Patna: शराबबंदी के बाद बिहार में अपराध घटे हैं। खासतौर पर बड़े अपराध। जैसे- फिरौती, हत्या और डकैती की वारदातों में उल्लेखनीय कमी आयी है। शराब के नशे में छोटी-सी बात पर हंगामा, मारपीट, मर्डर तक होना पहले आम बात थी। शराबबंदी के बाद निःसंदेह बिहार में स्थिति बेहतर हुई है।
व्यापारियों को भी राहत मिली है और उनसे खुलेआम शराब के पैसे मांगने वाले नदारद हैं। शराबबंदी से पहले चौक चौराहे पर पीकर हंगामा करते हुए पहले आसानी से दिख जाते थे, जिनकी वजह से शरीफ आदमी और खासकर महिलाएं उस रास्ते से से गुजरने में कतराती थीं, आज पकड़े जाने के डर से ऐसे लोग कहीं नजर नहीं आते हैं।
ऐसा नहीं है कि शराबबंदी के बाद अपराध ख़त्म हो गए हैं, मगर इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि अपराध घट गए हैं। नशे की हालत में वाहन चलने वालों में कमी आने की वजह से सड़क हादसों में भी काफी कमी आयी है। शराब की लत छूटने के कारण खासकर गरीब परिवारों में आर्थिक बचत की वजह से न सिर्फ जीवन स्तर में सुधार देखने में मिल रहा है, बल्कि उनके स्वास्थ्य में भी काफी सुधार हुआ है।
राज्य के 25 जिलों में मद्य निषेध एवं उत्पाद विभाग की ओर से कराये सर्वे में पाया गया है की तनाव के मामले में 75%, लीवर के 20% और ह्रदय के मरीजों में 25% की गिरावट दर्ज की गयी है। परिवार में गृह कलह और महिलाओं पर होने वाले अत्याचार और घरेलू हिंसा में भी भारी कमी देखी गयी है।
सरकार द्वारा जब पूर्ण शराबबंदी की घोषणा की गयी, तब ये अनुमानित था कि इससे सरकार के राजस्व प्राप्ति में भारी कमी होगी। करीब 5000 करोड़ प्रतिवर्ष से ज्यादा का आर्थिक नुकसान राज्य को शराबबंदी की वजह से हो रहा है और ये किसी भी राज्य के आर्थिक विकास में एक रुकावट के रूप में देखा जा सकता है। मगर शराबबंदी की वजह से खासकर गरीबों और पिछड़ों के जीवन और स्वास्थ्य के स्तर में सुधार के साथ महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा और सामान्य अपराध में जो कमी आई, उसकी कीमत राजस्व घाटे से कहीं ज्यादा है।
इसके दूसरे पहलू पर ध्यान दें तो शराब में होने वाले खर्च को जब लोग दूसरे जरूरी खर्च के उपयोग में लाने लगे तो उससे प्राप्त होने वाले राजस्व से सरकारी घाटे की भरपाई अपने आप होने लगी। शराबबंदी से इससे जुड़े रोजगार और व्यवसाय पर भी प्रतिकूल असर पड़ा। शराब के व्यवसाय से शहर से लेकर ग्रामीण स्तर तक लाखों लोग प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जुड़े हुए थे। बंदी के बाद इससे जुड़े लोगों के सामने अचानक रोजी-रोटी की समस्या आ गयी। विशेषकर ताड़ी और देशी शराब से ज्यादातर गरीब और पिछड़े वर्ग के लोग जुड़े हुए थे, जिनकी आमदनी और रोजगार का यही एक जरिया था।
इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर सरकार बहुत गंभीरता और प्राथमिकता के आधार पर ऐसे लोगों के वैकल्पिक रोजगार और आय के अतिरिक्त साधन को बढ़ाने के लिए कई योजनाएं सामने लेकर आयी। ऐसी ही एक महत्वपूर्ण योजना है सतत जीविकोपार्जन योजना। इसका लक्ष्य है खुशहाली हर हाल में। सतत जीविकोपार्जन योजना राज्य सरकार द्वारा मुख्यतः देशी शराब एवं ताड़ी के उत्पादन एवं बिक्री में प्रारंभिक रूप से जुड़े अत्यंत निर्धन परिवार एवं अन्य अनुसूचित जाति, जनजाति तथा अन्य समुदाय के लक्षित अत्यंत निर्धन परिवार के लिए शुरू की गयी है।
इस योजन के अंतर्गत जीविका के ग्राम संगठन द्वारा चिन्हित प्रत्येक परिवार को जीविकोपार्जन के लिए परिसंपति खरीदने के लिए औसतन 60 हजार से 1 लाख तक सहयोग राशि उपलब्ध करायी जाएगी। सरकार द्वारा दी गयी इस सहयोग राशि का उपयोग वे दुधारू पशुओं के क्रय, बकरी एवं मुर्गी पालन, मधुमक्खी पालन, नीरा अथवा अगरबत्ती व्यवसाय एवं कृषि संबंधी अथवा अन्य गतिविधियों के संचालन में कर सकते हैं। शराब और ताड़ी के धंधे से जुड़े लोगों के लिए यह न सिर्फ व्यवसाय का वैकल्पिक रास्ता तैयार कर रहा है, बल्कि इज्जत और प्रतिष्ठा के साथ समाज की मुख्यधारा में जुड़ने का अवसर भी प्रदान कर रहा है।
किसी नए व्यवसाय में आने पर सबसे बड़ी समस्या किसी नए व्यक्ति के लिए होती है, उस व्यवसाय के बारे में कम जानकारी और उसे सुचारू रूप से चलने के लिए कौशल की कमी। इस समस्या के समाधान के लिए सरकार द्वारा चिन्हित परिवारों के कौशल विकास एवं प्रशिक्षण की व्यवस्था की गयी है। इस व्यवस्था से उन्हें नए व्यवसाय में भी प्रशिक्षित होकर और अपना कौशल विकास कर जीविकोपार्जन के लिए आत्मनिर्भर बनने में सहायता मिलेगी।
शराबबंदी के बाद इससे जुड़े लोगों के लिए सरकार सहायता राशि के साथ वैकल्पिक व्यवसाय के अवसर तो प्रदान कर ही रही है, साथ ही साथ सरकार के विभिन्न कार्यक्रम जैसे 7 निश्चय, सामाजिक सुरक्षा, प्रधानमंत्री आवास योजना, मनरेगा, छात्रवृति, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम एवं महादलित विकास मिशन की संचालित योजनाओं का लाभ भी उन्हें मिलेगा। इस योजना के सफलतापूर्वक और दृढ़ता से जमीन पर कार्यान्वयन से निश्चित रूप से एक ओर जहाँ शराब की बुराइयों से समाज को छुटकारा मिलेगा वहीँ दूसरी ओर शराबबंदी से पूर्व में इस व्यवसाय से जुड़े लोगों के सामाजिक और आर्थिक स्तर में सुधार के साथ साथ सरकार के राजस्व में भी वृद्धि होगी।
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