वाराणसी (हरेंद्र शुक्ला)। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में अब तक स्वयं पीएम 13 बार, प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ 29 बार, केन्द्र और राज्य सरकार के मंत्रियों ने सैकड़ों बार काशी का दौरा कर विकास को परवान चढाने की कोशिश की, लेकिन नतीजा सिफर रहा। शहर की गढ्ढायुक्त सडकें, बजबजाती नालियां, ओवरफ्लो कर रहे सीवर, जाम से जूझती ज़िन्दगी, हर तरफ गंदगी-कचरे का अंबार कभी भी देखने को मिल जायेगा। इन्हीं बुनियादी सुविधाओं की जर्जरता के कारण काशी अब विकास का नाम सुनते ही कराह रही है।
यदि बनारस कोटे के मंत्री इन बुनियादी सुविधाओं पर ध्यान दिये होते तो शायद पीएम और सीएम को काशी का रेकार्ड दौरा नहीं करना पड़ता। भले ही केन्द्र / राज्य सरकार की ओर से हजारों करोड़ की परियोजनाए काशी के विकास के लिए चल रही हों, लेकिन यह सच है कि पीएम के दौरे के समय ही जहां-जहां से वे गुजरते हैं, उनके जाने के बाद हफ्ता-दस दिन तक उन मखमली सडकों पर जनता चल लेती है। फिर वह सड़क जर्जरता के मामले में शहर की अन्य सडकों और गलियों से होड़ करने लगती हैं।
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विकास योजनाओं को परखने के लिए जब भी सीएम काशी आये हैं, उनको यहां के कलाकार प्रजाति के अधिकारी अपनी कलात्मक शैली में विकास कार्य की प्रगति रिपोर्ट दिखाकर विदा कर देते हैं। अधिकारियों की कार्यशैली देखकर यह नहीं लगता कि ये वही अधिकारी हैं, जो कभी कल्याण सिंह और मायावती जैसे मुख्यमंत्री के आने का नाम सुनते ही व्यवस्थित होकर जनता के कार्यों को अंजाम देते थे। बताते चलें कि तब के मुख्यमंत्री प्रगति रिपोर्ट नहीं, बल्कि फाइनल रिपोर्ट ही देखना पसंद करते थे। लेकिन यह आश्चर्य है कि पहली बार किसी ने मुख्यमंत्री की हैसियत से अपने कार्यकाल के मात्र एक वर्ष में 29 बार काशी का दौरा किया है तो उसका श्रेय श्री योगी आदित्यनाथ को जाता है। इसके बावजूद बुनियादी सुविधाओं से जूझ रही काशी को राहत नहीं मिलना सरकार की दावों की पोल जरूर खोल रही है।
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