रंथ छह खंडों में विभाजित है।
अवदान-मूल्यांकन खंड में कृपाशंकर चौबे के सृजन व शोध का आकलन महाश्वेता देवी, सुभाष मुखोपाध्याय, सुनील गंगोपाध्याय, तसलीमा नसरीन, नामवर सिंह, केदारनाथ सिंह, हरिवंश, पवन करण, शेखर देशमुख, अभिषेक श्रीवास्तव, प्रभात ओझा, कृष्ण कुमार सिंह, अनिल विभाकर, अग्निशेखर, बलिराज पाण्डेय, दीक्षा सिंह, अर्चना शर्मा, हीरालाल नागर, निर्मला गर्ग, मिथिलेश श्रीवास्तव, शर्मिष्ठा बाग, मृत्युंजय, वृषभ प्रसाद जैन, अरुण होता, जय कौशल, सुरजीत कुमार सिंह, पलाश विश्वास, अरुण कुमार त्रिपाठी, आर. के. त्रिपाठी ‘रुक्म’, विनय बिहारी सिंह, अनय, गिरीश्वर मिश्र, प्रो. बल्देव भाई शर्मा, विजय दत्त श्रीधर, गिरीश पंकज, शंभूनाथ शुक्ल, विकास मिश्र, एस. आनंद, सेराज खान बातिश, राकेश प्रवीर, अभिज्ञात, अमरनाथ, शरद जायसवाल, वीरेन्द्र प्रताप यादव, संदीप सौरभ, निर्भय देवयांश, अक्षय चंद्र शर्मा, राम बहादुर राय और अनिर्वाण घोष ने किया है।
बांग्ला लेखिका महाश्वेता देवी ने लिखा है, “मूलतः एक हिंदी भाषी लेखक होते हुए भी कृपाशंकर चौबे ने अपनी रचनाओं से प्रमाणित कर दिया है कि भिन्न भाषी होते हुए भी जो जिस राज्य में रहता है, वहां के समाज, संस्कृति, भाषा और साहित्य पर गंभीर अनुशीलन कर सकता है।” बांग्ला कवि सुभाष मुखोपाध्याय लिखते हैं, “कृपाशंकर चौबे को व्यक्तिगत तौर पर जानता हूँ। साहित्य, कला, संस्कृति पर उनसे बातचीत करते हुए हमेशा महसूस हुआ कि साहित्य संबंधी उनका अध्ययन गहरा है।”
बांग्ला साहित्यकार सुनील गंगोपाध्याय ने लिखा है, “कृपाशंकर को सिर्फ हिंदी जगत में बांग्ला का दूत कहना ही यथेष्ठ नहीं है, वे एक मौलिक लेखक हैं। उनके जैसा कोई लेखक किसी भी भाषा की संपदा है। बांग्ला व हिंदी दोनों भाषाएं उनकी ऋणी हैं।”
तसलीमा नसरीन ने लिखा है, “कृपाशंकर चौबे को मैं अनेक वर्षों से जानती हूं। पता नहीं क्यों, वह मुझे अपने छोटे भाई की तरह लगता है। कृपा का आवेग और आंतरिकता मुझे मुग्ध करती है। वह कुशल पत्रकार है। कुशल लेखक है। सबसे बड़ी बात कि वह मेरा स्वजन है, आत्मीय है। मेरे अच्छे समय में जैसे वह मेरे पास रहा, उसी तरह मेरे दुःसमय में भी साथ रहा। प्रसन्नता व आनंद के समय, दुःख व शोक के समय हमेशा मैंने कृपा को अपने पास पाया। हिंदी जगत के साथ मेरा परिचय कराने में कृपा की भूमिका असाधारण रही है।”
नामवर सिंह ने कृपाशंकर चौबे द्वारा हजारीप्रसाद द्विवेदी पर संपादित पुस्तक के बारे में लिखा है, “मैं तो महाकवि तुलसीदास को परंपरा का अनुसरण करते हुए जो राम के भक्त थे लेकिन उन्होंने राम का मंदिर नहीं बनाया, राम के भक्त हनुमान का मंदिर बनाया, मैं तो कृपाशंकर चौबे का ही मंदिर बनवाऊंगा। कृपाशंकर पंडित जी के हनुमान भक्त हैं और सही है कि कृपाशंकर का यह संपादित ग्रंथ ‘शांतिनिकेतन से शिवालिक’ के बाद हिंदी में दूसरा महत्वपूर्ण संकलन है और कई दृष्टियों से इस संकलन की ऐसी विशिष्टताएं हैं जो उसमें नहीं हैं। विशेष रूप से संस्मरणों का अंश जो इसमें लिया गया है।”
केदारनाथ सिंह ने लिखा है, “कृपाशंकर चौबे की कृति ‘समाज, संस्कृति और समय’ विचार के कई स्तरों पर एक साथ सक्रिय दिखाई पड़ती है। कोलकाता में कार्यरत यह युवा लेखक दो महत्वपूर्ण भाषाओं की संधि रेखा पर खड़े होकर चीजों को देखता-परखता है। बांग्ला संस्कृति व भाषा में गहरी पैठ रखने वाला यह लेखक इस पुस्तक में विचार का जो विशाल फलक प्रस्तुत करता है, वह कई दृष्टियों से विचारोत्तेजक, सूचनावर्द्धक और सोचने-समझने की नई सरणियों को खोलता हुआ जान पड़ता है।”
अरुण होता ने लिखा है, “प्रो. कृपाशंकर चौबे एक बहुमुखी प्रतिभासंपन्न लेखक हैं। निबंध, आलोचना और पत्रकारिता के क्षेत्र में कृपाशंकर जी एक चर्चित नाम हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में पर्याप्त अनुभव प्राप्त करने के साथ-साथ साहित्य और संस्कृति की दुनिया में उनकी पकड़ प्रशंसनीय रही है। पत्रकारिता और साहित्य में उनकी सफल आवाजाही से उनका रचना-संसार समृद्ध रहा है।” अमरनाथ ने लिखा है, “कृपाशंकर चौबे के लेखन की रफ्तार बहुत तेज है और उन्होंने हिन्दी आलोचना जगत में आज अपनी खास जगह बना ली है। वे बांग्ला मासिक ‘भाषा बन्धन’ तथा ‘वर्तिका’ के संपादन से भी जुड़े रहे हैं। हिन्दी के साथ बांग्ला पर भी कृपाशंकर चौबे की अच्छी पकड़ है, जिसके कारण उन्होंने बांग्ला के प्रतिष्ठित लेखकों और फिल्मकारों पर भी विस्तार से लिखा है। महाश्वेता देवी, तसलीमा नसरीन और मृणाल सेन पर उनकी स्वतंत्र पुस्तकें हैं। वे हमारे समय के ऐसे विरल मीडिया समीक्षक हैं जिन्हें पत्रकारिता का व्यापक अनुभव है।”
रामबहादुर राय ने लिखा है, “विरल सारस्वत साधना पुस्तक से कृष्णबिहारी मिश्र के व्यक्तित्व, कृतित्व और जीवन संदेश की झलक मिलती है। जो काम सालभर में भी पूरा नहीं हो सकता उसे कृपाशंकर चौबे ने हम पर कृपा कर पूरा कर दिया। वह भी काफी समय पहले। यह काम वे ही इतनी तत्परता और लगन से कर सकते हैं, दूसरा नहीं। उनकी यह कृपा समाज की युवा पीढ़ी पर जितनी है, उससे ज्यादा उन पर है जो कृष्णबिहारी मिश्र के रहते हुए भी सठियाए हुए हैं।”
सोनम तोमर ने संपादकीय में ठीक लिखा है कि कृपाशंकर चौबे के लेखन की विविधता भारत की विविधता जैसी है। प्रो. चौबे के वैविध्यपूर्ण लेखन का आकलन 62 विद्वानों ने किया है। व्यक्तित्व खंड में बुद्धिनाथ मिश्र, संजय द्विवेदी, अरविंद कुमार सिंह, गोपालजी राय, अरविंद चतुर्वेद, ओमप्रकाश अश्क, कौशल किशोर त्रिवेदी, अखिलेश सिन्हा, राकेश मिश्र, अर्चना त्रिपाठी, भवानी शंकर, राजेश कुमार यादव, संजीव भानावत, अजय कुमार सिंह, चाँदनी कुमारी, नंदिनी सिन्हा और अमन आकाश के संस्मरण व रेखा चित्र हैं। विशिष्ट जनों के पत्र खंड में वे पत्र दिए गए हैं जो बीसवीं सदी से लेकर इक्कीसवीं सदी तक कृपाशंकर चौबे को लिखे गए। उन पत्रों में श्याम नारायण पांडेय, अमरकांत, अमृत राय, नजीर बनारसी, विष्णुकांत शास्त्री, शिवप्रसाद सिंह, काशीनाथ सिंह, विद्यानिवास मिश्र, शिवमंगल सिंह सुमन, ठाकुर प्रसाद सिंह, कृष्णबिहारी मिश्र, विवेकी राय, केदार नाथ सिंह, उपेंद्रनाथ अश्क, एनई विश्वनाथ अय्यर, एन. चंद्रशेखरन नायर, नामवर सिंह, कल्याणमल लोढ़ा, विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, ज्ञानरंजन, कमलेश्वर, राजेंद्र यादव, जगदीश गुप्त, अटल बिहारी वाजपेयी, चंद्रशेखर और मदर टेरेसा के पत्र शामिल हैं।
इस पुस्तक के एक खंड में कृपाशंकर चौबे की रचनाओं से एक चयन भी दिया गया है। उसी के साथ प्रो. चौबे का आत्मकथ्य और उनसे रविप्रकाश, हिमांशु बाजपेयी की बातचीत भी दी गई है। यह पुस्तक साहित्य, सिनेमा और मीडिया सभी पाठकों के लिए उपयोगी तो है ही, पिछले चार दशकों के साहित्यिक-सांस्कृतिक और पत्रकारिता के परिदृश्य को समझने में भी सहायता मिलती है।
पुस्तक का नाम- कृपाशंकर चौबे एक शिनाख्त, संपादन- सोनम तोमर, परिकल्पना- जितेंद्र पात्रो, प्रकाशक- प्रलेक प्रकाशन, मुंबई, संस्करण-2022, पेपरबैक मूल्य- रु. 499
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