Jharkhand Politics- चुनावों के दौरान झारखंड में सुनाई देगी बाहरी-भीतरी की गूंज

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हेमंत सोरेन कहते हैं कि बिहार-यूपी के लोग झारखंडियों का हक छीन रहे हैं।
हेमंत सोरेन कहते हैं कि बिहार-यूपी के लोग झारखंडियों का हक छीन रहे हैं।
हेमंत सोरेन कहते हैं कि बिहार-यूपी के लोग झारखंडियों का हक छीन रहे हैं। लिट्टी-गुपचुप बेचने वहां के लोग झारखंड में आते हैं और देखते-देखते तल्ला पर तल्ला मकान का बढ़ाते जाते हैं। नियोजन नीति इन्हीं लोगों ने रद्द करायी। चुनावी साल से ठीक पहले हेमंत के ऐसे बयानों ने साफ कर दिया है कि 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में झारखंड के मुदे क्या होंगे।

रांची। झारखंड में अगले साल होने वाले लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में झारखंड मुक्ति मोरचा का एजेंडा सीएम हेमंत सोरेन ने तय कर दिया है। समय-समय पर उठता रहा बाहरी-भीतरी का सवाल ही आसन्न चुनावों में शिद्दत से उठेगा। तीन दिन पहले ही हेमंत सोरेन ने चाईबासा में अपनी जोहार यात्रा के दौरान इसका खुलासा कर दिया। उन्होंने कहा कि झारखंड में 1932 के खतियान की बात जो करेगा, वही झारखंडी कहलाएगा। बिहार-यूपी के लोगों ने झारखंड को अब तक लूटा है। इससे पहले हाईकोर्ट में राज्य सरकार की नियोजन नीति रद्द होने पर हेमंत ने इसी अंदाज में कहा था कि बिहार-यूपी के लोगों ने साजिशन नियोजन नीति रद्द करायी।

1932 के खतियान पर टिकी है झारखंड की राजनीति

चाईबासा में ही महीने भर पहले 1932 के खतियान का मुद्दा उठा था। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अपनी सभा में कहा था कि हेमंत सोरेन 1932 के खतियान की बात कह कर झारखंड के लोगों को बांटने का काम कर रहे हैं। बीजेपी ऐसा नहीं होने देगी। झारखंड में 1932 के खतियान का जिन्न समय-समय पर निकलता रहा है। हालांकि इसका राजनीतिक लाभ अभी तक किसी को नहीं मिला है। झारखंड का सीएम रहते बाबूलाल मरांडी ने इसे हथियार बनाने की कोशिश की थी। उन्हें इसकी महंगी कीमत चुकानी पड़ी।

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1932 ने छीनी थी बाबूलाल मरांडी से सीएम की कुर्सी

1932 के खतियान को आधार बना कर बाबूलाल मरांडी ने डोमिसाइल नीति बनायी थी। वह कोर्ट में जाकर निरस्त हो गयी थी। साथ ही उनकी सीएम की कुर्सी चली गयी थी। सीएम की कुर्सी जाने के साथ ही तब से लेकर अब तक बाबूलाल मरांडी का राजनीति में बेहतर तरीके से पुनर्वास नहीं हो पाया। आखिरकार वे बीजेपी के शरण में वापस लौटे, लेकिन यहां भी उन्हें राहत नहीं मिली। उन पर चार साल से दल बदल का मामला स्पीकर के यहां चल रहा है। निर्णय में विलंब होते देख वे हाईकोर्ट गये थे, लेकिन हाल ही में हाईकोर्ट से भी उन्हें कोई मदद नहीं मिल पायी। इस बार हेमंत सोरेन ने यह जोखिम मोल लिया है।

हेमंत सोरेन ने 1932 के खतियान पर चली है चाल

हालांकि हेमंत सोरेन ने इस बार थोड़ी चालाकी की है। इसे अपने स्तर से पारित तो करा लिया, लेकिन नौंवीं अनुसूची के लिए गेंद केंद्र के पाले में डाल दी है, जहां बीजेपी का शासन है। बीजेपी अगर इसे अनुमोदित कर देती है या खारिज करती है, दोनों ही हाल में जीत हेमंत सोरेन की मानी जाएगी। लटकाए रखने तक हेमंत के पास यह दलील होगी कि उन्होंने अपना काम तो कर दिया, बीजेपी ने ही अड़ंगा डाल दिया है। अब देखना है कि अगले साल हो रहे लोकसभा और असेंबली चुनाव में उन्हें इसका कितना फायदा मिलता है।

महत्वपूर्ण विधेयकों से वोटरों को साधेंगे हेमंत सोरेन

हेमंत सोरेन ने कई ऐसे मुद्दों को हाथ में लिया है, जिनकी मांग झारखंड में अर्से से होती रही है। ओबीसी के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की सीमा 14 से बढ़ा कर उन्होंने 27 प्रतिशत कर दी है। झारखंड में तकरीबन 52 प्रतिशत ओबीसी आबादी का दावा करने वाले लोगों पर डोरे डालने के हेमंत के प्रयास के रूप में इसे देखा जा रहा है। 1932 के आधार पर स्थानीय नीति बनाने का प्रस्ताव उन्होंने असेंबली से पास कराया है। आदिवासी-मूलवासी की बड़ी आबादी को अपने पक्ष में करने की हेमंत की यह कारगर चाल मानी जा रही है। हालांकि पूर्ववर्ती सरकारों की स बाबत पहले हुईं कोशिशें नाकाम रही हैं। इसके बावजूद हेमंत को इसका लाभ मिलना पक्का इसलिए माना जा रहा है कि उन्होंने अपने स्तर से पूरी कोशिश तो की है। दरअसल झारखंड में स्थानीयता के लिए 1932 के सर्वे को आधार बनाना मुश्किल काम है। इसलिए कि पूरे सूबे में अलग-अलग सर्वे के रिकार्ड हैं। एक साथ राज्यभर में 1932 में सर्वे नहीं हो पाया है। यही वजह रही कि अमित शाह ने 1932 के खतियान के आधार पर झारखंड को बांटने का आरोप हेमंत सोरेन की सरकार पर लगाया।

नियोजन नीति से भी वोटरों को साधने की कोशिश

हेमंत सोरेन सरकार ने नियोजन नीति बनायी थी। अगर वह लागू हो जाती तो झारखंड में बाहर के लोगों को नौकरी मिलनी मुश्किल हो जाती। भाषा, शिक्षा और निवास की शर्तें लगा कर सरकार ने बाहरी लोगों की नौकरी का रास्ता ही रोक दिया था। हाईकोर्ट ने इस नीति को खारिज कर दिया। हेमंत अब इसका ठीकरा यूपी-बिहार के लोगों पर फोड़ रहे हैं। वह कहते हैं कि इन्हीं लोगों की वजह से झारखंड के मूल निवासियों के हित में बनी नियोजन नीति रद्द हुई। बहरहाल, युवाओं को रोजगार के अवसर मुहैया कराने के लिए हेमंत सरकार ने कई महत्वपूर्ण योजनाओं को मंजूरी दी है। मुख्यमंत्री सारथी योजना, एकलव्य ट्रेनिंग स्कीम, हायर एजुकेशन के लिए 4 प्रतिशत ब्याज पर 15 लाख रुपये तक कर्ज जैसी योजनाएं युवा वर्ग को आकर्षित करेंगी।

सरकारी कर्मचारियों को साधने के लिए हेमंत के नुस्खे

हेमंत सरकार ने पुरानी पेंशन योजना बहाल कर दी है। यह 1 सितंबर 2022 से अमल में आ गयी है। पुरानी पेंशन योजना के लाभुक करीब सवा लाख सरकारी कर्मचारी हेमंत के पाले में आ सकते हैं। पुलिस कर्मियों को साल में एक माह का क्षतिपूर्ति अवकाश देना भी सरकारी कर्मियों को साधने की हेमंत की चाल माना जा रहा है। राज्य सरकार ने 65 हजार पारा शिक्षकों का वेतन बढ़ाया है। कई अन्य लाभ भी सरकार ने उन्हें दिये हैं। आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका के वेतन सरकार ने बढ़ा दिये हैं। इससे राज्य की लगभग 38 हजार सेविकाएं-सहायिकाओं को फायदा होगा। हेमंत को उम्मीद है कि उनकी सरकार के फैसलों से जो लाभान्वित हुए हैं, वे चुनावों में जरूर उनके साथ खड़े होंगे। पिछले छह महीने से वे लगातार राज्य में खतियानी जोहार यात्रा निकाल रहे हैं। लोगों से मिल रहे हैं। अपनी सरकार की योजनाएं समझा रहे हैं। यानी अकेले अपने दम पर हेमंत झारखंड में चुनावी जमीन पुख्ता करते जा रहे हैं।

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