मुगल काल से ही अटूट आस्था और भक्ति का केंद्र रहा है बेगूसराय का यह बखरी स्थित प्राचीन दुर्गा मंदिर, जहाँ पर शारदीय नवरात्र के आरंभ होते ही तंत्र साधकों का डेरा बन जाता है यह दुर्गा का मंदिर प्रांगण
बेगूसराय (नंद किशोर सिंह)। मुगल काल से ही अटूट आस्था और भक्ति का केंद्र रहा है बेगूसराय के बखरी स्थित प्राचीन दुर्गा मंदिर, जहाँ पर शारदीय नवरात्र के आरंभ होते ही तंत्र साधक डेरा जमा लेते हैं। तंत्र साधक यहां अपनी तंत्र साधना शुरू कर देते हैं। बखरी नगर के मध्य बाजार स्थित पुराने दुर्गा स्थान भगवती मंदिर को प्राचीन सिद्ध शक्तिपीठ की मान्यता प्राप्त है।
ऐसी मान्यता है कि माता भगवती दुर्गा यहां साक्षात विराजमान है। माता के दरबार में आने वाले श्रद्धालुओं द्वारा सच्चे मन से मांगी जाने वाली मुरादें मां भगवती पूरा करती हैं। महाअष्टमी की रात दूरदराज से बड़ी संख्या में तंत्र साधना के लिए तंत्र साधक यहां पहुंच कर तंत्र विद्या की सिद्धि को प्राप्त करते हैं। इस दिन शाम ढलते ही साधक विभिन्न मुद्राओं में लीन हो जाते हैं। इसे चाटी कहा जाता है। इस प्रक्रिया में जो साधक माता की ओर बढ़े चले जाते हैं। उनकी साधना सिद्ध मानी जाती है।
यह प्रक्रिया मध्यरात्रि माता का पट खुलने तक जारी रहती है। कहा जाता है कि तंत्र विद्या की शुरुआत यहां चौदहवीं शताब्दी से आरंभ हुई। किंवदंतियों के अनुसार 14वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में सल्तनत कालीन सामाजिक, राजनीतिक व्यवस्था में बिखराव को रोकने के लिए महिला नेतृत्व का उभार हुआ। इसका नेतृत्व तत्कालीन उतरांग प्रदेश की बहुरा गोढिन ने की। जिसने अपनी तांत्रिक विद्या के माध्यम से महिलाओं को गोलबंद किया। इसकी शुरुआत देवी दुर्गा की आराधना से हुई। यह परंपरा आज भी कायम है।
आज भी नगर के पूर्व स्थित सार्वजनिक दुर्गा स्थान परिसर में बहुरा गोढिन का मंदिर विद्यमान है, जहां भक्त श्रद्धा भाव से तंत्र साधना के साथ-साथ मन्नतें मांगते हैं। नौ दिनों तक कुमारी कन्याओं एवं महिलाओं के द्वारा हाथों में प्रज्जवलित दीप लेकर माता के मंदिर की प्रदक्षिणा की जाती है। भक्ति आत्मा को प्रेरित कर भाव विभोर कर देती है। पूरे नवरात्र तक बखरी के घर घर से सिर्फ एक ही स्वर गुंजायमान होते रहता है- जय माता दी ,जय माता दी।
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