पावं लागीं मलिकार। दसईं (दशहरा) बीतल, बीस दिन बाद देवराई (दीपावली) आ ओकरा बाद छठ के संगे तेवहार के सीजन ओरा जाई। ए मलिकार, हम त नवरातन (नवरात्र) में काली माई के मन से पूजले बानी आ अशीरबाद मंगले बानी कि ए काली माई, एह साल नन्हकी खातिर नीमन घर-वर दीं कि अपना जिमवारी से पार पा जाईं सन। गोधन (गोवर्धन पूजा) के बिहान भइला से वरतुहारी शुरू हो जाई। रउरो तनी घूम-फिर के देखीं कवन नीमन एगो वर। पांड़े बाबा के बड़की पतोहिया बतावत रहुएवे काल्ह कि ओकरा मउसी के बड़का बेटवा के जहवां बियाह भइल बा, ओही गांवें एगो लड़िका बा। ऊ त कहत रहुवे कि ए चाची, अपना बबुनी आ ओह लड़िका में नीमन जोड़ी बइठी। कहत रहुवे कि लड़िका के कवनो मांग नइखे। हमार त राय बा मलिकार कि रउरा गोधन बाद एक बेर चल जाईं आ जाके देख आईं।
हम जानत बानी मलिकार राउर परेशानी, बाकिर का करेब। दूनिया के इहे रंग-ढंग हो गइल बा त ओकरा संगे चलहीं के पड़ी। लोग कहेला कि बाल-बच्चा के लिखा-पढ़ा के सगरी के लायक बनावे में राउर जिनिगी बीत गइल। पांड़े बाबा काल्ह केहू से कहत रहवीं कि देख लोगिन, बाइस टोला के एह गांव में एगो गिरि बाबा कवलेज के मास्टर भइनी त सगरी जवार में हल्ला हो गइल कि बाप रे, उहां के केतना बड़ आदमी हो गइनी। एही गांव में एगो लड़का कवलेज के मास्टर (मलिकाइन प्रोफेसर के इहे कहेली) भइल त कतहीं ढोल-नगाड़ा ना बाजल। हमरा त ए आदमी पर एतना मन खुश होला कि बाल-बच्चा के पढ़ा-लिखा के ई आदमी कहवां पहुंचा दिहलस। रउरा सचहूं तप कइले बानी मलिकार। जनम देबे भर परसौती के पीरा हमरा भइल, बाकिर छह को बाल-बच्चा के पढ़ावल-लिखावल आसान काम ना रहे।
पांड़े बाबा राउर एतना बड़ाई करत रहवीं कि हमार मन गदरा गउवे। केहू के बतावत रहवीं उहां के कि देखिह कवनो डागदर (डाक्टर) लड़िका नजर में आवे त बतइह। हमही जाके पहिले देख-बतिया आयेब। बाद में रउरा के ले जायेब। कहत रहवीं कि गांव में केहू डाक्टर, परफेसर ना भइल रहल हा, रउरा बेटी के पढ़ा के डागदर बना दिहनी। जानत बानी मलिकार, जहिया रउरा बतवनी कि बेटी पास हो गइल आ अब डाकदर हो गइल त पांड़े बाबा भर गांव बायन अइसन चार-चार गो लड्डू बंटववले रहनी। केतना खुश रहनी ओह दिन उहां के। कहत रहनी कि अब हमहीं ओकरा खातिर डाकदर लड़िका खोजेब। कवनो वोकील (वकील) साहेब बाड़े अपना जवार में, उनकर लड़िका डाक्दर बा। उहां के वोकील साहेब से बतियावे के कहत रहवीं। गोधन बाद उहां के जायेब उनकरा घरे।
का कहले बानी मलिकार, एह घरी लड़िकन के बियाह के भाव एतना बढ़ गइल बा कि सुन-सुन के माथा खराब हो जाता। रउरा चनेसर सिंह मास्टर के लंपटवा लड़कवा के त जानते बानी। इयाद परल, जब छिनताई में धराइल रहे त चनेसर मास्टर राउर नंबर मांगे खातिर हमरा लगे आइल रहले। कहले कि थाना में पैरवी करवावे खातिर बतिआवे के बा। पांड़े बाबा त साफ सुना दिहनी कि ले जा नंबर, बाकिर पैरवी के उमेद मत करिह। हम जानीले उनकरा के। पैरवी करे के उनकर आदत रहित त आज घर ढहत-ढिमलात ना रहित। ऊ त अपना बाल-बच्चन के नांव लिखावे तक के पैरवी ना करस। हं, त बतावत रहनी हां मलिकार कि ओ लंपटवा के बियाह पर साल भइल त मोटर गाड़ी, फटफटिया (मोटरसाइकिल), नकदी दस लाख दहेज मिलल। नतिया के जनाना एमे (एम.ए) कइले बिया आ ई तीन साल मेटिक (मैट्रिक) में फेल भइल। कवन-कवन अधावत क के चनेसर ओकरा के अरब भेजले। बियाह के बाद ऊ घरहीं रहे लागल। दिन भर बउंड़ियात फिरे ला। इहे कहाला- भइल बियाह मोर करब का। बियाह त एह घरी पइसा के होता मलिकार, वर-कनियां (वर-कन्या) के कवनो मेल रहते नइखे।
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अब मउसम बदली मलिकार, गरम कपड़ा घाम में सुखा लेब। कुछ धोअहूं के परी। राउर सिउटर (स्वेटर) केतना साल के हो गइल। पइसा बांचे त अपना खातिर एगो नीमन सिउटर कीन लेब। हमरा त गांव में रहे के बा, फाटल-पुरान से काम चल जाई। एगो साल (शाल) रखले बानी, कहीं आवे-जाये में काम आवेला। गोधन बाद एक बेर गांवें आवे के विचारेब। गांव-जवार के हाल ठीक बा।
राउरे, मलिकाइन
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