खौफ में जी रहे बिहारियों को नीतीश ने दिया डायल 100 का झुनझुना

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पटना। जंगल राज की ओर मुखातिब बिहार की बानगी उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी की जुबानी जनता सुन चुकी है। उन्होंने गया में पितृपक्ष मेले के उद्घाटन के मौके पर कहा था कि अपराधियों से विनती है कि वे बाकी दिनों में भले कुछ करें, पितृपक्ष के दौरान  राहत दे दें। इधर माब लिंचिंग और मुजप्फरपुर में पूर्व मेयर की हत्या के बाद सूबे में एनडीए सरकार की हो रही किरकिरी के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंगलवार को डायल 100 का झुनझुना जनता को थमा दिया। मुख्यमंत्री ने कहा कि यह काफी जनोपयोगी है। विपक्षी सियासतदां मानते हैं कि यह सिर्फ दिखावे का है, इससे जनता को कोई फायदा नहीं होने वाला।

मुख्यमंत्री ने डायल 100 की शुरुआत के वक्त इसे जनोपयोगी करार देते हुए कहा कि डायल 100 सेवा का शुभारंभ किया गया है। पटना जिले में डायल 100 वर्ष 2014 से ही लागू है, जिसका विस्तार कर पूरे बिहार में इसे आज से लागू किया गया है। 12 करोड़ की आबादी वाले इस बिहार में 8.5 करोड़ मोबाइल फोन हैं। ऐसे में अगर कहीं से कोई शिकायत आती है तो उसकी सूचना संबद्ध जिले के थाने तक पहुँचनी चाहिए। उन्होंने कहा कि नई तकनीक के सहारे इसके स्वरूप को और आधुनिक बनाना चाहिए। सभी थानों एवं आउट पोस्ट तक लैंडलाइन फोन लगे, इसे पुलिस मुख्यालय को सुनिस्चित करना चाहिए। फोन निरंतर फंक्शनल रहें, इसके लिए खराब होने पर आधे घंटे के अंदर उसे दुरुस्त करने एवं ससमय बिल भुगतान की भी व्यवस्था पुलिस मुख्यालय के स्तर से सुनिश्चित होनी चाहिए, ताकि यह सेवा स्थायी, सशक्त और प्रभावी बन सके।

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मुख्यमंत्री ने कहा कि लॉ एंड आर्डर और अपराध को लेकर मेरे स्तर से समय-समय पर समीक्षा बैठक होती रहती है। पूर्व में ही हमने कहा था कि हत्या, लूट, बलात्कार, बैंक डकैती एवं अन्य आपराधिक घटनाओं का आकलन, डिटेल में जिले एवं थाने के स्तर पर होना चाहिए, जिससे यह पता चल सके कि किसी खास इलाके में किस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति हो रही है। उसके समाधान के लिए सकारात्मक दिशा में कार्रवाई की जा सके। घटना कब घटी, उस पर कितने समय के अंदर कार्रवाई हुई, घटनास्थल पर सूचना मिलने के बाद पुलिस कितनी देर में पहुंची, इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए पुलिस अधिकारियों को आकलन करना चाहिए। इसका अपराधियों के मनोबल पर प्रभाव पड़ता है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि आजकल बालू माफिया और शराब के अवैध धंधे में लगे असामाजिक तत्व पुलिस पर ही हमले कर रहे हैं। इसे गंभीरता से लेते हुए ऐसे लोगों से सख्ती से निपटने की आवश्यकता है। ऐसी जगहों पर जाते वक्त पुलिस को पर्याप्त संख्या बल को भी ध्यान में रखने की आवश्यकता है। वर्ष 2005 में जब हमने कार्यभार संभाला था तो पुलिस बल की संख्या काफी कम थी, पुलिस थानों में उपयुक्त हथियार और वाहन नहीं थे। गाड़ियों को ठेलकर स्टार्ट किया जाता था। पुलिस में ड्रेस का कोई मतलब नहीं था। हमने कई स्तर पर काम किये, जिसका सकारात्मक नतीजा निकला।

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