भैया दूज की कहानी जानें। सूर्य पुत्र और यम का अपनी बहन यमुना से अपार स्नेह था।अरसे तक बहन से मिलने यम बहन के घर गये। यमुना के निरंतर निवेदन के बाद यम अंततः आज ही के दिन बहन के घर पहुंचे थे।
- ध्रुव गुप्त
यम द्वितीया दीपोत्सव के पांच-दिवसीय आयोजन की अंतिम कड़ी है। भाई-बहन के रिश्ते को समर्पित इस दिन को लोक भाषा में भैया दूज या भाई दूज कहा जाता है। जहां रक्षा बंधन या राखी सभी उम्र की बहनों के लिए है। भैया दूज की कल्पना मूलतः विवाहित बहनों की भावनाओं को ध्यान में रखकर की गई है।
इस दिन भाई बहनों की ससुराल जाकर उनका आतिथ्य स्वीकार करते हैं और बहनें उनका सत्कार कर उनकी लंबी आयु की प्रार्थना करती हैं। हमारी संस्कृति में किसी रीति-रिवाज को स्थायित्व और रिश्तों को गरिमा देने के लिए उसे धर्म और मिथकों से जोड़ने की परंपरा रही है।
यम द्वितीया के लिए भी पुराणों ने एक मार्मिक कथा गढ़ी है। कथा के अनुसार सूर्य के पुत्र और मृत्यु के देवता यम का अपनी बहन यमुना से अपार स्नेह था। यमुना के ब्याह के बाद स्थितियां कुछ ऐसी बनीं कि लंबे अरसे तक भाई और बहन की भेंट नहीं हो सकी। यमुना के निरंतर निवेदन के बाद यम अंततः आज ही के दिन बहन के घर पहुंचे।
यमुना ने दिल खोलकर भाई की सेवा की। प्रस्थान के समय स्नेह और सत्कार से अभिभूत यम ने बहन से वरदान मांगने को कहा। यमुना ने अपने लिए कुछ नहीं मांगा। उन्होंने दुनिया की तमाम बहनों के लिए यह वर मांग लिया कि आज के दिन जो भाई अपनी बहन की ससुराल जाकर यमुना के जल से या बहन के घर में स्नान कर उसके हाथों से बना भोजन ग्रहण करे, उसे यमलोक का मुंह नहीं देखना पड़े।
यह कथा काल्पनिक सही, लेकिन इसमें अंतर्निहित भावनाएं काल्पनिक बिल्कुल नहीं है। इसके पीछे हमारे पूर्वजों का उद्देश्य यह रहा होगा कि भैया दूज के बहाने ही सही, भाई साल में कम से कम एक बार बहन की ससुराल जाकर उससे मिले और उसका कुशल-क्षेम ले। भाई दूज के दिन विवाहित स्त्रियों द्वारा गोधन कूटने की प्रथा है। गोबर की मानव मूर्ति बनाकर उसे मूसलों से तोड़ने के बाद वे यम-यमुना की पूजा करती हैं। संध्या समय यम के नाम से दीप जलाकर घर के बाहर रख दिया जाता है। यदि उस समय आसमान में कोई चील उड़ता दिखाई दे तो यह माना जाता है कि भाई की लंबी उम्र के लिए बहन की प्रार्थना स्वीकार हो गई है।
जैसा कि हर पर्व के साथ होता आया है, कालांतर में अन्य पर्वों की तरह भाई दूज के साथ भी पूजा-विधि के कर्मकांड जुड़ते चले गए, लेकिन इन्हें नजरअंदाज करके देखें तो लोक जीवन की सादगी और निश्छलता के प्रतीक इस पर्व की भावनात्मक परंपरा सदियों तक संजोकर रखने लायक है।
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