मुजफ्फरपुर बालिका गृह की मानवता को शर्मसार करने वाली घटना कोई आकस्मिक दुर्घटना नहीं है। जब भी कभी इस तरह के बालिका गृहों में आपको जाने का मौका मिले, वहां पर एक अजीब सा दमघोंटू वातावरण देखने को मिलेगा। हमेशा लड़कियों को डरी, सहमी, हिरणी सी भयभीत, परकटे पक्षी की तरह फड़फड़ाते देखेंगे। इन बालिका गृहों के अधिकतर संचालकों के हाव भाव फिल्मों के तीन नम्बर के गुंडों जैसा रहता है। संचालकों के इर्द गिर्द रहने वाले लफंगे बालिका गृह की लड़कियों के साथ जिस तरह अश्लील हरकतें करते हैं इसको तो कोई भी व्यक्ति कुछ देर रहने के बाद हीं अनुभव कर सकता है।
इन बालिका गृहों में इन गुंडों के साथ कुछ पदों पर देवियां भी काम करती हैं जो इन दुष्कर्मों में चंद पैसों और अपनी जीविका के लिए सहायक बन कर स्त्री और माँ के महान गौरव को शर्मसार करती हैं।
एक पुरानी घटना है , एक बालिका गृह की गूंगी बच्ची इशारों में मूछों पर संकेत देकर कुछ कहने की कोशिश करती है तब समझने की कोशिश संवेदनशीलता के साथ करनी जरूरी है। वहां पर काम करने वाली देवियों के विश्वास में भ्रम पैदा होता है। आज लग रहा है हो सकता है, उसके साथ भी कुछ ऐसा हीं हो रहा होगा। किसी भी बालिका सुधार गृह का सड़ांध वातावरण, नरक सा दृश्य उपस्थित करता है। लेकिन यह पूरा सत्य नहीं है। सिर्फ गुंडे संचालक, लफंगे और ये दीन हीन देवियों के बस की बात नहीं है कि सैंतालिस बच्चियों में इकतालिस बच्चियों के साथ इतने दिनों से बलात्कार किए जा रहे हैं। उनसे वेश्यावृत्ति कराई जा रही है और इस कुकृत्य को करने से इंकार करने वाली बच्चियों की पिटाई की जाती है और उनके शरीर को जगह जगह जलाया भी जाता है, हत्या तक कर दी जाती है।
सवाल यह भी है कि इन बच्चियों के साथ रेप कौन कर रहा था?इनकी कहाँ सप्लाई की जाती थी ? सबको पता है वे लोग समाज के रसूखदार लोग होंगें।विधायक, मंत्री से लेकर अधिकारी जब तक इसमें शामिल नहीं होंगे यह जघन्य अपराध नहीं हो सकता।
बालिका गृह के नाम पर सरकार प्रत्येक साल कई सौ करोड़ रुपये खर्च करती है। सरकार से प्रश्न है कि क्या वह कई सौ करोड़ खर्च कर छोटी छोटी लड़कियों का वेश्यालय चला रही है? मैं थूकता हूँ उन सभी बड़े लोगों पर, जो इन मासूम बच्चियों को अपने हवस का शिकार बनाकर पशु से भी बदतर बन गए हैं। लानत है उन स्त्रियों पर जो इसमें सहायक बनती हैं।
ये राक्षस मासूम बच्चियों को सुरक्षा देने के नाम पर सिर्फ करोड़ों रुपये डकार नहीं रहे बल्कि इनके नाम पर पैसे खाकर इन बेसहारा बच्चियों को वेश्या बना रहे हैं। पद्मावती फ़िल्म के नाम पर खून खौलाने वालों की सेनाएं आज कहाँ मुख छिपा कर बैठी है?
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मैं तो नास्तिक हूँ, परंतु है यदि ईश्वर जग में तो विश्वास के साथ कहता हूँ कि उसी ईश्वर से तू डर जो हर पल तेरी तरफ देख रहा है। भ्रष्ट लोकतंत्र के संवैधानिक सरकारी न्यायालय में जो सबसे कठिन सजा हो वह इनके सूत्रधार से लेकर निम्न स्तर तक के कर्मचारियों को देना जरुरी है। यदि इस सामाजिक न्याय की दुहाई देने वाले जनतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार में तनिक भी गरिमा और सम्मान बचा है तो बिना सरकारी दखल दिए पुरी कार्रवाई करे।
- सुरेंद्र कुमार