- नवीन शर्मा
अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति हैनरी ट्रूमैन से जापान पर 6 अगस्त 1945 को जापान के हिरोशिमा शहर लिटल बॉय नाम का एटम बम गिराया था। उसके तीन दिन बाद 9 अगस्त को नागासाकी में फैट मैन नाम का दूसरा एटम बम गिराया। इस बमबारी के पहले दो से चार महीनों के भीतर हिरोशिमा में 90 हजार से 1 लाख 60 हजार और नागासाकी में 60 हजार से 80 लोग मारे गए थे। 20 हजार टन टीएनटी की क्षमता और ब्रहमांड की शक्ति समेटने वाले इस परमाणु बम को बनाने में लगभग दो अरब डॉलर का खर्च आया था।
इस तरह से इन परमाणु बमों ने करीब 2.5 लाख निर्दोष लोगों का नरसंहार किया था। इनमें ज्यादातर आम आदमी थे उनमें निर्दोष बच्चे, महिलाएं, युवा और वृद्ध थे। यह हमला मानवता के प्रति अब तक का सबसे बड़ा अपराध है।
इस हमले से मजबूर होकर जापान ने आत्मसमर्पण किया था इसके कुछ दिन बाद द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो गया।
अमेरिका ने हमले के लिए हिरोशिमा शहर को इसलिए चुना था क्योकि वह एक बंदरगाह वाला शहर था। इसके साथ ही यहा जापानी सेना को राशन पहुंचाने का भी केंद्र था। जापानी सेना संचार तंत्र भी यहीं से ऑपरेट करती थी।
आज इस अटैक को 73 वर्ष हो गए हैं लेकिन जापान का यह हिस्सा आज भी उस हमले से होनेवाले रेडिएशन से प्रभावित है। आज भी यहां पर उत्पन्न हो रही संतानों पर इस हमले का असर साफ देखा जा सकता है। जापानी सरकार आज भी इन लोगों को मदद मुहैया करवाती है। रेडिएशन के शिकार लोगों को जापान में हिबाकुशा कहा जाता है। इन लोगों की संख्या 2 लाख के आसपास बताई जाती है।
परमाणु बम से इतनी मौत हो जाने के बाद अमरीकी राष्ट्रपति हैनरी ट्रूमैन ने दु:ख जताने की जगह रात को यह ऐलान किया कि अब जापानियों को पता चल गया होगा कि परमाणु बम क्या-क्या कर सकता है। इन दो परमाणु हमले के 6 दिन बाद जापान के युद्ध मंत्री और सेना के अधिकारी के खिलाफ जाते हुए प्रधानमंत्री बारोन कांतारो सुजुकी ने मित्र राष्ट्रों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
हिरोशिमा और नागासाकी की बदहाली पर जहां अमेरिका इतरा रहा था, वही पूरा जापान कराह रहा था। जो लोग हमले में मारे गए थे उनके अंतिम संस्कार के लिए लोग नहीं मिल रहे थे। जो रेडिएशन का शिकार हुए थे। उनको इलाज नहीं मिल पा रहा था। हालात ये थे कि लोग दर्द से तड़प रहे थे और सरकार असहाय नजर आ रही थी।
नागासाकी और हिरोशिमा पर परमाणु हमले ने पूरी दुनिया में परमाणु हथियारों की अंधी दौड़ शुरू कर दी। हर देश खुद को परमाणु शक्ति बनाने की दौड़ में लग गया। द्वितीय विश्व युद्ध में मित्रराष्ट्र विजयी हुए थे, लेकिन इसने यूरोप के ब्रिटेन, फ्रांस व अन्य राष्ट्रों को आर्थिक और सामरिक रूप से काफी कमजोर कर दिया था। इन देशों के भी हजारों सैनिक मारे गए थे। वहीं दूसरी तरफ इस युद्ध से अमेरिका को कोई खास नुकसान नहीं हुआ था क्योंकि युद्ध यूरोप, एशिया, अफ्रीका आदि महाद्वीपों में लड़ा गया लेकिन अमेरिका इससे अछूता रहा था। एक बार सिर्फ जापान ने पर्ल हार्बर पर हमला कर अमेरिका को जंग की आंच महसूस कराई थी।
इस युद्ध के बाद अमेरिका आर्थिक और सामरिक रूप में दुनिया का सबसे ताकतवर राष्ट्र बन गया था। साथ ही पूरे दुनिया में अमेरिका की दबंगई का सिक्का चलने लगा। वह पूरी दुनिया में दादागिरी चलाने लगा। उसने मित्र देशों के साथ नाटो नाम का गठजोड़ बनाया। इनके मुकाबले सोवियत संघ ने भी कम्युनिस्ट देशों का गठजोड़ बनाया। ये दोनों गठबंधन परमाणु हथियारों का जखीरा जमा करने लगे।इन बेवकूफों ने इतने हथियार जमा कर लिए की ये परमाणु बमों से कई बार पृथ्वी से मानव सहित अन्य जीवों को समूल नष्ट कर सकें।
यह भी पढ़ेंः चोर अध्यापकों की जाएगी नौकरी, छात्रों का पंजीकरण रद्द होगा
वहीं दूसरी तरफ अमन पसंद लोगों ने इन परमाणु हथियारों के खिलाफ अभियान शुरू किया है। इनका प्रयास कुछ रंग ला रहा है। संयुक्त राष्ट्र में 122 देशों ने परमाणु हथियारों के बहिष्कार की संधि को मंजूरी दी है। वहीं 9 परमाणु संपन्न देशों अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस आदि विरोध कर रहे हैं।
यह भी पढ़ेंः असम राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के आंकड़ों पर घमासान