नवरात्र में NDA के सीट बंटवारे का होगा ऐलान, तब मचेगा घमासान

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बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग एक बार उठी है। नीति आयोग की रिपोर्ट में बिहार की खस्ताहाली उजागर होने के बाद नीतीश कुमार ने अपनी पुरानी मांग रिपीट कर दी है।
बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग एक बार उठी है। नीति आयोग की रिपोर्ट में बिहार की खस्ताहाली उजागर होने के बाद नीतीश कुमार ने अपनी पुरानी मांग रिपीट कर दी है।

पटना। बिहार एनडीए में सीटों के बंटवारे पर चल रही तनातनी और बहस-मुबाहिसों परफलवक्त विराम लगा गया है। खासकर तब से, जब वशिष्ठ बाबू के बाद नीतीश कुमार ने भी जदयू कार्यकारिणी की बैठक के दौरान कह दिया कि टिकट बंटवारे पर एनडीए में कोई विवाद नहीं है। इसका मतलब यह नहीं कि सच में विवाद थम गया है। भाजपा और जदयू ने इशारों-इशारों में यह संकेत दे दिया है कि कौन क्या करने वाला है। बहरहाल ताजा सूचना यह है कि नवरात्र के दौरान (पितरपक्ष खत्म होने के बाद) सीटों के बंटवारे का आधिकारिक आंकड़ा उजागर हो जाएगा। उसी के साथ नये घमासान का बीजारोपण भी हो जायेगा। पिछले चुनाव की सफलता को देखते हुए भाजपा बूथ स्तर तक जा रही है।

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बिहार एनडीए में चार घटक दल- भाजपा, जदयू, लोजपा और रालोसपा हैं। पिछले चुनाव में जदयू एनडीए का घटक नहीं था। फिर भी एनडीए ने 31 सीटों पर जीत हासिल की थी। जदयू को तो दो सीटों से ही संतोष करना पड़ा। यानी तीन घटक दल तो इस ऐंठ में हैं कि उन्हें पिछली बार की तरह पूरी सीटें तो मिलनी ही चाहिए, ऊपर से बोनस भी ये चाह रहे हैं। एनडीए के पाले में दोबारा लौटे नीतीश कुमार राजद के साथ विधानसभा चुनाव में मिली सीटों के अनुसार हिस्सा मांग रहे हैं।

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भाजपा के चाणक्य अमित शाह को अभी तक कोई घटक दल समझ नहीं पाया है। उनकी सुविचारित चाल धुरंधरों को भी मात दे देती है। यूपी विधानसभा चुनाव के वक्त लोग अनुमान लगा रहे थे कि चुनाव परिणाम त्रिशंकु हालत में पहुंचा देंगे। इन अटकलों के बीच अमित शाह ने बूथ स्तर तक पार्टी की पहुंच बना ली। वे चुपचाप अपने काम में लगे रहे। चुनाव परिणाम ने राजनीतिक दलों के साथ विश्लेषकों को भी चौंका दिया।

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ठीक यूपी के तर्ज पर बिहार में भाजपा काम कर रही है। बूथ तक कूच का नारा दिया है भाजपा ने। बिहार के लिए केंद्र सरकार की झोली खुल गयी है। सड़कों के लिए पैसे आ रहे, पुलों के लिए पैसे मिल रहे, नये हवाई अड्डे खुल रहे और मौजूदा पटना एयरपोर्ट के विस्तार के लिए बड़ी रकम का केंद्र सरकार ने ऐलान ही नहीं किया, बल्कि कैबिनेट की बैठक में इस पर मुहर भी लगा दी। भाजपा प्रवक्ताओं को सख्त हिदायत है कि बिहार में जदयू नीत एनडीए सरकार के कामों का गुणगान करने से बचें और केंद्र की योजनाओं को गिनायें। राजनीति की सामान्य समझ रखने वाला आदमी भी भाजपा के इस अघोषित एजेंडे को समझ सकता है। अगर उसे नीतीश कुमार, राम विलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा को मनमानी सीटें ही देनी होतीं तो वह बूथ स्तर तक मशक्कत क्यों करती। घटक दलों की मांग तो उसकी पिछली अकेले जीतीं सीटों से भी ज्यादा है। अकेले भाजपा ने 41 फीसदी वोट पिछले चुनाव में पाये थे। यानी जब मनमानी सीटें नहीं मिलेंगी तो सभी घटक दलों में भगदड़ की स्थिति स्वाभाविक है। जाहिर है कि ऐसे में कोई निर्दलीय लड़ने के बजाय किसी दल का झंडा उठाना बेहतर समझेगा। ऐसे लोगों की पहली पसंद राजद हो सकता है, जिसके पास माय समीकरण के अकेले 31-32 प्रतिशत वोट हैं।

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