- नवीन शर्मा
आजाद हिंद फौज की कैप्टन लक्ष्मी सहगल उन बेमिसाल क्रांतिकारी महिलाओं में शामिल थीं, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। वे अन्य महिलाओं के.लिए प्रेरणास्रोत भी बनीं। वे अलग ही मिट्टी की बनी थीं। 92 वर्ष की आयु तक सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रहीं। वह कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया मार्क्सवादी से भी जुड़ी थीं। राज्यसभा में भी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया मार्क्सवादी का प्रतिनिधित्व किया।
उनका नाम पहले लक्ष्मी स्वामीनाथन था। 24 अक्टूबर 1914 को मद्रास प्रांत के मालाबार में उनका जन्म हुआ था। उनके पिता एस. स्वामीनाथन वकील और माँ ए.व्ही. अम्मू स्वामीनाथन सामाजिक कार्यकर्ता और स्वतंत्रता सेनानी थी। लक्ष्मी ने 1938 में मद्रास मेडिकल कॉलेज से MBBS की डिग्री ली। चेन्नई में सरकारी अस्पताल डॉक्टर के रूप काम करती थीं।
सिंगापुर में आजाद हिंद से जुड़ीं
कुछ समय सिंगापुर में रहते हुए वह सुभास चन्द्र बोस के भारतीय राष्ट्रिय सेना के कुछ सदस्यों से भी मिली। इसके बाद उन्होंने गरीबो के लिए एक अस्पताल की स्थापना की, जिनमे से बहुत से गरीब लोग भारत छोड़कर आए हुए थे। उसी समय से उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता अभियान में सक्रिय रूप से हिस्सा लेना शुरू किया।
1942 में जब ब्रिटिशो ने सिंगापुर को जापानियों को सौप दिया तब सहगल ने युद्ध में घायक कैदियों की सहायता की, जिनमे से बहुत से लोग भारतीय स्वतंत्रता सेना के निर्माण में इच्छुक थे। सिंगापुर में उस समय बहुत से स्वतंत्रता सेनानी जैसे के.पी. केशव मेनन, एस.सी. गुहा और एन. राघवन इत्यादि सक्रिय थे। इन्होंने कौंसिल ऑफ़ एक्शन की स्थापना की। उनकी आज़ाद हिंद फ़ौज ने युद्ध में शामिल होने के लिए जापानी सेना की अनुमति भी ले रखी थी।
इसके बाद 2 जुलाई 1943 को सुभास चंद्र बोस का आगमन सिंगापुर में हुआ। वे उनसे कहते थे की, “देश की आज़ादी के लिए लढो और आज़ादी को पूरा करो।”जब लक्ष्मी ने देखा की बोस महिलाओ को अपनी संस्था में शामिल करना चाहते है तो उन्होंने बोस के साथ सभा निश्चित करने की प्रार्थना की और महिलाओ के हक़ में उन्होंने झाँसी की रानी रेजिमेंट की शुरुवात की। अपनी सेना में डॉ. लक्ष्मी स्वामीनाथन “कप्तान लक्ष्मी” के नाम से जानी जाती थी और उन्हें देखकर आस-पास की दूसरी महिलाये भी इस सेना में शामिल हो चुकी थी।
इसके बाद भारतीय राष्ट्रीय सेना ने जापानी सेना के साथ मिलकर दिसम्बर 1944 में बर्मा के लिए आंदोलन किया। लेकिन युद्ध के दौरान मई 1945 में ब्रिटिश सेना ने कप्तान लक्ष्मी को गिरफ्तार कर लिया और भारत भेजे जाने से पहले मार्च 1946 तक उन्हें बर्मा में ही रखा गया था।
सहगल ने मार्च 1947 में लाहौर में प्रेम कुमार सहगल से शादी कर ली थी। उनकी शादी के बाद वे कानपूर में बस गये, जहाँ लक्ष्मी मेडिकल का अभ्यास करने लगी और बटवारे के बारे भारत आने वाली शर्णार्थियो की भी सहायता करती थी। उनकी दो बेटियाँ है : सुभाषिनी अली और अनीसा पूरी।
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सवादी) से जुड़ीं
1971 में सहगल कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सवादी) में शामिल हो गयी और राज्य सभा में भी पार्टी का प्रतिनिधित्व करने लगी। बांग्लादेश विवाद के समय उन्होंने कलकत्ता में बांग्लादेश से भारत आ रहे शरणार्थीयो के लिए बचाव कैंप और मेडिकल कैंप भी खोल रखे थे। 1981 में स्थापित ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक विमेंस एसोसिएशन की वह संस्थापक सदस्या है और इसकी बहुत सी गतिविधियों और अभियानों में उन्होंने नेतृत्व भी किया है।
भोपाल गैस कांड के पीड़ितों की मददगार बनीं
दिसम्बर 1984 में हुए भोपाल गैस कांड में वे अपने मेडिकल टीम के साथ पीडितों की सहायता के लिए भोपाल पहुचीं । 1984 में सिक्ख दंगों के समय कानपुर में शांति लाने का काम करने लगी। 1996 में बैंगलोर में मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता के खिलाफ अभियान चलाने के दौरान उन्हें गिरफ्तार किया गया था। 92 साल की उम्र में 2006 में भी वह कानपुर के अस्पताल में मरीजो की जाँच कर रही थी।
2002 में चार पार्टी – कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया, दी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सवादी), क्रांतिकारी समाजवादी पार्टी और ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक ने सहगल का नामनिर्देशन राष्ट्रपति चुनाव के लिए भी किया। उस समय राष्ट्रपति पद के उम्मेदवार ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की वह एकमात्र विरोधी उम्मेदवार थे।
देहदान तक किया
19 जुलाई 2012 को एक कार्डिया अटैक आया और 23 जुलाई 2012 को 97 साल की उम्र में कानपूर में उनकी मृत्यु हुई। उनके पार्थिव शरीर को कानपुर मेडिकल कॉलेज को मेडिकल रिसर्च के लिए दान में दिया गया। उनकी याद में कानपूर में कप्तान लक्ष्मी सहगल इंटरनेशनल एअरपोर्ट बनाया गया। 1998 में सहगल को भारत के राष्ट्रपति के.आर.नारायण ने पद्म विभूषण अवार्ड से सम्मानित किया था।
यह भी पढ़ेंः लोकसभा चुनाव में कहीं सबको पटकनी न दे दें नीतीश कुमार