पटना। नवरात्र देवी दुर्गा को समर्पित पर्व है। इसमें देवी के नौ अलग-अलग स्वरूपों का पूजन किया जाता है। नवरात्र के दसवें दिन विजयदशमी या दशहरा के रूप में मनाया जाता है। शारदीय नवरात्र सभी नवरात्रों में सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण माना जाता है। इसलिए इसे महानवरात्र भी कहा जाता है। आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से विजया दशमी तक होती है माता की आराधना। जिन युवकों-युवतियों का विवाह न हो रहा हो, वे देवी की पूजा से मनोवांछित साथी पा सकते हैं।
कर्मकांड विशेषज्ञ पं. राकेश झा शास्त्री ने बताया कि इस वर्ष शारदीय नवरात्र 10 अक्टूबर दिन बुधवार को चित्रा नक्षत्र एवं वैधृति योग में आरंभ होकर 19 अक्टूबर दिन शुक्रवार को विजया दशमी के साथ संपन्न होगा। इस नवरात्र में माता अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए नाव पर आ रही हैंI माता के इस शुभ आगमन से श्रद्धालुओं को मनचाहा वरदान और सिद्धि की प्राप्ति होगीI इसके साथ ही माता की विदाई हाथी पर होगी। इस गमन से भारतवर्ष में आने वाले साल में समुचित वृष्टि के आसार बनेंगे।
कलश पूजा से मिलेगी सुख-समृद्धि का वरदान
पंडित राकेश झा ने कहा कि शास्त्रों के अनुसार नवरात्र व्रत-पूजा में कलश स्थापन का महत्व सर्वाधिक है, क्योंकि कलश में ही ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र, नवग्रहों, सभी नदियों, सागरों-सरोवरों, सातों द्वीपों, षोडश मातृकाओं, चौसठ योगिनियों सहित सभी तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं का वास रहता है। इसीलिए विधिपूर्वक कलश पूजन से सभी देवी-देवताओं का पूजन हो जाता है। नवरात्र में कलश स्थापना का खास महत्व होता है। इसलिए इसकी स्थापना सही और उचित मुहूर्त में ही करनी चाहिए। ऐसा करने से घर में सुख और समृद्धि आती है। परिवार में खुशियां बनी रहती हैं। घटस्थापना मुहूर्त प्रतिपदा तिथि को किया जाएगा। जो चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग में संपन्न होगा।
माता की आराधना से मिलेगा मनचाहा वरदान
छात्र इस नवरात्र में ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नमः’ मंत्र का जाप करके प्रतियोगिता में सफल हो सकते हैं। कर्ज से मुक्ति के लिए “या देवि! सर्व भूतेषु लक्ष्मी रूपेण संस्थिता! नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः” का जप करके ऋण मुक्त हो सकते हैं। जिन युवकों का विवाह न हो रहा हो, वे “पत्नी मनोरमां देहि! मनो वृत्तानु सारिणीम, तारिणीम दुर्ग संसार सागरस्य कुलोद्भवाम” का जप करके मनोनुकूल जीवन साथी पा सकते हैं। कुंवारी कन्याएं, जिनका विवाह न हो रहा हो, वे “ॐ कात्यायनी महामाये! महायोगिन्यधीश्वरी! नन्द गोप सुतं देवि! पतिं मे कुरु ते नमः” मंत्र का जप करके ईष्ट जीवनसाथी पा सकती हैं।
शारदीय नवरात्र का इतिहास
ज्योतिष शास्त्री राकेश झा शास्त्री ने शास्त्रों के हवाले से बताया कि भगवान राम ने सबसे पहले समुद्र के किनारे शारदीय नवरात्र की पूजा का आरंभ की थी। लगातार नौ दिनों की पूजा के बाद राम ने लंका पर विजय प्राप्त किया। सभी तरह की मनोकामना की पूर्ति हेतु माँ जगत जननी की पूजा कलश स्थापना संकल्प लेकर प्रारंभ करने से कार्य में सिद्धि की प्राप्ति होती है।
नवरात्र में इन नौ देवियों की होती है पूजा
- शैलपुत्री– पहाड़ों की पुत्री
- ब्रह्मचारिणी– तप का आचरण करने वाली देवी
- चंद्रघंटा- चाँद की तरह चमकने वाली देवी
- कूष्माण्डा- पूरा जगत को अपने चरणों में जगह देने वाली देवी
- स्कंदमाता– कार्तिक स्वामी की माता
- कात्यायनी– कात्यायन आश्रम में जन्म लेने वाली माता
- कालरात्रि- कल को नाश करने वाली देवी
- महागौरी-श्वेत वर्ण वाली माता
- सिद्धिदात्री– सर्व सिद्धि को देने वाली देवी
कन्या पूजन देता है शुभ फल
ज्योतिषी पंडित राकेश झा शास्त्री के कहा कि भगवती पुराण के अनुसार नवरात्र में कन्या पूजन का विशेष महत्व है। नवरात्र में छोटी कन्याओं में माता का स्वरूप बताया जाता है। तीन वर्ष से लेकर नौ वर्ष की कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती है। छल और कपट से दूर ये कन्यायें पवित्र बताई जाती हैं और कहा जाता है कि जब नवरात्रों में माता पृथ्वी लोक पर आती हैं तो सबसे पहले कन्याओं में ही विराजित होती है। भोजन कराने के बाद कन्याओं को दक्षिणा देनी चाहिए। इस प्रकार महामाया भगवती प्रसन्न होकर मनोरथ पूर्ण करती हैं।
पंडित झा ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार एक कन्या की पूजा से ऐश्वर्य, दो कन्या की पूजा से भोग और मोक्ष, तीन कन्याओं की अर्चना से धर्म, अर्थ व काम, चार की पूजा से राज्यपद, पांच की पूजा से विद्या, छ: की पूजा से सिद्धि, सात की पूजा से राज्य, आठ की पूजा से संपदा और नौ कन्याओं की पूजा से पृथ्वी के प्रभुत्व की प्राप्ति होती है।
शास्त्रों में दो साल की कन्या कुमारी, तीन साल की त्रिमूर्ति, चार साल की कल्याणी, पांच साल की रोहिणी, छ: साल की कालिका, सात साल की चंडिका, आठ साल की शाम्भवी, नौ साल की दुर्गा व दस साल की कन्या सुभद्रा मानी जाती हैं।
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कलश स्थापना के शुभ मुहूर्त
- सिद्धि मुहूर्त– प्रातः काल 6:18 बजे से 10:11 बजे तक
- गुली काल मुहूर्त- सुबह 10:09 बजे से11:36 बजे तक
- अभिजीत मुहूर्त- दोपहर 11:36 बजे से 12:24 बजे तक