पटना। बिहार में नीतीश सरकार के दिन क्या गिने-चुने हैं, यह सवाल हवा में तल्खी से तिर रहा है। दलित-दंगा के सवाल पर नीतीश कुमार कोई समझौता नहीं कर सकते हैं और भाजपा इस तरह के अपने भावनात्मक मुद्दों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं दिखती। माना जाता है कि दलितों को जिस तरह लुभाने का प्रयास भाजपा कर रही है, उससे दलितों की दो श्रेणी बना कर लाभ उठाते रहे नीतीश कभी छोड़ना नहीं चाहेंगे। इसके लिए वह भाजपा की तरह चालें तो नहीं चलेंगे, लेकिन सभ्य-संभ्रांत तरीके से वह दलितों को अपना हितैषी मानने की कवायद करते रहेंगे। मंगलवार को नीतीश की कैबिनेट ने एससी-एसटी छात्रों के यूपीएससी-बीपीएससी परीक्षाओं में कामयाबी हासिल करने पर स्टाईपेंड की पेशकश की है, उससे तो साफ है कि नीतीश अपने तरीके से दलितों को पक्ष में करना चाहते हैं। इधर रामविलास पासवान भी दलितों के प्रति भाजपा के दया भाव को खारिज कर चुके हैं। याद रहे कि पासवान और नीतीश ने हाल में कई मुलाकातें की हैं और इस शक की गुंजाइश बना दी है कि कुछ न कुछ भीतर पक रहा है, जो अनुमानतः 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले स्पष्ट होने लगेगा।
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