बेतिया। राहुल गांधी यूथ ब्रिगेड के अध्यक्ष व कांग्रेस नेता मनोज केशान ने कहा कि भारत में असमान कारोबारी माहौल और नीतिगत कुंठा अब राष्ट्रीय चिंता का सबब बन चुका है। इन विषयों पर व्यवस्था की रणनीतिक लापरवाही धीरे-धीरे उजागर हो रही है। लेकिन इससे उत्पन्न विषम और भेदभावपूर्ण परिस्थिति की नैतिक जिम्मेवारी लेने के लिए कोई तैयार नहीं है। चाहे संसद हो या सरकार, न्यायपालिका हो या मीडिया या फिर सिविल सोसाइटी, किसी की समझ में नहीं आ रहा कि इतने बड़े आवाम को कैसे सन्तुष्ट किया जाए! लिहाजा, स्वाभाविक सवाल है कि इस स्थिति के लिए कौन जिम्मेवार है?
मनोज केशान ने कहा कि देश में निजीकरण और भूमण्डलीकरण की 1991-92 से ऐसी अंधी लहर चली कि खेती-किसानी दोनों चौपट हो गई है। उनके साथ अकुशल मजदूर और हुनरमंद कारीगर भी तबाह हो गए हैं। उनके अलावा, छोटे-मोटे उद्यमियों और कारोबारियों की स्थिति भी दयनीय है। अमूमन, सरकारी कर्मचारियों, बड़ी-बड़ी निजी कंपनियों के कर्मचारियों, स्थापित पेशेवरों और उनसे जुड़े लोगों के अलावा सभी अपनी-अपनी आमदनी के जोड़-घटाव में ही व्यस्त हैं। हां, कुछ खानदानी सम्पत्तियों/ परिसम्पत्तियों वाले, उसका गुणा-भाग करने वाले भी मालामाल हैं। एक हद तक सरकारी-निजी ठेकेदारों की भी चांदी है। लेकिन बाद बाकी मध्यम और निम्न वर्ग से जुड़े रोजगार बाजार को लकवा मार चुका है, क्योंकि सरकार की नीतियां ही बड़ी-बड़ी कम्पनियों के कारोबारी हितों की पक्षधर हैं। उदाहरण के लिए, ऑनलाइन कारोबार व खुदरा बाजार के बीच की खाई पाटने में कितने साल लग रहे, आप महसूस कर सकते हैं।
मनोज केशान ने स्पष्ट कहा कि ऑनलाइन कारोबारियों ने छोटे कारोबारियों का धंधा चौपट कर दिया है। अब ये हर समान ऑनलाइन बेच रहे हैं। 20 से 50 फीसदी छूट भी दे रहे हैं। ऐसे में छोटे कारोबारी चौपट होते जा रहे हैं। स्वाभाविक है कि बेरोजगार युवाओं का असन्तोष मौजूदा व्यवस्था के प्रति बढ़ेगा और बढ़ता भी जा रहा है। ऐसा इसलिए कि हमारा देश नीतिगत अराजकता के दौर से गुजर रहा है। उचित आर्थिक प्रबन्धन में प्रशासन फेल हो चुका है। कहीं घृत घना, कहीं मुट्ठी भर चना, कहीं वह भी मना की स्थिति से सामाजिक और व्यक्तिगत असन्तोष चरम पर है। प्रशासन को न तो बढ़ती जनसंख्या के समुचित प्रबन्धन की फिक्र है और न ही आए दिन बढ़ती सामाजिक-व्यक्तिगत विषमता की। लोगों को जरूरत के मुताबिक न नौकरी उपलब्ध है, न कारोबारी माहौल बेहतर है। ऐसे में लोग आखिर करें तो क्या करें? हालत यह है कि अपने-अपने हक-हकूक के लिए लोग सड़कों पर संघर्षरत हैं, लेकिन हमारी सरकार कुछ निहित कारणों के चलते लामबंद विदेशी पूंजीपतियों और उनके ‘एजेंट’ की भांति काम कर रहे भारतीय औद्योगिक घरानों की खिदमतगार नजर आ रही है। यही वजह है कि दिन-प्रतिदिन स्थिति बिगड़ती जा रही है, जबकि सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी नजर आ रही है।
यह भी पढ़ेंः पार्टियों में कार्यकर्ताओं के घटने की वजह कहीं वंशवाद तो नहीं!
मनोज केशान ने कहा कि अब जरूरत है कि राहुल गांधी इन नीतियों पर प्रहार करे। यह तय हो कि ऑनलाइन कारोबारियों पर अंकुश लगे, ताकि छोटे व मझौले कारोबारी ब्यापार के इस संकट से उबर सके। उन्होंने कहा कि उत्पादन के आधार पर सरकार यह तय कर दे कि कौन-कौन से प्रोडक्ट को ऑनलाइन बेचना है। जब यह तय हो जाएगा तो निश्चित रूप से छोटे कारोबारी जो प्रभावित हो रहे हैं, वे बाजार में लाभान्वित होंगे।